पी.एम. केयर्स फंड ‘निजी’ के तौर पर वर्गीकृत न हो

punjabkesari.in Friday, Oct 08, 2021 - 05:18 AM (IST)

मोदी -शाह सरकार ने एफ.सी.आर.ए. (फॉरेन कंट्रीब्यूशन्स रैगुलेशन एक्ट) के माध्यम से विदेशी सहायता प्राप्त करने वाले गैर-सरकारी संगठनों (एन.जी.ओज) पर शिकंजा कसा है। 2021 में धार्मिक संगठनों द्वारा संचालित कई  एन.जी.ओका की गतिविधियों बंद हो गईं। 
मेरा मानना है कि सभी एन.जी.ओज एक साधारण कारण से हमले के नीचे हैं कि अधिकतर सरकार की अपनी आपूर्ति प्रक्रिया की खामियों को उजागर कर सकते हैं। उदाहरण के लिए लॉकडाऊन के दौरान, जो कोविड महामारी के पहले हमले के दौरान बिना किसी चेतावनी के थोप दिया गया था, के दौरान उत्तरी राज्यों से हजारों, संभवत: लाखों गरीब प्रवासी मजदूरों को पैदल सैंकड़ों किलोमीटर दूर अपने घरों को लौटना पड़ा। 

अच्छे नागरिकों जिनमें फिल्म अभिनेताओं से लेकर सेवानिवृत्त नौकरशाह तथा नैशनल लॉ स्कूलों के ग्रैजुएट्स और नर्म दिल गृहणियां शामिल थीं, ने इन गरीब नागरिकों को दिन-रात भोजन तथा शरण उपलब्ध करवाई। बेंगलूर से एन.एल.एस. के छात्रों ने तो कुछ भाग्यशाली लोगों को पहुंचाने के लिए निजी विमान तक किराए पर लिया। फिर ऐसा ही एक फिल्म अभिनेता अपनी आय के मुकाबले अधिक धन खर्च करने के लिए आयकर अधिकारियों की जांच के दायरे में है। जिन लोगों ने अपना समय तथा धन दिया, को प्रधानमंत्री तथा उनको मिली प्रशंसा से कोई शिकायत नहीं है क्योंकि उन्होंने किसी पहचान अथवा पुरस्कार पाने के लिए कार्य नहीं किया लेकिन पूरे मन से, जो एक ऐसा व्यवहार है जो राजनीतिज्ञों के लिए पराग्रही मानसिकता का है। 

हर क्षेत्र में ऐसे एन.जी.ओज हैं जो इसलिए कार्य करते हैं क्योंकि वे जरूरतमंदों तथा वंचितों की परवाह करते हैं तथा ऐसे भी एन.जी.ओज हैं जिनके संभवत: गोपनीय उद्देश्य होते हैं। इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता। कार्पोरेट जगत इस दृष्टांत से अवगत है। अपना सी.एस.आर. पर्स खोलने से पहले यह इस बाबत जांच-पड़ताल करता है। पी.सी.जी.टी. (पब्लिक कंसर्न फॉर गवर्नैंस ट्रस्ट) और भी ज्यादा चौकस है कि यह दान-दाताओं के धन को कैसे खर्च करता है। मेरे शहर मुम्बई में बहुत से अन्य एन.जी.ओका हैं जो ऐसा ही करते हैं। मगर जब से मोदी-शाह सरकार ने सी.एस.आर. फंडिंग को ‘पी.एम. केयर्स’ फंड के लिए खोला है, यहां तक कि अच्छे एन.जी.ओज, जो वास्तव में उपयुक्त कार्य कर रहे हैं तथा समाज को किसी पहचान अथवा पुरस्कार के बारे सोचे बिना सेवाएं उपलब्ध करवा रहे हैं, पर विपरीत असर पड़ा है। कार्पोरेट जगत हमेशा सत्ताधारियों के पक्ष में रहने को बेताब होता है, स्वाभाविक है कि ‘पी.एम. केयर्स’ के प्रति जरूरत से अधिक उदार होगा और उनकी अच्छे एन.जी.ओज की सहायता करने की क्षमता में बिगाड़ आता है। 

कार्पोरेट्स पहले ही चुनावी बॉन्ड्स के माध्यम से सत्ताधारी पार्टी के चुनावी खजानों को भरने के लिए प्रतिबद्ध होते हैं। प्रधानमंत्री राहत कोष का ऑडिट कैग द्वारा किया जाता है। पी.एम. केयर्स फंड द्वारा खर्च किए गए धन का कोई भी खाता जनता को उपलब्ध नहीं करवाया जाता। फंड का प्रबंधन ट्रस्टियों के एक बोर्ड द्वारा किया जाता है जिसकी अध्यक्षता खुद प्रधानमंत्री करते हैं और उसमें उनके प्रमुख मंत्रिमंडलीय सहयोगी शामिल होते हैं। एक ‘निजी’ कोष होने के नाते यह कैग के दायरे से परे है। 

कार्पोरेट्स तथा अन्य दानदाता अपना धन इसलिए दे देते हैं क्योंकि प्रधानमंत्री तथा उनके अन्य महत्वपूर्ण सहयोगी इसमें होते हैं लेकिन वे नहीं पूछ सकते कि धन का इस्तेमाल कैसे किया गया? जो एन.जी.ओका कार्पोरेट्स से धन प्राप्त करते हैं उन्हें दानदाताओं को खर्च का बहुत विस्तृत विवरण देना पड़ता है। तो पी.एम. केयर्स कोष को छूट क्यों?

एक उदाहरण पेश करने के लिए यह सबसे आगे होनी चाहिए लेकिन इस संदिग्ध आधार पर कि यह एक ‘निजी’ कोष है, आर.टी.आई. कानून के अंतर्गत पूछे गए प्रश्रों का उत्तर देने से इंकार करता है। कार्पोरेट्स तथा अन्य पी.एम. केयर्स में इसलिए योगदान देते हैं क्योंकि कोष के साथ प्रधानमंत्री का नाम जुड़ा है। उन्हें आभास होता है कि यह एक सरकारी कोष है। ऐसी उदारता को नियंत्रित करने के लिए संस्थागत व्यवस्था की जरूरत है जो मुख्य रूप से एक तरह से बल प्रयोग द्वारा की जाती है। चुनावी बॉन्ड्स द्वारा धन उपलब्ध करवाने के स्रोत का भी आवश्यक तौर पर खुलासा होना चाहिए। लोगों को क्यों नहीं पता होना चाहिए कि कौन विभिन्न राजनीतिक दलों को सहारा देता है? 

यदि कोई सरकारी कर्मचारी एक निजी कोष का गठन करता है जिसमें लोग इसलिए धन देते हैं क्योंकि वह एक ऊंचे सरकारी पद पर बैठा है तो उस पर भ्रष्टाचार के आरोप लगेंगे। मगर भारत में सर्वोच्च दर्जे के जनसेवक ने ठीक ऐसा ही किया है और लोगों से उस पर तथा उसके चुने हुए लोगों पर विश्वास करने की आशा की जाती है। मैं स्वीकार करता हूं कि मोदी जी कभी भी पवित्र धन के साथ छेड़छाड़ नहीं करेंगे लेकिन अच्छे कार्य के लिए निजी स्रोतों से इकट्ठे किए गए धन का भी हमेशा हिसाब-किताब होना चाहिए। अच्छाई करने वाला अभिनेता सोनू सूद अब आयकर विभाग द्वारा ‘सम्मानित’ किया जा रहा है, जो ऐसे धन पर कर लगाने को बेताब है जो उस उद्देश्य के लिए नहीं खर्च किया गया जिसके लिए एकत्र किया गया था। 

मैं मोदी जी की विनम्रता तथा देशभक्ति की भावना को अपील करता हूं कि वह पी.एम. केयर्स फंड में प्राप्त धन के ब्यौरे तथा नामों का खुलासा  और खर्च का ब्यौरा उपलब्ध करवाएं। कोष को ‘निजी’ के तौर पर वर्गीकृत नहीं किया जाना चाहिए। मैं मोदी जी से यह भी अपील करता हूं कि चुनावी बॉन्ड्स की खरीद को एक खुला मामला बनाया जाए जो सभी मतदाताओं को पता हो ताकि वे उसी के आधार पर अपना चयन कर सकें। कुछ कारणों से अदालतें इन बॉन्ड्स की वैधता की जांच करने में हिचकिचा रही हैं। मगर निश्चित तौर पर एक ऐसी पार्टी जो लोगों का अच्छा चाहती है, को न्यायिक हिचकिचाहट के पीछे छुपने की जरूरत नहीं है।-जूलियो रिबैरो(पूर्व डी.जी.पी. पंजाब व पूर्व आई.पी.एस. अधिकारी)


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