पेगासस जासूसी : जांच समिति से सच कब सामने आएगा

punjabkesari.in Saturday, Oct 30, 2021 - 03:03 AM (IST)

इसराईल के एन.एस.ओ. ग्रुप ने पेगासस नाम का एक सॉफ्टवेयर बनाया जिसके माध्यम से विश्व के हजारों लोगों के मोबाइल हैक करके उनकी जासूसी की गई। इस जासूसी में सैंकड़ों भारतीय लोगों के नाम भी शामिल हैं। केंद्र सरकार ने इस मामले में सुप्रीम  कोर्ट के सामने स्पष्ट हलफनामा दायर करने से इंकार कर दिया था। केंद्र सरकार के रुख को नकारते हुए कोर्ट ने कहा कि राष्ट्रीय सुरक्षा की दुहाई देकर लोगों की जासूसी नहीं की जा सकती। सुप्रीम कोर्ट ने अपने अंतरिम आदेश से पेगासस जासूसी की जांच के लिए 3 सदस्यीय विशेषज्ञ समिति का गठन किया है। 

चीफ जस्टिस की बैंच ने प्रैस की आजादी लोकतंत्र का अहम स्तंभ है, जैसी कई अहम् बातें कहीं। सुप्रीम कोर्ट की 9 जजों की बैंच ने सन 2017 में प्राइवेसी पर जो फैसला दिया था, उसके आधार पर कोर्ट ने संविधान के अनुच्छेद 14, 19 और 21 के तहत मिले निजता, अभिव्यक्ति और जीवन के अधिकार को नए सिरे से मान्यता दी है। सुप्रीम कोर्ट के फैसले से केंद्र सरकार की नैतिक दृष्टि से पराजय दिखती है। संवैधानिक और कानूनी लिहाज से अहम् होने के बावजूद इन 7 वजहों से यह आदेश निराशाजनक दिखता है- 

पहला-इस मामले में प्रमुख सवाल यह था कि क्या केंद्र या अन्य राज्य सरकारों ने पेगासस सॉफ्टवेयर का इस्तेमाल किया है या नहीं? सरकार ने सुप्रीम कोर्ट के सामने और संसद में इस मसले पर स्पष्ट जवाब देने से इंकार कर दिया। जांच समिति के पास तो बयान दर्ज करने और रिपोर्ट देने का ही अधिकार है। तो फिर समिति को यह स्पष्ट जानकारी सरकार से कैसे मिलेगी? 

दूसरा-विशेषज्ञ समिति को रिपोर्ट देने के लिए कोई निश्चित समय सीमा नहीं तय की गई। 8 हफ्ते में तो समिति का गठन और कार्यालय की स्थापना के बाद पहली मीटिंग ही हो पाएगी। जब तक समिति अपनी रिपोर्ट नहीं देती तब तक सुप्रीम कोर्ट में भी कोई ठोस सुनवाई की उम्मीद नहीं है। लम्बे अर्से बाद जब लम्बी चौड़ी रिपोर्ट आई भी तब तक यह मामला बेमानी हो जाएगा। 

तीसरा- इस मामले में जांच के 7 बिंदू निर्धारित किए गए हैं, जिसमें साइबर सुरक्षा से जुड़े व्यापक पहलू भी शामिल हैं। समिति इसमें पीड़ित लोगों के साथ राज्य सरकारों से भी बात करेगी। इससे जांच समिति का फोकस पेगासस की बजाय बड़े नीतिगत मसलों पर हो जाएगा। यह फैसला अकादमिक तौर पर बढिय़ा हो सकता है पर इससे पूरे विवाद का ताॢकक अंत नहीं होगा। 

चौथा- सी.बी.आई. डायरैक्टर के विवाद के समय सुप्रीम कोर्ट की न्यायिक प्रक्रिया पर सवाल उठे थे। तत्कालीन चीफ जस्टिस रंजन गोगोई ने न्यायिक व्यवस्था को खतरे में डालने के आपराधिक षड्यंत्र की जांच के लिए पूर्व जज पटनायक कमेटी का गठन किया था, जो किसी तर्क संगत नतीजे पर नहीं पंहुची। इसी तरीके से कृषि कानून के बारे में भी सुप्रीम कोर्ट की रिपोर्ट अभी तक सार्वजनिक नहीं हुई। आंध्र प्रदेश में बलात्कार के आरोपियों की पुलिस एनकाऊंटर में मौत के मामले में भी सुप्रीम कोर्ट की जांच समिति का कार्यकाल कई बार बढ़ाया जा चुका है। इस पृष्ठभूमि में पेगासस जांच समिति से सार्थक निष्कर्ष की उम्मीद कैसे की जाए? 

पांचवां, इस मामले को सिर्फ राजनीतिक विवाद या प्राइवेसी के लिहाज से देखना गलत है। इस मामले में बड़े नेता ,अफसर, मंत्री, जज, वकील और पत्रकारों के मोबाइल फोन हैक करके जासूसी के गंभीर आरोप हैं। यदि यह काम विदेशी शक्तियों द्वारा किया जा रहा है इससे राष्ट्रीय सुरक्षा और संप्रभुता को बड़ा खतरा है, आई.टी. कानून के अनुसार ऐसे मामले साइबर आतंकवाद अपराध के दायरे में आते हैं। सिविल जांच के साथ ऐसे मामलों में पुलिस और सी.बी.आई. द्वारा आपराधिक मामला भी दर्ज होने के लिए आदेश होना चाहिए,जिससे कि सबूत नष्ट नहीं हो सकें। लेकिन जांच समिति के गठन के बाद इस मामले की आपराधिकता पर फिलहाल कोई कार्रवाई होना मुश्किल लगता है। 

छठा-पश्चिम बंगाल सरकार ने इस मामले की जांच के लिए सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जज लोकुर की अध्यक्षता में जांच आयोग बनाया था, जिस पर फिलहाल मौखिक रोक लगी है। यदि जस्टिस लोकुर के जांच आयोग के साथ ही एक्सपर्ट सदस्यों को जोड़ दिया जाता, तो ऐसे आयोग को जांच करने के लिए ज्यादा व्यापक अधिकार होते। 

सातवां-सुप्रीम कोर्ट ने 12 याचिकाओं पर अंतरिम आदेश देते हुए कहा कि ऐसे जासूसी कांड से ऑरवेलियन ङ्क्षचता पैदा होती है। टैलीफोन से निगरानी के बारे में सुरक्षा कवच बनाने के लिए पी.यू.सी.एल. मामले में 1997 में सुप्रीम कोर्ट ने ऐतिहासिक फैसला दिया था। केंद्र्रीय गृह मंत्रालय ने दिल्ली पुलिस समेत 10 सुरक्षा एजैंसियों को डिजिटल निगरानी के लिए 20 दिसंबर 2018 को अधिकृत किया था। इंटरनैट और डिजिटल युग में विदेशी कंपनियों और सरकारी एजैंसियों की निगरानी से लोगों की सुरक्षा करने के लिए अभी तक कोई कानूनी प्रोटोकॉल नहीं बना। सुप्रीम कोर्ट के अगले आदेशों से ऐसी कोई व्यवस्था बन सके तो पेगासस मामले में न्यायिक हस्तक्षेप सार्थक साबित हो सकता है।-विराग गुप्ता
(एडवोकेट, सुप्रीम कोर्ट)

 


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