पाकिस्तान हमारे सामरिक संयम को हमारी कमजोरी समझता है

punjabkesari.in Sunday, Dec 05, 2021 - 04:19 AM (IST)

मेरी हाल ही में प्रकाशित तथा जारी पुस्तक ‘10 फ्लैश प्वाइंट्स 20 ईयर्स नैशनल सिक्योरिटी सिच्युएशन दैट इम्पैक्टिड इंडिया’ ने भाजपा के बीच हो-हल्ला पैदा कर दिया है। यहां तक कि पुस्तक के औपचारिक तौर पर जारी होने से 9 दिन पहले एक प्रैस कांफ्रैंस का भी आयोजन कर लिया। कुछ पैरे एक चैप्टर में 26/11 पर हैं। मैं संदर्भ के तौर पर उन पैरों का उल्लेख करूंगा। 

‘स्पष्ट है कि 26/11 के बाद भारतीय उद्देश्यों ने बलपूर्वक कार्रवाई करने की कूटनीति के प्रति एक नाटकीय मोड़ ले लिया। इस तरह का दृष्टिकोण कार्यान्वयन में लाना कठिन है। स्वाभाविक तौर पर इस तरह के दृष्टिकोण को ‘आतंकवाद पर नर्मी’ के तौर पर देखा गया जो तत्कालीन यू.पी.ए. सरकार के कार्यकाल में हुआ। इन्हीं कारणों से सितम्बर 2016 में उड़ी हमले के बाद से रणनीतिक संयम ने एक अधिक सामरिक तथा अग्रगामी प्रतिक्रिया को स्थान दिया।’

‘यद्यपि एक ऐसे देश के लिए जिसमें निर्दयतापूर्वक सैंकड़ों निर्दोष लोगों को मार दिए जाने का कोई मलाल नहीं होता, संयम ताकत का संकेत नहीं है, इसे कमजोरी का प्रतीक समझा जाता है। कई बार ऐसा भी समय आता है जब शब्दों की बजाय कार्रवाई को अधिक बोलना होता है। 26/11 एक ऐसा ही समय था जब ऐसा किया जाना चाहिए था। इसलिए यह मेरी राय है कि भारत को अपने देश में 9/11 के बाद के दिनों में एक तीव्र प्रतिक्रिया के रूप में कार्रवाई करनी चाहिए थी।’ 

‘हालांकि यह तर्क दिया जा सकता है कि उड़ी के बाद 2016 में सर्जीकल स्ट्राइक्स तथा 2019 में बालाकोट स्थित जाबा हिलटाप पर सर्जीकल स्ट्राइक्स में ठीक ऐसा ही किया गया। हालांकि एक महत्वपूर्ण अंतर यह था कि जब इन दंडात्मक कार्रवाइयों को अमल में लाया गया, पाकिस्तान पर दंड की कीमत नगण्य थी। न केवल उन्होंने इस बात से इंकार किया कि सर्जीकल स्ट्राइक हुई है बल्कि इससे भी अधिक महत्वपूर्ण यह कि सरकार में बैठे राजनेताओं द्वारा चुनावी रैलियों में मरने वालों की बताई गई संख्या में भी बहुत अधिक अंतर था जिसका आकलन स्वतंत्र तथा गैर पक्षपाती सूत्रों द्वारा किया गया था।’ 

उपरोक्त पैरे क्या संकेत देते हैं? दुर्भाग्य से भारत उस केंद्रीय दुविधा पर विजय पाने में सफल नहीं रहा जो 1971 में बंगलादेश की आजादी के बाद से सता रही थी कि उन गैर-सरकारी कारकों पर कैसे प्रतिक्रिया की जाए जिनको पाकिस्तान समर्थन तथा प्रोत्साहन दे रहा था? आणविक ताकत सम्पन्न एक पड़ोसी पर आतंकी हमले की सूरत में एक पारम्परिक प्रतिक्रिया कितनी प्रभावी होगी, यह आज भी एक खुला प्रश्र बना हुआ है। 

1971 में पाकिस्तान को दो हिस्सों में बांटने के बाद भारत दक्षिण एशिया में एक अविवादित शक्ति बन गया। पाकिस्तान एक संशोधनवादी शक्ति बना। पूर्वी पाकिस्तान (अब बंगलादेश) में इसे मिली शॄमदगी ने पाकिस्तान को भारत को हजार जख्म देने की रणनीति बनाने को बाध्य किया। आज तक भारत ने सामरिक संयम की रणनीति अपनाने का प्रयास किया है, जैसा कि उड़ी में सर्जीकल स्ट्राइक्स तथा बालाकोट में बमबारी के बाद हुआ था लेकिन इनके कारण पाकिस्तान के व्यवहार में कोई खास बदलाव नहीं आया। कारगिल युद्ध की सफलता मुख्य रूप से इस कारण संभव हो सकी क्योंकि शुरूआत से ही स्पष्ट था कि इसमें नियमित पाकिस्तानी सेना काफी गहराई से शामिल थी और उनका स्पष्ट इरादा उस जगह को अपने कब्जे में लेना था इसलिए उस लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए बड़ी संख्या में भारतीय सेना तथा वायुसेना की तैनाती की गई। हालांकि जब गैर-सरकारी कारकों की बात आती है तो भारत अभी भी खुद को इस मामले में उतनी गहराई में नहीं पाता।

पुस्तक में आई.सी. 814 विमान के अपहरण तथा उन अपहरणकत्र्ताओं पर ध्यान केन्द्रित किया गया है जो पाकिस्तानी आई.एस.आई./सेना  के इशारों पर काम कर रहे थे और कारगिल में मिली शर्मनाक हार का बदला ले रहे थे और साथ ही पुरस्कार स्वरूप तीन दुर्दांत आतंकवादियों को आजाद करवाने में सफल रहे। पुस्तक में चीन के साथ भारत के खराब संबंधों की बात की गई है और इस बात की समीक्षा करने का प्रयास किया गया है कि किन कारणों से पूर्वी लद्दाख पर अब अरुणाचल प्रदेश में घुसपैठ हुई। हालांकि 26/11 पर लौटते हुए जहां मुझे हमेशा से विश्वास था और है कि भारत को पाकिस्तान के विरुद्ध तीव्र प्रतिक्रिया करनी चाहिए थी, यह तथ्य कि ऐसा नहीं हुआ, हैरानीजनक नहीं। 1991 से कम से कम पांच सरकारों -वी.पी. सिंह नीत जनता दल सरकार, पी.वी. नरसिम्हाराव नीत अल्पमत कांग्रेस सरकार, देवेगौड़ा व आई.के. गुजराल की क्रमश: संयुक्त मोर्चा सरकार और यहां तक कि अटल बिहारी वाजपेयी की राजग/भाजपा सरकार ने पाकिस्तान की ओर से आतंकवाद के विरुद्ध सामरिक संयम की नीति अपनाए रखी। 

यहां तक कि जब उड़ी तथा पुलवामा आतंकी हमले के बाद राजग/भाजपा सरकार ने सामरिक संयम से सामरिक आक्रामकता की ओर कदम बढ़ाया, रणनीतिक लाभ न्यूनतम थे। हालांकि निश्चित तौर पर एक राजनीतिक लाभ मिला। यहां प्रश्र विवादास्पद कमजोरी अथवा ताकत का नहीं है। दो अलग सरकारों ने 2 अलग रणनीतियों का प्रयास किया। सामरिक संयम तथा सामरिक आक्रामकता मगर ऐसा दिखाई देता है कि इनमें से कोई भी काम नहीं आई। क्या हम आज किसी भी तरह की निश्चितता से कह सकते हैं कि राजग/भाजपा द्वारा अपनाई गई विनम्रता की नीति के बाद कोई अन्य आतंकी हमला नहीं होगा जिसके तार पाकिस्तान से नहीं जुड़े होंगे?  हालांकि यह चर्चा का एक गंभीर विषय है कि पाकिस्तान सामरिक संयम की नीति को कैसे लेता है। मेरी राय में वह इसे भारत की कमजोरी के रूप में देखता है।-मनीष तिवारी
 


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