अब जनगणना ऑनलाइन इलैक्ट्रॉनिक फॉर्म के साथ

punjabkesari.in Sunday, Apr 03, 2022 - 06:20 AM (IST)

आसान नहीं होता दूर-दराज के क्षेत्रों में द्वार-द्वार पर दस्तक देकर जनता जनार्दन की गिनती करना। हर 10 साल में की जाने वाली जनगणना में लगभग 20 लाख सरकारी कर्मचारी जुटते हैं। गांव हो या कस्बा, नगर हो या महानगर, प्रत्येक भारतीय के द्वार पर दस्तक देकर जनता जनार्दन की गिनती करना कर्मचारियों के लिए बेहद ही मुश्किल होता है। 

वैसे तो वर्ष 2011 के पश्चात यह जनगणना वर्ष 2021 में संपन्न होनी थी, मगर विश्वव्यापक  कोरोना महामारी के चलते संभव नहीं हो पाई। इसीलिए केंद्रीय गृह मंत्रालय ने होने वाली 16वीं जनगणना 2021 में विशेष रूप से भारतीय नागरिकों की गणना के लिए बेहतरीन ऑनलाइन सुविधा को शामिल किया है और नागरिकों को ऑनलाइन स्व-गणना का अधिकार देने के लिए जनगणना के नियमों में कुछ महत्वपूर्ण बदलाव भी किए हैं। 

जनगणना ‘संशोधन’ 2022 के अनुसार परंपरागत तरीके से द्वार-द्वार जाकर सरकारी कर्मचारी तो जनगणना करेंगे ही, परंतु अब भारत के नागरिक स्व-गणना के माध्यम से भी अनुसूची प्रारूप भर सकते हैं। इसके लिए पहले के नियमों में ‘इलैक्ट्रानिक फार्म’ शब्द जोड़ दिया गया है, जोकि सूचना प्रौद्योगिकी कानून 2000 की धारा-2 की उप धारा-1 के खंड ‘आर’ में दिया गया है। इसके अंतर्गत मीडिया, मैग्नेटिक, कम्प्यूटर जनित माइक्रोचिप या फिर इसी तरह के अन्य उपकरण में तैयार करके भेजी या संग्रहित की गई जानकारी को इलैक्ट्रानिक फार्म में दी गई जानकारी माना जाएगा। यानी कि अब नए भारत की जनता घर-घर में उपलब्ध अपने एंड्रायड मोबाइल के माध्यम से भी अपनी गिनती दर्ज करवा सकती है। 

यदि इस बार ऑनलाइन जनगणना का प्रयोग सफल रहा तो संभव है कि वर्ष 2031 की जनगणना पूरी तरह से ऑनलाइन आधारित होगी और 10 वर्षीय जनगणना की बोझिल परंपरा पूरी तरह से समाप्त होकर देश के पास प्रतिदिन प्रत्येक ग्राम सभा, नगर या महानगर से जीवन मृत्यु की गणना के सटीक व विश्वसनीय आंकड़े मिलते रहेंगे। 

आज की तेज रफ्तार भागती कम्प्यूटरीकृत जिंदगी में ऑनलाइन जनगणना की इस तरकीब को अपनाना काफी लाभदायक होगा। संयुक्त राष्ट्र के मुताबिक दुनिया की जनसंख्या लगभग 700 करोड़ हो चुकी है और यही आंकड़ा वर्ष 2050 में 10 अरब तक पहुंच सकता है। इस आबादी का 50 प्रतिशत से भी ज्यादा हिस्सा महज 9 देशों भारत, चीन, अमरीका, पाकिस्तान, बंगलादेश, नाइजीरिया, कांगो, इथोपिया और तंजानिया में होगा। 

जनसंख्या वृद्धि दर का आकलन करने वाले विशेषज्ञों का तो यहां तक मानना है कि भारत में प्रतिवर्ष लगभग 1.60 करोड़ आबादी बढ़ जाती है। इस जनसंख्या दर के अनुसार हमें अपने देश के करीब 1 अरब 30 करोड़ लोगों की एक निश्चित जनसंख्या प्रारूप में गिनती करनी है, ताकि व्यक्तियों और संसाधनों में समतुलना की आॢथक व रोजगारमूलक विकास की रेखा खींची जा सके। 

जनसंख्या का यह आंकड़ा भारत के भविष्य के विकास की कसौटी पर खरा उतरे, इसका मूल आधार वैज्ञानिक तरीके से की गई सटीक जनगणना ही है। इसलिए यह जरूरी है कि जनगणना की प्रक्रिया को एक ऐसे स्वरूप में बदला जाए, जिससे इसकी गिनती में निरंतरता बनी रहे और प्रत्येक माह सटीक जनगणना का सही आंकड़ा प्राप्त हो सके। जैसे प्राथमिक स्तर पर तो प्रत्येक परिवार को इकाई मान कर गांव के मुखिया, सरपंच, सचिव और पटवारी को यह जिम्मेदारी सौंपी जाए कि वे अपने-अपने गांव के हर परिवार के प्रत्येक सदस्य का नाम व अन्य जरूरी जानकारी प्रारूप के अनुसार पंजियों में दर्ज करता जाए, जिससे उनके गांव की जनगणना का साप्ताहिक, पाक्षिक या मासिक  सटीक आंकड़ा प्राप्त होता रहे। 

जनगणना की इस पद्धति से कोई भी वंचित नहीं रह सकेगा, क्योंकि जनगणना करने वाले लोग स्थानीय होंगे और ऐसे में प्रति माह प्रत्येक गांव या कस्बे से जन्म-मरण का सटीक आंकड़ा प्राप्त होता रहेगा, जिससे विकास खंडों, जिलों व राज्यों की जनगणना का सही आंकड़ा सरकारी रजिस्टर में प्रत्येक साथ-साथ दर्ज होता रहेगा। देश के नगर व महानगर विभिन्न वार्डों में बंटे होते हैं, इसलिए वार्ड वार जनगणना की भी यही पद्धति अपनाई जाए, जिससे देश की जनगणना का वैज्ञानिक, प्रामाणिक और डिजिटल आंकड़ा मिलता रहेगा।  
एक काम करें, जनगणना में शामिल हो जाएं। कल की हर योजना का बेहतर आधार बनाएं॥-प्रि. डा. मोहन लाल शर्मा
 


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