हिंसा नहीं, अध्यात्म के बल पर बने हिंदू राष्ट्र

punjabkesari.in Monday, May 16, 2022 - 04:23 AM (IST)

पिछले दिनों हरिद्वार में जो विवादास्पद और बहुचर्चित हिंदू धर्म संसद हुई थी, उसके आयोजक स्वामी प्रबोधानंद गिरि जी से पिछले हफ्ते वृंदावन में लम्बी चर्चा हुई। चर्चा का विषय था, भारत हिंदू राष्ट्र कैसे बने? इस चर्चा में अन्य कई संत भी उपस्थित थे। चर्चा के बिंदू वही थे, जो पिछले हफ्ते इसी कॉलम में मैंने लिखे थे और जो प्रात: स्मरणीय विरक्त संत श्री वामदेव जी महाराज के लेख पर आधारित थे। लगभग ऐसे ही विचार गत 35 वर्षों में मैं अपने लेखों में भी प्रकाशित करता आ रहा हूं। 

इसका सबसे बड़ा कारण यह है कि भारत की सनातन वैदिक संस्कृति कम से कम 10,000 वर्ष पुरानी है, जिसमें मानव समाज को शेष प्रकृति के साथ सामंजस्य स्थापित करके जीवन जीने की कला बताई गई है। बाकी हर सम्प्रदाय गत 2,500 वर्षों में पनपा है। इसलिए उसके ज्ञान और चेतना का स्रोत वैदिक धर्म ही है। आज समाज में जो वैमनस्य या कुरीतियां पैदा हुई हैं, उनका कारण इन संप्रदायों के मानने वालों की संकुचित मानसिकता है। आज का ङ्क्षहदू धर्म भी इसका अपवाद नहीं रहा। यही कारण है कि जिस हिंदू धर्म की आज बात की जा रही है, वह हमारी सनातन वैदिक संस्कृति के अनुरूप नहीं है। 

पाठकों को याद होगा कि हरिद्वार की धर्म संसद में मुसलमानों के विषय में बहुत आक्रामक और हिंसक भाषा का इस्तेमाल किया गया था, जिसका संज्ञान न्यायालय और पुलिस ने भी लिया। इस संदर्भ में चर्चा चलने पर मैंने स्वामी प्रबोधानंद गिरि जी से कहा कि इस तेवर से तो हिंदू धर्म का भला नहीं होने वाला। जर्मनी और हाल ही में श्रीलंका इसका प्रमाण है, जहां समाज के एक बड़े वर्ग के प्रति घृणा उकसा कर पूरे देश को आग में झोंक दिया जाता है। 

यह सही है कि मुसलमानों के धर्मांध नेता उन्हें हमेशा भड़काते हैं और शेष समाज के साथ सौहार्द से नहीं रहने देते, जिसकी प्रतिक्रिया में भारत का हिंदू ही नहीं अनेक देशों के नागरिक उन देशों में रह रहे मुसलमानों के विरोध में खड़े हो रहे हैं। पर हमारा धर्म इन संप्रदायों से कहीं ज्यादा गहरा और तार्किक है। इसका प्रमाण है कि यूक्रेन में 55 कृष्ण मंदिर हैं, रूस में 50 मंदिर हैं। ईरान, इराक और पाकिस्तान तक के तमाम मुसलमान श्रीकृष्ण भक्त बन चुके हैं। यह कमाल किया है इस्कॉन के संस्थापक आचार्य ए.सी. भक्तिवेदांत स्वामी प्रभुपाद ने, जिन्होंने बिना तलवार या बिना सत्ता की मदद के दुनिया भर के करोड़ों विधर्मियों को भगवद् गीता का ज्ञान देकर कृष्ण भक्त बना दिया।

ऐसा ही एक कृष्ण भक्त ईरानी मुसलमान 30 बरस पहले दिल्ली में मेरे घर पर 2 दिन ठहरा था। वह ईरान के एक धनी उद्योगपति मुसलमान का बेटा था, जो मुझे वृंदावन मंदिर में मिला, जिसका परिवार कट्टर मुसलमान था। तेहरान विश्वविद्यालय में उसके मुसलमान प्रोफैसर ने उसे गीता का ज्ञान देकर भक्त बनाया था। जब इसने अपने प्रोफैसर से इस गुप्त ज्ञान को प्राप्त करने का स्रोत पूछा तो प्रोफैसर ने बताया कि अमरीका के एक विश्वविद्यालय में पी.एच.डी. की पढ़ाई के दौरान उन्होंने स्वामी प्रभुपाद का प्रवचन सुना, उनसे कई बार मिले और फिर कंठीधारी कृष्ण भक्त बन गए। जबकि बाहरी लिबास में ये दोनों गुरु-शिष्य मुसलमान ही दिखते थे। 

यह भक्त जब मेरे घर रहा तो सुबह 3 बजे हम दोनों हरे कृष्ण महामंत्र का जप करने बैठे। मैंने तो डेढ़ घंटे बाद अपना जप समाप्त कर भजन करना शुरू कर दिया पर यह ईरानी भक्त 6 घंटे तक लगातार जप करता रहा और तब चरणामृत पीकर उठा। उसकी साधना से मैं इतना प्रभावित हुआ कि उसे आर.एस.एस. की शाखा में ले गया, जहां उससे मिलकर सभी को बहुत हर्ष हुआ। इसी तरह पाकिस्तान का एक लम्बा-चौड़ा मुसलमान आई.टी. इंजीनियर मुझे लंदन के इस्कॉन मंदिर में मिला। पूछने पर पता चला कि उसने अपने एक अंग्रेज मित्र के घर प्रभुपाद की लिखी पुस्तक ‘आत्म साक्षात्कार का विज्ञान’ पढ़ी तो इतना प्रभावित हुआ कि अगले ही दिन वह इस्कॉन मंदिर पहुंच गया और फिर क्रमश: श्रीकृष्ण भक्त बन गया। अब उसका दीक्षा नाम हरिदास है। 

ये उदाहरण पर्याप्त हैं यह सिद्ध करने के लिए कि हमारी सनातन संस्कृति में इतना दम है कि अगर मस्जिदों के सामने हनुमान चालीसा पढ़ने और भीड़ में जय श्री राम का जोर-जोर से नारा लगाने की बजाय देश भर के उत्साही हिंदू, विशेषकर युवा, योग्य गुरुओं से श्रीमद् भगवद गीता का ज्ञान प्राप्त कर लें और उसके अनुसार आचरण करें, तो इसमें कोई संदेह नहीं कि वे भी अर्जुन की तरह जीवन में हर महाभारत जीत सकते हैं। यह ज्ञान ऐसा है कि सबका दिल जीत लेता है-विधर्मी का भी। 

बहुत कम लोगों को पता है कि मुगलिया सल्तनत के ज्यादातर बादशाह, शहजादे और शहजादियां वृंदावन के स्वामी हरिदास परम्परा के शिष्य रहे हैं। 1897 में विलायत में जन्मे रिचर्ड निक्सन प्रथम विश्वयुद्ध में विलायती वायुसेना के पायलट थे, जो जवानी में भारत आ गए। संस्कृत व शास्त्रों का अध्ययन किया और बाद में स्वामी कृष्ण प्रेम नाम से भारत में विख्यात हुए। स्वामी प्रभुपाद ही नहीं, भारत के अनेक वैष्णव आचार्यों के भी सैंकड़ों मुसलमान शिष्य पिछली शताब्दियों में भारत में हुए और उन्होंने उच्च कोटि के भक्ति साहित्य की रचना भी की। 

उत्तर प्रदेश में आई.ए.एस. से निवृत्त हुए मेरे मित्र श्री नूर मोहम्मद का कहना है कि ‘‘पश्चिमी एशिया से तो 2 फीसदी मुसलमान भी भारत नहीं आए थे। बाकी सब तो भारतीय ही थे जो या तो सत्ता के लालच में या हुकूमत के डर से या सवर्णों के अत्याचार से त्रस्त हो कर मुसलमान बन गए थे। वे तब भी पिटे और आज भी पिट रहे हैं।’’ नूर मोहम्मद कहते हैं कि ‘‘धर्मांध मौलवी हो या हिंदू धर्म गुरु, दोनों ही शेष समाज के लिए घातक हैं, जो लगातार समाज में विष घोलते हैं।’’ 

इस सब चर्चा के बाद स्वामी प्रबोधानंद गिरि जी से यह तय हुआ कि हम निश्चय ही इस तपोभूमि भारत को सनातन मूल्यों पर आधारित हिंदू राष्ट्र बनाना चाहते हैं और उसके लिए अपनी शक्ति अनुसार योगदान भी करेंगे। पर इस विषय पर देश के संत समाज में व्यापक विमर्श होना चाहिए कि हमारा हिंदू राष्ट्र स्वामी वामदेव जी के सपनों के अनुकूल होगा, जिनका सम्मान सभी धर्मों के लोग करते थे या केवल निहित राजनीतिक स्वार्थों की पूर्ति के लिए। ऐसा हिंदू राष्ट्र बने, जिसमें मुसलमान या अन्य धर्मावलम्बी भी स्वयं को हिंदू कहने में गर्व अनुभव करें। जहां प्रकृति से सामंजस्य रखते हुए हर भारतीय अपने जीवन को वैदिक नियमों से संचालित करे और पश्चिम की आत्मघाती उपभोक्तावादी चकाचौंध से बचे। जिसका आह्वान आज पुरी पीठाधीश्वर शंकराचार्य स्वामी निश्चलानंद महाराज जी भी कर रहे हैं। हरि हमें सदबुद्धि दें और हम सब पर कृपा करें।-विनीत नारायण    


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