अब एक और ‘इंदिरा गांधी’ ढूंढे कांग्रेस

punjabkesari.in Thursday, Mar 11, 2021 - 03:41 AM (IST)

राजनीति के जानकार यह न समझ लें कि कांग्रेस का सितारा आज ही डूबा है। हां, यह अवश्य है कि आज कांग्रेस अपने 130 वर्ष के इतिहास में सबसे निचले पायदान पर है। कांग्रेस समझना चाहती तो अपनी असफलताओं से समझ सकती थी परन्तु उसकी नियति समझने की नहीं बल्कि उत्तरोत्तर अधोगति की ओर जाने की है। राजनीतिक दल असफलताओं का चिन्तन कर आगे अपने भविष्य को संवारने में लगाते हैं परन्तु कांग्रेस शायद अपने अतीत को भूल ही चुकी है। कांग्रेस 1967 में अपनी असफलता के पहले अध्याय से चिन्तन जारी रखती तो उसकी दशा कुछ और होती। 

अपने अंतिम अध्याय में तो कांग्रेस ‘फारगेट फुलनैस’ की स्थिति में पहुंच चुकी है। पाठकवृंद, प्रश्न उठाने लगेंगे कि 1967 के वर्ष को मैंने कांग्रेस के चिन्तन का पहला अध्याय क्यों कहा? तो आईए आपको कांग्रेस के अतीत वर्ष 1967 की कुछ झलकियां दिखा दूं। हुआं यूं कि 1962 में भारत चीन से युद्ध में शर्मनाक ढंग से हार गया। 1964 आते-आते इस शर्मनाक हार से अवसादग्रस्त हो देश के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू चल बसे। 1965 में दूसरे प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री ने पाकिस्तान को युद्ध में हरा तो दिया परन्तु ‘ताशकंद समझौते’ ने उन्हें रूस में मृत्यु का ग्रास बना लिया। दो युद्धों और दो-दो प्रधानमंत्रियों के निधन ने देश को झकझोर दिया। कांग्रेस के लिए यह चिन्तनकाल था। 

राजनीतिक परिदृश्य 1966 में श्रीमती इंदिरा गांधी के प्रधानमंत्री बनने पर बदलने लगा था। 1963 में संसदीय उपचुनाव में समाजवादी दिग्गज डा. राम मनोहर लोहिया फर्रुखाबाद से लोकसभा चुनाव जीत कर संसद में पहुंच गए। स्वतंत्र पार्टी सिद्धांतकार मीनू मसानी गुजरात से राजकोट सीट जीत लोकसभा में गरजने लगे। 1964 में समाजवादी नेता मधुलिमये बिहार की मुंगेर सीट जीत गए। 1964 में भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (भाकपा) का विभाजन हो गया। भाकपा से अलग ए.के. गोपालन, नम्बूद्रीपाद, बी.टी. रणदिवे आदि ने कम्युनिस्ट पार्टी (माकपा) का गठन कर लिया। 

गुजरात, राजस्थान, ओडिशा में स्वतंत्र पार्टी ने कांग्रेस को करारा झटका दिया। उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश और दिल्ली जनसंघ कांग्रेस से छीन कर ले गया। बंगाल और केरल में कम्युनिस्टों ने सरकारें बना लीं। 1967 के लोकसभा और विधानसभाओं के चुनावों में श्रीमती इंदिरा गांधी बतौर प्रधानमंत्री अप्रभावी दिखाई देने लगीं। स्वतंत्र पार्टी ने 44, जनसंघ ने 35, भाकपा ने 23 और  माकपा ने 19, प्रजा सोशलिस्ट पार्टी ने 23 और इतनी ही सीटें लोकसभा में डा. राम मनोहर लोहिया की पार्टी संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी ने जीतीं। 

1967 के चुनाव में क्षेत्रीय राजनीतिक दलों ने भी अपना प्रभाव लोकसभा में जमा लिया। यहां तक कि 35 निर्दलीय भी चुनाव जीत लोकसभा में पहुंच गए। कई राज्यों से कांग्रेस को सत्ता से बेदखल कर दिया। डा. राम मनोहर लोहिया ने गैर कांग्रेसवाद का नारा दिया। कांग्रेस को छोड़ ओडिशा में बीजू पटनायक ने ‘उत्कल-कांग्रेस’ बना ली। पश्चिम बंगाल कांग्रेस के ही दिग्गज नेता अजय मुखर्जी ने ‘बांग्ला कांग्रेस’ का गठन कर लिया। 

ध्यान रहे 1952, 1957 और 1962 के लोकसभा चुनावों में कांग्रेस को तीन चौथाई सीटें मिलती आईं परन्तु 1967 के चौथे लोकसभा चुनाव में उसे मात्र 283 सीटें मिलीं बहुमत से मात्र 22 सीटें ज्यादा। इस चुनाव में कांग्रेस का वोट शेयर 50 प्रतिशत से 40 प्रतिशत पर आकर टिक गया। इन तमाम चीजों से बढ़कर जो चीज देश की जनता को देखने को मिली वह थी विचारवान राजनेताओं का लोकसभा में पहुंचना। 

श्रीमती इंदिरा गांधी, जार्ज फर्नांडीस, रविराय, नीलम संजीवा रैड्डी, युवा तुर्क रामधन, डा. राम मनोहर लोहिया, बलराज मधोक, विजयाराजे सिंधिया, बी.के.आर.वी.राव, मोरार जी देसाई, श्रीपाद अमृत डांगे, ए.के. गोपालन, इंद्रजीत गुप्ता, के.सी. पंत, विद्या चरण शुक्ला, भागवत झा आजाद, यशवंत राव चव्हाण, अटल बिहारी वाजपेयी, एस.एम. जोशी, बी.डी. देशमुख जैसे दिग्गज 1967 में गठित लोकसभा के सदस्य बने। सबसे वेस्ट विचारवान राजनेता इस लोकसभा में प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी को चुनौती देते दिखे। सबसे कड़वा घूंट इस चुनाव में रक्षामंत्री कृष्णा मेनन को पीना पड़ा। वह पूर्व बम्बई से आजाद चुनाव लड़े परन्तु हार गए। उन्हें कांग्रेस पार्टी से भी निकाल दिया गया। 

विडम्बना राजनीति की देखिए। 1969 में कांग्रेस दोफाड़ हो गई। नींव कांग्रेस को दोफाड़ करने की रखी मोरार जी देसाई, के.कामराज, एस. निजलिंगप्पा, अतुल्य घोष और नीलम संजीवा रैड्डी ने। परन्तु तब कांग्रेस की नेता सबको पछाड़ते हुए श्रीमती इंदिरा गांधी बनीं। कांग्रेस में वह ‘आयरन लेडी’ कहलाईं। उसमें था चिंतन, इंदिरा में थी साहसिक निर्णय लेने की ताकत और 1971 आते-आते वह ‘दुर्गा’ बन गईं। व्यर्थ दौडऩे से कांग्रेस अपने को खड़ा न कर सकेगी। ठहरो, सोचो और आगे की नीति बनाओ। एक और श्रीमती इंदिरा गांधी ढूंढो। कांग्रेस मेरे से ही न पूछने लगे कि आपको हमारे घर में दखल देने की क्या पड़ गई?-मा. मोहन लाल (पूर्व परिवहन मंत्री, पंजाब)


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