नेहरू-गांधी परिवार की मुट्ठी में बंधी पार्टी में ‘कोई कुर्सी खाली नहीं’

punjabkesari.in Wednesday, Sep 02, 2020 - 05:58 AM (IST)

देश की सबसे पुरानी पार्टी में चल रही सर्कस के बारे में किस तरह प्रतिक्रिया व्यक्त करें? क्या इसे चाय की प्याली में तूफान कहें या इसे 1999 के बाद सोनिया की सत्ता को पहली चुनौती मानें जब शरद पवार ने विद्रोह का बिगुल बजाया था या क्या इसे राहुल की शैली में पार्टी का शुद्धिकरण मानें? 

कांग्रेस के 23 नेताआें के समूह द्वारा फैंके गए लैटर बम ने कांग्रेस में हलचल मचा दी है। इन 23 नेताआें में राज्यसभा में विपक्ष के नेता गुलाम नबी आजाद, उपनेता आनंद शर्मा, पूर्व मंत्री सिब्बल, तिवारी, प्रसाद आदि शामिल हैं। इस पत्र से सोनिया चकित हैं। हालांकि इस पत्र में पार्टी को इसकी मरणासन्न अवस्था और जड़त्व से बाहर निकालने के लिए व्यापक बदलाव का आह्वान किया गया है और कहा गया है कि एक प्रभावी तथा पूर्णकालिक नेता की नियुक्ति की जाए। 

सोनिया गांधी ने अपने त्यागपत्र के नाटक को दोहराया 
पार्टी में हर स्तर पर स्वतंत्र, निष्पक्ष और लोकतांत्रिक चुनाव करवाए जाएं और पार्टी को सामूहिक रूप से मार्ग निर्देशित करने के लिए एक संस्थागत नेतृत्व की स्थापना की जाए। पार्टी की लंबी चली कार्यकारी समिति की बैठक में सोनिया गांधी ने अपने त्यागपत्र के नाटक को दोहराया और उनके त्यागपत्र को कार्यसमिति ने अस्वीकार कर दिया। इससे तीन बातें स्पष्टत: सामने आती हैं। नेहरू-गांधी परिवार की मुट्ठी में बंधी पार्टी में कोई कुर्सी खाली नहीं है। पार्टी में शीर्ष पद के बारे में कोई बात नहीं की जा सकती है और इस पर केवल गांधी परिवार का सदस्य ही बैठ सकता है तथा गांधी परिवार ही कांग्रेस का डी.एन.ए. है। 

सोनिया गांधी तब तक इस कुर्सी पर बैठी रहेंगी जब तक उनका लाडला राहुल इस कुर्सी पर बैठने के लिए तैयार नहीं हो जाता। हालांकि इससे पार्टी के नेताआें में निराशा भी है। 5 दिन बाद पार्टी में टकराव देखने को मिला और इसे विद्वेष की राजनीति कहा जाने लगा। सोनिया ने पूर्णकालिक पार्टी अध्यक्ष की नियुक्ति की बात कही जबकि इन 23 बड़े नेताआें के स्थान पर राहुल के समर्थक छोटे नेताआें की समिति के गठन की बात कही गई। इन नेताआें का न तो जनाधार है और न ही वे जनता से जुडे़ हुए हैं। 

इन 23 नेताआें को गद्दार कहकर उनको पार्टी से निकाले जाने की मांग की जाने लगी और कुछ नेताआें को निकाला भी जाने लगा है। हालांकि सोनिया कहती रही हैं कि हम एक परिवार हैं और हम माफ करने और भूल जाने में विश्वास करते हैं। राहुल के समर्थक नेताआें ने इन 23 नेताआें पर आरोप लगाया है कि उनके कारण पार्टी असफल रही है। उनका कहना था कि 2009 में लोकसभा में हमारे 200 से अधिक सदस्य थे जबकि 2014 में हम 44 पर आ गए। आप सभी लोग तब मंत्री थे। आप लोगों को देखना चाहिए था कि आप कहां विफल रहे। केवल सोनिया और राहुल भाजपा सरकार के गलत कार्यों को उजागर कर रहे हैं। तथापि यह पत्र मां-बेटे के नेतृत्व की पहली निंदा है। 

कांग्रेस नेहरू गांधी परिवार पर निर्भर है और वह सोनिया गांधी से हाथ जोड़ रही है कि वह अंतरिम अध्यक्ष बनी रहे। सोनिया गांधी ने दिसंबर 2017 में पार्टी की कमान अपने बेटे राहुल को सौंप दी थी किंतु लगभग 22 माह बाद पिछले अक्तूबर से वे पार्टी की अंतरिम अध्यक्ष बनी हुई हैं। आजाद का कहना है कि हम भाजपा का मुकाबला करना चाहते हैं किंतु पार्टी ने यह सुनिश्चित किया है कि हम केवल परिवार का मुकाबला करें। हमारी विश्वसनीयता समाप्त हो गई है और हमें केवल गांधी परिवार का सैटेलाइट माना जा रहा है। 

एक अन्य नेता का कहना है कि अब वह समय नहीं रह गया जब देवकांत बरुआ ने कहा था कि इंदिरा भारत है और भारत इंदिरा है। सोनिया इंदिरा नहीं है और आज के गांधी कांग्रेस नहीं हैं। एक वरिष्ठ नेता के शब्दों में नि:संदेह यह पार्टी के लिए कठिन समय है। यह दु:स्साहस का समय नहीं है। पार्टी पर अस्तित्व का संकट है। किंतु पार्टी ने बहुलवादी लोकतंत्र को बढ़ावा दिया और यह इस संकट से भी उबर सकती है। जनता के नेतृत्व का अभाव है जो निर्णायक, सही और समय पर निर्णय ले सके और समय अंतराल में उनको लागू कर सके। आज पार्टी एक सुदृढ़ विचारधारा के अभाव से गुजर रही है और एकजुटता के लिए वह परिवार पर निर्भर है। 

क्या इसका पुनरुद्धार संभव है 
क्या कांग्रेस को अब भी बचाया जा सकता है? क्या इसका पुनरुद्धार संभव है और क्या यह महत्वपूर्ण है? निश्चित रूप से बीमार सोनिया समझती हैं कि यह एक आपात स्थिति है। पार्टी का पतन निरंतर जारी है और दो बार लोकसभा चुनावों में हार तथा नेतृत्व के संकट के कारण पार्टी में जड़त्व की स्थिति है। समय आ गया है कि वे लोकतांत्रिक तरीके से पार्टी में आमूल-चूल परिवर्तन करें। महत्वपूर्ण मुद्दों पर वैचारिक स्थिति स्पष्ट करें न कि इधर-उधर की बातें करें। रोजी-रोटी के मुद्दों पर ध्यान देकर जनता से जुडऩे का प्रयास करें। 

सोनिया के पास विकल्प सीमित हैं। या तो पार्टी भाजपा के साथ समझौता कर ले या एक सुदृढ़ नेता को चुने जो इस मरणासन्न स्थिति से उबार सके किंतु राजनीतिक योजना के अभाव में और केवल सतही बदलाव करने के कारण लगता है पार्टी मृत्युहीन मृत्यु की दिशा में बढ़ रही है। अत: यह आवश्यक है पार्टी अपनी स्थिति में सुधार करे अन्यथा यह वामपंथी दलों की तरह अप्रासंगिक बन जाएगी। सोनिया अच्छी तरह समझती हैं कि राजनीति धारणा का खेल है। उन्हें अपने अनुभव और राजनीतिक संपर्कों का प्रयोग कर पार्टी को इस संकट से बाहर निकालना होगा। देखना यह है कि वे इसमें कितना सफल होती हैं। इस संबंध में वे जितना जल्दी कदम उठाएंगी उतना अच्छा है। किंतु कांग्रेस को एक जीवनहीन जीवन जीने नहीं दिया जाना चाहिए। यह बात ध्यान में रखनी होगी कि राजनीति एक निर्मम और माफ न करने वाली दासी है।-पूनम आई. कौशिश


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