‘धर्म, संस्कृति तथा आध्यात्मिकता का अनोखा संगम पशुपतिनाथ मंदिर’

punjabkesari.in Tuesday, Nov 24, 2020 - 04:13 AM (IST)

सुंदर हिमालय का नेपाल राष्ट्र एक अनोखी रहस्यमयी शक्तियों वाली भूमि है और यह दुस्साहस, पर्वतारोही तथा ट्रैकिंग के साथ जुड़ी हुई है। अनेकों भारतीय पर्यटकों का काठमांडू शहर के साथ जुड़ाव है जहां पर विश्व प्रसिद्ध पशुपतिनाथ का मंदिर है। यह मंदिर मुख्य आकर्षण का केंद्र है। राजधानी में बागमती नदी के साथ यह मंदिर स्थित है। नि:संदेह यह पर्यटकों के लिए एक सुंदर, धार्मिक स्थल है जिसने भारत तथा नेपाल के लोगों के बीच एक जरूरी रिश्ता संभाल कर रखा है। 

पशुपतिनाथ मंदिर पगोडा स्टाइल में बना हुआ है। जहां पर हम बोध तथा हिंदू वास्तु कला का संगम देख सकते हैं। हालांकि पशुपतिनाथ मंदिर के निर्माण की सही तिथि के बारे में कोई ज्ञान नहीं है। मगर ऐसा माना जाता है कि काठमांडू में यह सबसे पुराना हिंदू मंदिर है। माना जाता है कि इसका अस्तित्व 400 बी.सी. से है। इस मंदिर की नेपाली लोगों के लिए एक विशेष प्रासंगिकता है। यह पशुपतिनाथ जी का आशीर्वाद है कि यह राष्ट्र तथा यहां के लोग किसी भी आपदा से सुरक्षित रहते हैं। 

काठमांडू में ऐसे कई मंदिर हैं जो हिंदू धर्म तथा इसके देवी-देवताओं से संबंधित हैं। यहां की हर गली और नुक्कड़ पर आपको मंदिर दिख जाएगा। नेपाल में रह कर कोई एक महसूस कर सकता है कि हिंदू धर्म भारत की तरह ही नेपाल में भी माना जाता है। पूरे वर्ष में यहां पर हिंदू धार्मिक समारोह देखे जा सकते हैं। ऐसे समारोह भारत में शायद नहीं मनाए जाते। किसी अन्य देश की तुलना में नेपाल में हिंदू फिलॉसफी ज्यादा देखी जा सकती है। पशुपतिनाथ मंदिर श्रद्धा का केंद्र है तथा हिंदू श्रद्धालुओं के लिए एक पवित्र स्थल है। 

यह मंदिर निकटता से मशहूर काशी विश्वनाथ मंदिर से भी जुड़ा हुआ है जिसे 12 ज्योतिॄलगों में से एक माना जाता है। पशुपतिनाथ मंदिर को भगवान शिव का सिर माना जाता है जबकि काशी विश्वनाथ मंदिर को भगवान शिव का सिर रहित शरीर माना जाता है। इस तरह दोनों मंदिरों में पूजा के बिना दिव्य भगवान शिव का सच्चा अनुभव नहीं किया जा सकता। पवित्र ग्रंथों के अनुसार यहां पर चार दिशाओं में प्रसिद्ध चारधाम हैं। मिसाल के तौर पर दक्षिण में रामेश्वर मंदिर, पश्चिम में द्वारकाधीश मंदिर, उत्तर में बद्रीनाथ मंदिर तथा पूर्व में जगन्नाथ मंदिर हैं। ये सभी मंदिर भारत में स्थित हैं। काशी विश्वनाथ मंदिर तथा पशुपतिनाथ मंदिर की यात्राओं के बिना हिंदू श्रद्धालुओं की आध्यात्मिक मुक्ति अधूरी है। 

भारत के साथ इसका विशेष रिश्ता इसलिए भी है कि पशुपतिनाथ मंदिर में रोजाना के अनुष्ठान कर्नाटक से आए पुरोहित करते हैं। इन्हें कुछ बुद्धिजीवियों के समूह द्वारा चुना जाता है। ऋग्वेद ऋग्वेद श्लोकों तथा अन्य अनुष्ठानों की कठिन ट्रेङ्क्षनग से ये पुरोहित गुजरते हैं। उसके बाद इन्हें पशुपतिनाथ मंदिर में वेदों तथा शिव अगामस पर परीक्षा के बाद चुना जाता है। वर्षों से यही परम्परा चली आ रही है। जैसे ही हम पशुपतिनाथ मंदिर के प्रांगण में प्रवेश करते हैं तब आप जटिल छोटे-छोटे मंदिरों तथा धार्मिक स्थलों का एक जाल देख सकते हैं जोकि मुख्य मंदिर के आसपास निर्मित है। इन सबकी गिनती 500 से ज्यादा है और इनका निर्माण पिछली कई सदियों के दौरान हुआ है। मंदिर को जाने वाली गली दुकानों से घिरी हुई है, जो मंदिर में चढ़ाए जाने वाले प्रसाद तथा अन्य पूजा की वस्तुओं को बेचते हैं। यहां पर भारतीय पर्यटक अपनी भाषा में बातचीत कर सकते हैं। 

पशुपतिनाथ मंदिर में सबसे बड़ा उत्सव शिवरात्रि के दिन होता है। जब 10 लाख लोगों से ज्यादा श्रद्धालु इकट्ठे होते हैं। ये श्रद्धालु नेपाल, भारत तथा दुनिया के विभिन्न देशों से एकत्रित होते हैं। इस विशेष पर्व पर मंदिर का अनोखा रंग देखा जा सकता है। नेपाल तथा भारत से बड़ी गिनती में साधु-संत मंदिर में माथा टेकने आते हैं। विभिन्न पंथों के करीब 7 हजार साधुओं ने 2019 में इसमें भाग लिया था। यहां पर एक उच्च संगठित सिस्टम देखा जा सकता है। यात्रा करने वाले साधु-संतों के रहने व भोजन की व्यवस्था मंदिर प्रशासन करता है। शिवरात्रि पर धर्म, संस्कृति तथा आध्यात्मिकता का एक अनोखा संगम देखा जा सकता है। 

शिवरात्रि वाले दिन रोजाना की पूजा के अलावा शाम को मंदिर में आरती भी आयोजित होती है जोकि पूरी बागमती नदी के आसपास की जाती है। घी के दीए जला कर पुरोहित आरती करते हैं और इसकी पृष्ठभूमि में आपको भजन सुनाई देते हैं जो यहां का माहौल और भी आध्यात्मिक कर देते हैं। आरती के दौरान ही शिव के श्रद्धालुओं द्वारा तांडव नृत्य किया जाता है। बागमती नदी के किनारे संस्कार भी किए जाते हैं और दूर से ही इन संस्कारों को श्रद्धालु देख सकते हैं। उन्हें विशेष तौर पर इसकी अनुमति मिलती है। यहां पर मंदिर की यात्रा कर व्यक्ति जीवन-मरण के चक्र से अपने आपको मुक्त पाता है। 

2014 में प्रधानमंत्री मोदी की नेपाल यात्रा के दौरान उन्होंने इस मंदिर की यात्रा की तथा 2500 किलोग्राम सफेद चंदन का दान किया। 2018 की यात्रा के दौरान पी.एम. मोदी ने भारत से सहायता प्राप्त 400 बिस्तरों वाली धर्मशाला का निर्माण करवाया। मंदिर को लगातार ही भारत सरकार समर्थन देती है। इसके लिए दोनों देशों के बीच जून 2020 में आम समझौता किया गया जिसके तहत भारत ने 2.33 करोड़ की स्वच्छता सहूलियतों के निर्माण का वचन दिलाया। मार्च 2021 के महाशिवरात्रि पर्व से पहले कई टूर प्लान को प्रोत्साहित किया जा रहा है।-राधिका हैदर


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