सियासी लालसा में किसान नेता अपनी नैतिक शक्ति गंवा बैठेंगे

punjabkesari.in Friday, Feb 04, 2022 - 06:28 AM (IST)

सियासत एक विशाल मंच है। इसकी पद्धति के विधि-ज्ञान की कोई सीमा नहीं है। इस विधि-ज्ञान की सरगर्मियों के माध्यम से देश के शासन प्रबंध तथा प्रशासनिक निजाम को संवैधानिक व्यवस्थाओं के अनुसार नियमित किया जाता है। 

जिस धरती पर चाणक्य नीति का आविष्कार हुआ हो, जिस चाणक्य की दिव्य दृष्टि ने मौर्य सल्तनत को जन्म दिया हो तथा चंद्रगुप्त मौर्य जैसे शासक को शिक्षा प्रदान की हो, जिसने उन पुरातन समयों में राज शास्त्र, अर्थशास्त्र, फलसफा तथा कूटनीतिक प्राथमिकताओं का निर्माण किया हो, आज उसी चाणक्य का देश 21वीं शताब्दी के मरहले में आत्मबल तथा नैतिकता तथा दृढ़ निश्चय से वंचित क्यों लग रहा है? 

देश के पांच राज्यों में विधानसभा चुनाव इस महीने होने जा रहे हैं जिस कारण सभी राजनीतिक दलों में एक अजीब तरह का हड़कंप मचा हुआ है। नैतिक पतन, राजनीतिक मौका-परस्ती तथा सिद्धांतहीनता चरम पर हैं। गत 7 दशकों का सफर तय करके देश का प्रजातंत्र एक मजबूत तथा टिकाऊ अवस्था में पहुंचने की बजाय, चुनाव तथा प्रजातंत्र महज एक नाटक बन कर रह गए हैं। 

अब नैतिकतावान नेताओं की बजाय मुखौटे ही राजनीतिक मंच के नायक बन कर चारों ओर छाए हुए हैं, जो प्रजातंत्र के नाटक में किसी न किसी भूमिका के तलबगार हैं। खुद को कद्रो-कीमतों के लिहाज से अलग बताने वाली पार्टियां भी अपना नैतिक वजूद गंवा चुकी हैं। विश्वास, योग्यता तथा आंखों की शर्म पंख लगाकर उड़ गई है। यह एक ऐसा घटनाक्रम है जो व्यक्ति विधानसभा के तहरीरी प्रमाणों के अनुसार अभी कांग्रेस पार्टी का विधायक है वह अपने नामांकन पत्र भाजपा के नामजद उ मीदवार के तौर पर दाखिल कर रहा है और जो व्यक्ति आम आदमी पार्टी का विधायक है वह अपने नामांकन पत्र कांग्रेस के नामांकित उम्मीदवार के तौर पर दाखिल कर रहा है। यह सब कुछ एक कपटपूर्ण नाटक नहीं तो और क्या है? 

किसान विरोधी तीन काले कानून वापस लेने के लिए उत्तर भारत के किसानों द्वारा 40 किसान जत्थेबंदियों पर आधारित एक संगठन का गठन संयुक्त किसान मोर्चे के नाम पर किया गया। इस सफल किसान आंदोलन ने, देश के किसान की एकता व दृढ़ता ने विश्व आंदोलनों के इतिहास में एक नया कीर्तिमान स्थापित किया।

सब्र-संतोष के साथ दी गई 700 से अधिक किसान आंदोलनकारियों की कुर्बानियां इस शांतमयी संघर्ष की शक्ति का भेद बनकर उभरीं। इस आंदोलन की एक सर्वश्रेष्ठ विलक्षणता यह रही कि इसके हर मंच से यह स्पष्ट कहा जा रहा था कि किसान आंदोलन गैर-राजनीतिक है तथा शायद इसी कारण किसान नेताओं ने किसी भी राजनीतिक पार्टी के किसी बड़े या छोटे नेता को मंच पर संबोधित करने या नजदीक फटकने का मौका नहीं दिया। 

मगर अफसोस कि किसान आंदोलन की व्यापक सफलता के तुरन्त बाद ही किसान मोर्चे के कुछ प्रमुख नेताओं के मनों में राजनीतिक शक्ति हथियाने की लालसा जाग पड़ी, वे 700 से अधिक किसानों की कुर्बानियों का फायदा उठाकर अपनी राजनीतिक रोटियां सेंकने के लिए तत्पर हो उठे। परिणामस्वरूप संयुक्त किसान मोर्चा दोफाड़ हो गया। राजनीतिक लालसा रखने वाले किसान नेताओं ने पंजाब विधानसभा का चुनाव लडऩे के लिए बलबीर सिंह राजेवाल के नेतृत्व में संयुक्त समाज मोर्चे के नाम से एक नई राजनीतिक पार्टी का गठन कर दिया। 

गुरनाम सिंह चढ़ूनी हरियाणा से संबंधित भारतीय किसान यूनियन के प्रमुख किसान नेता हैं। किसान आंदोलन में उनकी प्रमुख भूमिका सराहनीय रही है। मगर पंजाब के विधानसभा चुनाव को लेकर दिसंबर 2021 में उनके द्वारा ‘संयुक्त संघर्ष पार्टी’ नामक एक नए राजनीतिक दल की स्थापना की गई और साथ ही यह घोषणा भी कर दी कि उनकी नई पार्टी पंजाब की सभी 117 सीटों पर चुनाव लड़ेगी (हालांकि यह घोषणा अब केवल 11 सीटों तक ही  सिमट कर रह गई है)। इस संदर्भ में मैं किसान नेता जोगिन्द्र सिंह उगराहां तथा उनकी अन्य सहयोगी किसान तथा मजदूर जत्थेबंदियों की सराहना करता हूं जिन्होंने अपने सैद्धांतिक निर्णय के अनुसार चुनाव तथा राजनीतिक लालसा से दूरी बनाई हुई है। 

किसान संगठनों के नेता यह क्यों भूल बैठे हैं कि खेती जिंसों के गारंटीशुदा, कम से कम खरीद मूल्य का बड़ा तथा बुनियादी मसला तो अभी ज्यों का त्यों खड़ा है। मगर चुनावों के माध्यम से भाग्य आजमाने वाले किसान संगठन राजनीतिक लालसा के प्रभावाधीन अंजान रास्तों पर जरूर चल पड़े हैं। मुझे डर है कि इस सारी प्रक्रिया में किसान नेता अपनी नैतिक शक्ति हमेशा के लिए गंवा बैठेंगे तथा रास्ते से भटकी लीडरशिप के लिए समस्त किसानी की विश्वसनीयता को दोबारा हासिल कर लेना कोई आसान काम नहीं होगा।-बीर दविंद्र सिंह(पूर्व डिप्टी स्पीकर,पंजाब विधानसभा)


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