चीन नहीं, अब भारत का सबसे बड़ा व्यापारिक सांझीदार अमरीका  ,ऑस्ट्रेलिया, जापान

punjabkesari.in Wednesday, Jun 22, 2022 - 06:17 AM (IST)

गलवान घाटी की हिंसा और कोरोना महामारी से पहले भारत और चीन के बीच व्यापार बहुत अच्छा चल रहा था। तब चीन भारत का सबसे बड़ा व्यापारिक सांझीदार था, लेकिन दोनों देशों के बीच व्यापार बराबरी का नहीं था। भारत से चीन कम आयात करता था और भारत को निर्यात अधिक करता था। समय के साथ दोनों देशों के बीच व्यापारिक घाटा बढ़ता चला गया। इसमें भारत को नुक्सान ज्यादा हो रहा था, क्योंकि बहुत सारे इलैक्ट्रॉनिक्स, इलैक्ट्रिकल उत्पादों, दवा उद्योग में इस्तेमाल होने वाले मुख्य रसायन ए.पी.आई. के लिए भी भारत की निर्भरता चीन पर अधिक थी।

लेकिन वर्ष 2020 में गलवान हिंसा के बाद सब कुछ बदल गया और अब भारत धीरे-धीरे चीन से अपना व्यापार कम कर रहा है। इसके लिए भारत दूसरे व्यापारिक सांझीदार ढूंढ रहा है। ऐसा करने वाला सिर्फ भारत ही नहीं है, बल्कि कई दूसरे देश भी कोरोना महामारी के बाद से चीन से दूरी बना रहे हैं। उनको लगता है कि चीन ने जानबूझ कर पूरी दुनिया में कोरोना महामारी फैलाई, ताकि वह इस महामारी से पूरी दुनिया को पंगु बना कर अपना व्यापार आगे बढ़ाए। 

वहीं ऑस्ट्रेलिया, जापान और कोरिया सहित दक्षिण-पूर्वी एशिया के देश चीन की आक्रामकता के कारण उससे दूरी बना रहे हैं। दुनिया में चीन कर्ज जाल में फंसाने वाले देश के रूप में भी जाना जाता है, जिससे दुनिया में चीन की साख गिरी है। 

इस बीच एक अच्छी खबर निकल कर आ रही है, कि चीन की जगह अब अमरीका भारत का सबसे बड़ा व्यापारिक सांझीदार बन गया है। इस खबर के सामने आते ही चीन तिलमिला उठा है और वह भारत को अपने मुखपत्र ‘ग्लोबल टाइम्स’ के जरिए नसीहत दे रहा है। वर्ष 2022 में अमरीका के साथ भारत का 119.42 अरब अमरीकी डॉलर का व्यापार हुआ है। पिछले वर्ष यानी वर्ष 2020-21 में दोनों देशों में 80.51 अरब अमरीकी डॉलर का व्यापार हुआ था। यानी चीन का एक और बड़ा बाजार उसके हाथ से फिसल गया है। 

वहीं आर्थिक मामलों के कुछ जानकारों का कहना है कि अब भारत और अमरीका के बीच व्यापारिक सांझेदारी ऐसे ही बढ़ती रहेगी। अमरीका के साथ व्यापार करने में भारत के पास ट्रेड सरप्लस है, जिसमें भारत अमरीका को अधिक मात्रा में निर्यात कर रहा है। वहीं दूसरी तरफ हमारा चीन के साथ जो व्यापार होता है, उसमें हमें ट्रेड डेफिसिट हो रहा है, यानी हम चीन को निर्यात कम कर रहे हैं और आयात अधिक कर रहे हैं। लंबे समय तक ये व्यापारिक संबंध भारत के लिए नुक्सानदायक हैं।


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