विपक्षी दलों ने वोट बैंक की खातिर युवाओं को गुमराह किया

punjabkesari.in Saturday, Jun 25, 2022 - 04:29 AM (IST)

मोदी सरकार की प्रतिष्ठित स्कीम ‘अग्रिपथ’ पर देश आज अंतत: कहां खड़ा है। इस स्कीम ने देश के अनेकों भागों में पिछले कुछ दिनों से युवाओं को क्रोधित तथा उग्र किया है। आमतौर पर प्रशासन उस जगह कुछ भी छोडऩे को तैयार नहीं होता जहां सार्वजनिक तौर पर घोषित स्कीम में प्रतिष्ठा शामिल होती है। अग्रिपथ को लेकर भी कुछ ऐसा ही है। 

तीनों सेनाओं के प्रमुखों ने यह बात स्पष्ट कर दी है कि इस स्कीम की वापसी नहीं होगी जिसका मतलब देश के युवाओं तथा युवतियों में नौकरियों की भूख को समाप्त करने के लिए उन्हें सेना में करियर बनाने के लिए भर्ती किया जाएगा। यह जग-जाहिर है कि महामारी ने आभासी तौर पर नई नौकरियों के सृजन पर एक ब्रेक लगा दिया था। इससे सबसे ज्यादा प्रभावित समाज के, विशेष तौर पर, गांवों में गरीब तथा वंचित वर्ग के लोग थे। 

रक्षा मंत्रालय के आंकड़ों के अनुसार सेना की सभी भर्तियों में 78 प्रतिशत 2018-19 और 2019-20 में ग्रामीण भारत के लोगों को भर्ती किया गया। देश के ऐसे हिस्सों से सेना के लिए भर्ती का प्रतिशत करीब 77 प्रतिशत रहा। महामारी के बाद अर्थव्यवस्था में थोड़ा-सा सुधार हुआ। बेशक यह गति कम थी। अर्थव्यवस्था के विभिन्न सैक्टरों में नौकरियां उत्पन्न करने की गति असमतल रही। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने ‘मिशन मोड’ पर अगले 18 महीनों में युवाओं के लिए 10 लाख सरकारी नौकरियों को उत्पन्न करने की बात कही। ऐसा संभव प्रतीत नहीं होता। जहां तक निजी क्षेत्र का सवाल है वह भी नौकरियां उत्पन्न करने में असमर्थ है। ऐसा जाना जाता है कि निजी क्षेत्र बाजार की जरूरतों को देखते हुए ही नौकरियों का सृजन करता है। हालांकि हमारी बाजारी अर्थव्यवस्था की वास्तविकता कुछ और है। 

अब अडानी ग्रुप की बात ही ले लें। इसने करीब 30,000 नौकरियों को उत्पन्न करने के लिए उत्तर प्रदेश में 70,000 करोड़ रुपए निवेश किए हैं। विदेशी निवेश की जहां तक बात है यह आमतौर पर गैर-विनिर्माण क्षेत्रों में कम ही देखा गया है। इस क्षेत्र में नौकरियों को पैदा करना निश्चित तौर पर एक प्राथमिकता नहीं है। बेशक सरकार खुद ही रोजगार सृजन को लेकर एक महत्वपूर्ण भूमिका अदा कर सकती है तथा जीवन की सुरक्षा को बढ़ाने का काम कर सकती है। इस बात को हम महात्मा गांधी नैशनल रूरल इम्प्लायमैंट गारंटी स्कीम एक्ट  (मगनरेगा) के तहत देख चुके हैं। 

मोदी सरकार को एक नया दृष्टिकोण अपनाने तथा एक बढिय़ा कार्य उत्पन्न करने के लिए नई रेखाओं को खींचने की जरूरत है ताकि देश के युवाओं तथा युवतियों के लिए नई नौकरियां पैदा की जा सकें। यह मानने की जरूरत है कि सरकार ने सैन्य बलों के साथ सुर में सुर मिलाकर अग्रिपथ स्कीम का अनावरण किया हालांकि देश में अग्रिपथ स्कीम में चक्र के बीच में चक्र उलझे हुए हैं। अग्रिवीरों को इस स्कीम के तहत केवल 4 वर्षों के लिए रखा जाएगा। इस अवधि के बाद 75 प्रतिशत लोगों को पैंशन और सबसिडी वाली चिकित्सीय देखभाल के बिना सैन्य करियर छोडऩा पड़ेगा।

यह वाकई में विचलित करने वाली बात है। देश की ज्यादातर विपक्षी पार्टियों ने इस मुद्दे को लेकर अपनी नकारात्मक भूमिका अदा की और अपने वोट बैंक की खातिर युवाओं को गुमराह किया। इस स्कीम के लिए सरकार को विपक्षी पार्टियों को विश्वास में लेना चाहिए था। अग्रिपथ स्कीम से सरकार सैन्य बलों में एक गैप को भरने की भरपाई करेगी। हालांकि कुछ सेवानिवृत्त जनरलों ने इस स्कीम पर सवाल उठाए हैं। क्योंकि देश में नौकरियों का बाजार जटिल और तंग है तो कोई एक कैसे यकीन कर सकता है। हमने पहले ही देख लिया है कि किस तरह से क्रोधित युवा सड़कों और गलियों में उग्र हुए हैं। यह बात सरकार की असफलता को दर्शाती है जो युवाओं के साथ संवाद करने में असमर्थ रही।

दूसरे विचार की बात करें तो सरकार ने युवाओं को शांत करवाने के लिए कुछ कदम उठाने की घोषणा की है हालांकि क्षति पहले से ही हो चुकी है। इससे आगे बढ़ कर कांग्रेसी नेता राहुल गांधी तथा उनकी पार्टी के नेताओं ने एक उचित ढंग से अपने आपको पेश नहीं किया। एक विपक्षी नेता होने के तौर पर राहुल को अपने दिमाग में देश की अर्थव्यवस्था की जमीनी वास्तविकताओं को ध्यान में रखना चाहिए और बेरोजगार युवाओं की दुर्दशा भी समझनी चाहिए।-हरि जयसिंह 


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