‘अब दुनिया का ध्यान भारतीय आयुर्वेद पर’

punjabkesari.in Tuesday, Mar 02, 2021 - 03:41 AM (IST)

विश्वव्यापी कोरोना वायरस की महामारी का मुकाबला भारत सरकार और जनता ने जिस तरह आयुर्वेदिक औषधियों और काढ़े के बल पर किया है, उससे पूरी दुनिया अचरज में है। इसके साथ ही दुनिया भर के देशों का ध्यान भारतीय आयुर्वेद पर गया है। योग को पहले ही दुनिया में मान्यता मिल चुकी है। दुनिया के कई देशों आस्ट्रेलिया, न्यूजीलैंड, कोलम्बिया, मॉरीशस, बंगलादेश, श्रीलंका और चीन ने भारत के आयुर्वेद को अपने रैगुलर मैडीसिन सिस्टम में लागू किया है। आयुर्वेद का डिग्री वाला डाक्टर इन देशों में जाकर प्रैक्टिस कर सकता है। आयुर्वेद के क्षेत्र में काम करने वाली एक अग्रणी संस्था ने कोरोना की सहायक दवा बनाकर भी दुनिया को चौंका दिया है। 

वास्तव में आयुर्वेद दुनिया की प्राचीनतम चिकित्सा पद्धति है। अब से लगभग दो हजार छह सौ वर्ष पहले जब दुनिया में कहीं कोई व्यवस्थित चिकित्सा पद्घति विकसित नहीं हुई थी उस समय भारत के एक आचार्य सुश्रुत ने ‘सुश्रुत संहिता’ की रचना करके विधिवत शल्य चिकित्सा विज्ञान की शुरूआत की थी। वह दुर्घटनाआें के शिकार व्यक्तियों की शल्य चिकित्सा करके उसी तरह इलाज करते थे जिस तरह से आज के सर्जन करते हैं। इसके छह सौ वर्ष बाद आचार्य चरक ने ‘चरक संहिता’ की रचना करके औषधि चिकित्सा विज्ञान का मजबूत ढांचा तैयार किया। इन दोनों आचार्यों ने न केवल आयुर्वेद की आधारशिला रखी बल्कि उसका पूरा चिकित्सा विज्ञान विकसित किया जो आज के सम्पूर्ण चिकित्सा विज्ञान का मूलाधार है। कोरोना काल में एक बार फिर दुनिया का ध्यान आयुर्वेद पर गया है। 

सुश्रुत शल्य चिकित्सा और चरक औषधि चिकित्सा विज्ञान के प्रणेता माने जाते हैं। भारत से ही चिकित्सा का ज्ञान दुनिया भर के देशों में फैला। लेकिन बाद में कई कारणों से आयुर्वेद में शोध एवं अनुसंधान की परम्परा के ठप्प हो जाने से आयुर्वेद पिछड़ गया। भारत पर मुस्लिमों के आक्रमण और शासनकाल एवं ब्रिटिश साम्राज्य के दौरान उसका लोप हो गया। इस दौरान पश्चिमी देशों में विकसित एलोपैथिक चिकित्सा पद्धति धीरे-धीरे पूरी दुनिया पर हावी हो गई। लेकिन नई खोजों और अनुसंधानों से आज फिर आयुर्वेदिक औषधियों की महत्ता पूरी दुनिया में बढ़ रही है। 

पिछले कुछ वर्षों के ही दौरान विकसित की गई आयुर्वेदिक औषधियां एलोपैथिक दवाआें को मात देती हुई दिखाई दे रही हैं। मोदी सरकार के सत्ता में आने के बाद चिकित्सा की वैकल्पिक पद्धतियों के लिए एक अलग मंत्रालय बनाकर उसके विकास और अनुसंधान पर फिर से ध्यान दिया जा रहा है। इसके परिणामस्वरूप विज्ञान की दूसरी धाराआें की तरह भारतीय चिकित्सा की प्राचीन पद्धति में निरंतर शोध जारी है। जीवनशैली से जुड़ी बीमारियों से निपटने के लिए आज आयुर्वेद में कई तरह के प्रयोग किए जा रहे हैं। औषधियों का विकास एवं अनुसंधान एक सतत् प्रयोगात्मक प्रक्रिया है। आधुनिक वैज्ञानिक दृष्टि से तथ्यों की खोज या व्याख्या के उद्देश्य से इसे अध्ययनपूर्ण जांच या परीक्षा या प्रयोग के रूप में परिभाषित किया जा रहा है। 

दुनिया भर में एलौपैथिक दवाओं के ‘साइड इफैक्ट’ के खतरे को देखते हुए अब सबका ध्यान आयुर्वेद पर गया है। पिछले कुछ दशकों के दौरान कुछ सरकारी और गैर-सरकारी शोंध संस्थानों एवं प्रतिष्ठानों ने इस दिशा में शोध कार्य शुरू किए। इसके अलावा नए प्रभावी अणुओं के विकास के लिए वनस्पति स्रोतों पर जोर दिया गया है। ऑल इण्डिया इंस्टीच्यूट ऑफ आयुर्वेद के निदेशक प्रोफैसर अभिमन्यु कुमार के अनुसार बिनक्रिस्टीन, विनब्लास्टीन, रेसरपीन, एट्रोपिन, आर्टेमिसिविन, प्लंबेजीन, माॢफन, कोडाइन, कक्र्यमिन, बेरबेरीन, ग्लिसरीफ्रिजिन, डिगाक्सिन आदि कुछ एेसे अणु हैं, जिन्हें समकालीन वैज्ञानिकों ने खोजा है। पर इसके मूल पौधों का प्रयोग आयुर्वेद में किया जाता है। बाद में केन्द्रीय आयुर्वेदिक विज्ञान अनुसंधान परिषद को आयुर्वेद चिकित्सा में स्थापित किया गया। 

शोध के बाद आयुर्वेद के कई औषधि योगों में विशेष चिकित्सीय गुण पाए गए हैं जैसेे- लीवर सुरक्षात्मक, गुर्दा-सुरक्षात्मक, हदय-सुरक्षात्मक, कीमोथैरेपी दुष्प्रभाव इत्यादि। अनुसंसाधन की कई औषधियां, यकृत, हृदय-श्वसन, न्यूरो-मनश्चिकित्सा, गैस्ट्रोइंटेस्टाइनल सिस्टम, एंडोक्राइनल प्रणाली विकारों पर अच्छा काम कर रहे हैं। 

एंटीबायोटिक दवाओं के प्रति बैैक्टीरिया व वायरस में बढ़ती प्रतिरोधक क्षमता से निपटने में आयुर्वेद नया विकल्प सावित हो सकता है। अत्याधुनिक तरीके से तैयार आयुर्वेदिक एंटीबायोटिक दवाएं न सिर्फ विशिष्ट प्रकार के बैक्टीरिया से निपटने मेें कारगर हैं, बल्कि उनमें प्रतिरोधी क्षमता भी विकसित नहीं होने दे रही। 

भोपाल के अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) के अध्ययन में आयुर्वेदिक एंटीबायोटिक दवा फीफाट्रोल को एक प्रमुख बैक्टीरिया संक्रमण के खिलाफ प्रभावी पाया गया है। एम्स, भोपाल ने अपने शोध में फीफाट्रोल को स्टैफिलोकोकस प्रजाति के बैक्टीरिया के खिलाफ बेहद प्रभावी पाया है। दरअसल स्टैफिलोकोकस बैक्टीरिया त्वचा, सांस और पेट संबंधी संक्रमण के लिए जिम्मेदार है। इस प्रजाति के कई बैक्टीरिया सक्रिय हैं, जिनमें आेरियस, एपिडर्मिस, स्पोफिटिकस शामिल हैं। फीफाट्रोल एंटीबायोटिक को इन तीनों बैक्टीरिया के खिलाफ प्रभावी रूप से कारगर पाया गया है। एक अन्य बैक्टीरिया पी रुजिनोसा के खिलाफ भी यह असरदार है। 

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने चार साल पहले ठीक ही कहा था कि ‘यदि आयुर्वेद की दवाआें को अधिक से अधिक लोगों तक पहुंचाना है तो इसकी पैकेजिंग पर पूरा ध्यान देना होगा। आधुनिक तरीके से शोध कर इन दवाआें के असर को भी साबित करना होगा। इसके साथ ही आयुर्वेद विशेषज्ञों को शोधपूर्ण लेख तैयार कर स्वास्थ्य संबंधी अंतर्राष्ट्रीय प्रकाशनों में कम से कम 20 फीसदी जगह हासिल करनी होगी।’ 

दिल्ली में आयोजित छठे विश्व आयुर्वेद कांग्रेस में प्रधानमंत्री ने यह भी भरोसा दिलाया था कि उनकी सरकार आयुर्वेद सहित परम्परागत चिकित्सा पद्धतियों को पर्याप्त अहमियत देगी। यह संतोष की बात है कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने आयुर्वेद के विकास की जरूरत को समझा है और इसके लिए अलग मंत्रालय आयुष का गठन किया था। आयुष विभाग के तहत आयुर्वेद, योग, यूनानी, सिद्धा और होम्योपैथी जैसी पारम्परिक चिकित्सा पद्धतियां शामिल हैं। सरकार राष्ट्रीय आयुष मिशन शुरू करने का ऐलान पहले ही कर चुकी है। इसके लिए पांच हजार करोड़ रुपए का बजट दिया गया है। इस मंत्रालय के नेतृत्व में आयुर्वेद में निरंतर शोध जारी है।-निरंकार सिंह    
 


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