एक समय पाकिस्तान में ‘हिन्दू’ ढूंढने से भी नहीं मिलेंगे

punjabkesari.in Friday, Feb 07, 2020 - 02:02 AM (IST)

पाकिस्तान में हिन्दुओं के साथ अत्याचार, उत्पीडऩ, व्यभिचार, बलात्कार की खबरें हमेशा चिंतित करती रहती हैं और घोर मानवाधिकार को परिलक्षित करती रहती हैं। एक और खबर दुनिया के लिए ङ्क्षचता के रूप में सामने आई है। पाकिस्तान  में हिन्दू बच्चों को जबरन कुरान पढ़ाया जा रहा है। अभी तक दुनिया यह प्रश्न खड़ा नहीं कर पाई  है कि हिन्दू बच्चों को जबरन कुरान क्यों पढ़ाया जाता है। हिन्दू बच्चों को जबरन कुरान पढ़ाने का मकसद सिर्फ और सिर्फ इस्लाम की स्थापना को मजबूत करना है, इस्लाम की सर्वश्रेष्ठता को स्थापित करना है। सिर्फ कुरान पढ़ाए जाने की ही बात नहीं है, बल्कि कुरान की शिक्षाओं के अनुसार आचरण करने और जीवन जीने के लिए मजबूर किया जाता है। जबरन कुरान थोपने का विरोध किया भी नहीं जाता है, जबरन कुरान थोपने का विरोध करने का अर्थ पाकिस्तान में शिक्षा से वंचित होना और ईश निंदा का दोषी भी होना होता है। 

ईश निंदा के नाम से थर-थर कांपते हैं पाकिस्तानी अल्पसंख्यक
ईश निंदा का भयानक दुष्परिणाम क्या होता है, यह दुनिया जानती है, पाकिस्तान के अल्पसंख्यक लोग ईश निंदा का नाम सुनते ही थर-थर कांपने लगते हैं, किसी का धर्म परिवर्तन कराने या फिर धर्म परिवर्तन करने से मना करने पर ईश ङ्क्षनदा का कब दोषी बना दिया जाएगा, इसका पता ही नहीं चलता है। फिर बर्बर हिंसा होती है, बर्बर भीड़ हथियार लेकर कूद पड़ती है। बर्बर भीड़ कानून को अपने हाथ में ले लेती है और जिस पर ईश निंदा का आरोप-प्रत्यारोपित किया जाता है उसे मौत की नींद बर्बर भीड़ सुला देती है। 

अनेकानेक हिन्दू और ईसाई ईश निंदा के चलते अपना जीवन गंवा चुके
यह सिर्फ पाकिस्तान की ही बात नहीं बल्कि अनेकानेक मुस्लिम देशों में ईश निंदा की सजा मौत है और यह सजा इस्लामिक सत्ता के संरक्षण में क्र्रूर और अमानवीय भीड़ देती है। पाकिस्तान में अब तक कट्टरपंथियों की धर्म परिवर्तन की बात नहीं मानने वाले अनेकानेक हिन्दू और ईसाई ईश निंदा के प्रत्यारोपित हिंसा में अपने जीवन गंवा चुके हैं। इस डर के कारण ही हिन्दू कुरान पढ़ाए जाने का विरोध करने से पीछे रहते हैं और डरते हैं। यही कारण है कि पाकिस्तान से हर साल करीब 5 हजार हिन्दू जान बचाने और धर्म की रक्षा करने भारत आ रहे हैं। 2011 से लेकर 2018 तक 36000 से अधिक हिन्दू पाकिस्तान छोड़ कर भारत आए हैं। 

हर सभ्य देश में भाषा, धर्म और शिक्षा के विषय चुनने की आजादी 
पाकिस्तान जैसे इस्लामिक देश की तुलना में लोकतांत्रिक और सभ्य देशों में अल्पसंख्यकों को बहुसंख्यकों से ज्यादा धार्मिक, भाषा और शिक्षा की आजादी मिली हुई है। इसका सर्वश्रेष्ठ उदाहरण तो भारत है। लोकतांत्रिक और मानवीय परम्परा के अनुसार हर सभ्य देश में भाषा, धर्म और शिक्षा के विषय चुनने की आजादी होती है। संकल्प और परम्परा यह है कि किसी भी व्यक्ति को भाषा चुनने, धर्म चुनने और शिक्षा का विषय चुनने के लिए बाध्य नहीं किया जा सकता है। यह आजादी भारत में भी है और यूरोप में भी है, अमरीका में भी है। भारत में कभी भी किसी को रामायण या फिर संस्कृत पढऩे के लिए बाध्य नहीं किया जा सकता है, भाषा भी यहां पर थोपी नहीं जाती है। देश की भाषा हिन्दी को भी जबरन कहीं भी लागू नहीं किया जाता है। धर्म चुनने के लिए भी आजादी है। यही कारण है कि भारत में जहां हिन्दुओं की संख्या दिनों-दिन घटती जा रही है, वहीं इस्लाम और ईसाई धर्म को मानने वालों की संख्या बढ़ती ही जा रही है। 

गैर-सरकारी आंकड़े कहते हैं कि जब देश का विभाजन हुआ था तब इस्लाम को मानने वालों की संख्या 5 प्रतिशत से ज्यादा नहीं थी पर आज देश में इस्लाम को मानने वालों की संख्या करीब 20 प्रतिशत तक पहुंच गई है। ऐसा इसलिए हुआ कि भारत एक लोकतांत्रिक देश है और पाकिस्तान की तरह भारत मजहबी तौर पर पागलपन का शिकार नहीं है। अगर भारत भी पाकिस्तान की तरह मजहबी तौर पर पागलपन का शिकार होता तो यहां पर इस्लाम को मानने वालों की संख्या कभी नहीं बढ़ती।

पाकिस्तान में सिर्फ हिन्दुत्व को मानने वालों को ही नहीं बल्कि ईसाइयत को मानने वालों के भविष्य पर प्रश्नचिन्ह उसी दिन लग गए थे जिस दिन मजहब के आधार पर पाकिस्तान का निर्माण हुआ था। भारत विखंडन और पाकिस्तान के मजहबी जन्म का दुष्परिणाम कितना त्रासदी पूर्ण था, कितना भयावह था, कितना अमानवीय था, कितना हिंसक था, कितना बर्बर था, यह तो विखंडन के दौरान हिंसा में हुई हत्याओं से पता चलता है। कहा यह जाता है कि पाकिस्तान में 8 लाख से अधिक हिन्दुओं की हत्या हुई थी। जिन हिन्दुओं ने इस्लाम स्वीकार कर लिया था उनके जीवन तो बच गए थे पर जिन हिन्दुओं ने इस्लाम स्वीकार नहीं किया था, उनकी हत्या हुई थी, उनके परिवार का कत्लेआम हुआ था। 

जिन्ना भी मजहब के आधार पर पाकिस्तान का भविष्य बनाने के खिलाफ थे
एक तथ्य यह भी है खुद जिन्ना भी मजहब के आधार पर पाकिस्तान का भविष्य बनाने के खिलाफ थे। जिन्ना ने पाकिस्तान जरूर बनवाया था पर वह यह चाहते थे कि पाकिस्तान सिर्फ मुस्लिम वर्ग के लिए संरक्षित नहीं हो बल्कि सभी धर्मों का आदर होना चाहिए, सभी धर्मों को फलने-फूलने का अवसर दिया जाना चाहिए। जब पाकिस्तान अस्तित्व में आया था तब यह नहीं कहा गया था कि पाकिस्तान में रहने वाले गैर मुस्लिम वर्ग को पाकिस्तान छोडऩा पड़ेगा या फिर गैर मुस्लिम वर्ग को इस्लाम स्वीकार करना पड़ेगा। अगर यह प्रस्तावना होती तो फिर पाकिस्तान के अस्तित्व में आने से पूर्व ही पाकिस्तान क्षेत्र के अंदर रहने वाले हिन्दुओं और अन्य गैर मुस्लिम वर्ग के लोग भारत आ जाते। पर समस्या यह रही कि जिन्ना की अंतिम समय की यह इच्छा पाकिस्तान में कभी भी अस्तित्व में नहीं आने दी गई। पाकिस्तान में जितने भी शासक आए वे सिर्फ और सिर्फ इस्लाम की सर्वश्रेष्ठता ही स्थापित करते रहे, एकाकी इस्लामिक सोच को आगे बढ़ाते रहे और गैर मुस्लिम संवर्ग के जीवन को संकट में डालने का कार्य करते रहे। 

हिन्दू बच्चों को कुरान पढऩे के लिए कानूनी तौर पर बाध्य किया गया है, हिन्दू बच्चों के साथ धोखा किया गया है। दरअसल 2017 में पाकिस्तान की नैशनल असैंबली में कुरान पढ़ाने का विधेयक पास हुआ था, उसका नाम होली कुरान विधेयक था। इस विधेयक के माध्यम से ही हिन्दू बच्चों को कुरान पढऩे के लिए बाध्य किया जा रहा है। यह विधेयक जब पास हुआ था तब इस विधेयक के खिलाफ हिन्दुओं ने विरोध-प्रदर्शन किए थे। उस समय पाकिस्तान के शासकों ने कहा था कि यह विधेयक हिन्दुओं, ईसाइयों या सिखों के खिलाफ नहीं है, यह विधेयक हिन्दू, सिख और ईसाई बच्चों पर लागू नहीं होगा। यह विधेयक सिर्फ और सिर्फ मुस्लिम बच्चे जो इस्लाम को मानते हैं, उन्हीं पर लागू होगा। पर पर्दे के पीछे से यह विधेयक सभी स्कूलों पर लागू कर दिया गया। 

जो गैर मुस्लिम बच्चे यह कहते हैं कि उन्हें कुरान नहीं पढऩा है, कुरान पढऩे से उनके मानवाधिकार का हनन होता है, उन्हें धार्मिक आजादी नहीं मिलती है तो फिर उन गैर मुस्लिम बच्चों को स्कूल से बाहर निकाल दिया जाता है। पाकिस्तान में हिन्दू, सिख, ईसाई आदि अल्पसंख्यकों के बच्चों के लिए अलग से कोई स्कूल भी नहीं है। हिन्दू, ईसाई और सिख सहित अन्य अल्पसंख्यकों को अपना स्कूल पाठ्यक्रम तय करने के अधिकार भी नहीं मिले हैं।-विष्णु गुप्त 
 


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