सरकार को अयोग्य मानता है विपक्ष

punjabkesari.in Saturday, May 01, 2021 - 03:28 AM (IST)

कोविड-19 की दूसरी लहर के दौरान हमारा देश दिल्ली तथा देश के अन्य शहरों के भीतर मरते हुए मरीजों और अस्पतालों के अंदर और बाहर तड़प रहे लोगों की दयनीय स्थिति के दृश्य देख रहा है। लोगों के जीवन को बचाने के बीच ऑक्सीजन की कमी, सीमित स्रोतों और थके मांदे स्वास्थ्य कर्मियों को देखा जा सकता है। 

ऐसे विचलित करने वाले दृश्यों के अलावा कोई हृदय विदारक दृश्य हो ही नहीं सकता। ऐसी उलझनपूर्ण स्थिति के लिए आखिर कौन जि मेदार है? एक गलत सिस्टम? निष्क्रिय प्रशासन? या फिर संचार एवं स्पष्ट नीतियों की कमी इन सबके लिए जि मेदार हैं। या फिर यूं कहें कि हमें  अपने नेतृत्व की खराब गुणवत्ता को इसके लिए दोषी ठहराना चाहिए? 

कोविड त्रासदी के आयाम के किसी विशेष कारण को चिन्हित करना मुश्किल है। शायद दूसरी लहर ने हमारे बुद्धिमान नेताओं को आश्चर्य चकित कर दिया है। या तो वे उलझन में हैं या विस्मित हैं। दिल्ली हाईकोर्ट ने आकाश की ओर देखते हुए एक टिप्पणी की। उसने कहा, ‘‘हम सभी जानते हैं कि देश को कोई परमात्मा चला रहा है। यह मानव निर्मित परमात्मा है जिसके मिट्टी के पैर हैं?’’

इस टिप्पणी ने मुझे छत्तीसगढ़ के मु यमंत्री की याद दिलाई है, जिन्होंने एक बार कहा था कि मोदी परमात्मा हैं। यदि मोदी परमात्मा हैं तो क्या हमें यह कहना चाहिए कि धरती पर रहने वाला यह परमात्मा अपनी ऋषियों जैसी दाढ़ी के साथ अपने लोगों के लिए असफल हो चुका है? मामलों की बढ़ती हुई गिनती के बड़े ग्राफ के बीच मैं इन संवेदनाओं से भरे काल्पनिक खेल में नहीं पडऩा चाहता। 

कोविड-19 मामलों की बढ़ती गिनती और मौतों की भयानक स्थिति का संज्ञान लेते हुए 22 अप्रैल को सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि ऑक्सीजन और अन्य दवाइयों के उचित आबंटन को लेकर केंद्र को एक राष्ट्रीय योजना को बनाना चाहिए। यहां पहियों के बीच पहिए हैं जिसके बारे में यह खोजना मुश्किल है कि संस्थान का कौन-सा पहिया किसके लाभ के लिए घूम रहा है। हालांकि यह कहना चाहिए कि प्रशासन को पिछली अप्रैल को चुनौती भरे संकेत दिए गए थे। उसके बाद नव बर में इसे फिर दोहराया गया था जिसके तहत यह आशंका व्यक्त की गई थी कि देश में ऑक्सीजन आपूर्ति तथा जरूरी दवाओं की कमी निश्चित तौर पर बन सकती है। 

दिमाग में दो महत्वपूर्ण चुनौतियां रखी गई थीं। यह महामारी व्यक्तियों तथा उनके परिवारों को प्रभावित कर सकती है। दूसरा यह कि इस नाजुक स्थिति से निपटने के लिए समुदायों का हौसला ऊंचा रखना होगा। देश में नकारात्मकता और नाउ मीद होने की कोई सीमा नहीं है। ज्यादातर भारतीयों के साथ समस्या यह थी कि उन्होंने स्थिति का दृढ़ता से मुकाबला करने की बजाय लाचारी का रास्ता अपनाया। संकट की स्थिति से निपटने के लिए स्वास्थ्य देखभाल प्रशासन के साथ मिलकर काम नहीं किया। 

देश के प्रशासन ने ऑक्सीजन आपूर्ति, अस्पताल बैडों की किल्लत तथा दवाइयों की कमी से संबंधित मामले को उलझा कर रख दिया। मुझे खेद है कि प्रधानमंत्री मोदी की सरकार घटनाओं  से निपटने में असफल रही क्योंकि वह चुनावों, कुंभ मेला तथा अन्य सांसारिक मामलों में अति व्यस्त थी। मेरा मानना है कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की जि मेदारी आगे देखने के लिए सीखने की है। उन्हें अपने दिमाग में समाज की उन कमजोरियों को रखना चाहिए जिसने 2020 की कोविड की पहली लहर में सफलता की कहानियों को बड़े हल्के अंदाज में लिया। आज हम देखते हैं कि लोगों का जीवन अस्त-व्यस्त हो चुका है।

आज जबकि राजनेता चुनाव से संबंधित या फिर अपने निजी मामलों को लेकर लड़ते हैं। इस कारण महत्वपूर्ण लोगों के मामले या तो पीछे धकेल दिए जाते हैं या फिर उनकी अनदेखी कर दी जाती है। वे भूल जाते हैं कि राष्ट्रीय जीवन से ज्यादा कुछ भी नहीं। 

यह खेदजनक बात है कि ईमानदार और विश्वसनीय भारतीय इस प्रक्रिया में आज के सबसे ज्यादा दूषित राजनीतिक माहौल में शून्य हो रहे हैं। ये भारतीय आज की गंदी राजनीति से दूर रहना चाहते हैं ताकि उनकी स्वतंत्र सोचने वाली पहचान कायम रह सके। मुझे दुख के साथ यह भी कहना पड़ता है कि देश का नेतृत्व बेहद महत्वपूर्ण मुद्दों पर एक बार फिर लडख़ड़ा गया है। इस बात ने लोगों के मन में सरकार की छवि ‘अति दुर्लभ शरीर’ जैसी बना दी है जो अपने ही असमंजस में कैद होकर रह गई है। ऑक्सीजन आपूर्ति तथा जरूरी दवाइयों की कमी को देखते हुए मरीजों की स्थिति दर्दनाक बनी हुई है। इसके लिए मैं सीधे तौर पर मोदी सरकार को जि मेदार ठहराऊंगा जो बहु-आयामी पहलुओं पर नाकामयाब सिद्ध हुई है। 

‘मन की बात’ रेडियो संबोधन में यह कहना आसान है कि राष्ट्र हिल गया है मगर केंद्र तथा एजैंसियों की असफलताओं के लिए किसकी जवाबदेही तय की जाए। आई.आई.टी. वैज्ञानिकों के अनुसार आज 6 लाख नए केस रोजाना आ रहे हैं और 14 मई से 18 मई के बीच में 38 से 49 लाख सक्रिय कोविड मामले हो जाने की आशंका है। नई डरावनी स्थिति को लेकर केंद्र को अब जागने की जरूरत है। 

सरकार ने जिलों में सरकारी अस्पतालों के लिए 551 ऑक्सीजन प्लांट स्थापित करने की स्वीकृति दी है। केंद्रीय प्रशासन की प्रमुख प्राथमिकता अब अपनी कार्यकुशलता से लोगों का ध्यान भटकाने की है। राज्यों, विपक्षी पाॢटयों तथा मीडिया के साथ सही संवाद की कमी देखी गई है। केंद्र ने उनकी तरफ शंका से देखा है जबकि विपक्ष सरकार को अयोग्य मानती है। निश्चित तौर पर यह एक अच्छी स्थिति नहीं है। केंद्र को राज्य सरकारों तथा विपक्ष के साथ राष्ट्रीय आपदा के दौर में सक्रिय होकर कार्य करना चाहिए। स्वास्थ्य ढांचे को भी युद्ध स्तर पर स्थापित करना होगा। यह भी ध्यान रखना होगा कि अर्थव्यवस्था के महत्वपूर्ण क्षेत्र अपंग न हो जाएं।-हरि जयसिंह
    

 


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