नीति आयोग की 6 वर्षों की कारगुजारी की होगी समीक्षा

punjabkesari.in Wednesday, Dec 01, 2021 - 05:35 AM (IST)

प्रधानमंत्री कार्यालय (पी.एम.ओ.) की टेढ़ी नजर अब कथित रूप से अपने प्रमुख थिंक टैंक नीति आयोग पर है और इसने इसकी 6 वर्षों की कारगुजारी की विस्तृत समीक्षा के आदेश दिए हैं जब इसे योजना आयोग के स्थान पर गठित किया गया था। स्पष्ट तौर पर यह विचार जोर पकड़ता जा रहा है कि यह अपने उन उद्देश्यों के अनुरूप कारगुजारी नहीं दिखा रहा है जिनके लिए इसका गठन किया गया था और इसलिए इस पर पुर्नविचार की जरूरत है। 

सरकार ने एक समीक्षा समिति का गठन किया है जिसमें अत्यंत कुशल लोग हैं, पूर्व दूरसंचार सचिव अरुणा सुंदर राजन तथा पर्यावरण सचिव रामेश्वर गुप्ता के अतिरिक्त इसमें भारत की गुणवत्ता परिषद के चेयरमैन आदिल जैनुलभाई तथा बैन कैपिटल के अमित चंद्र, अवाना कैपिटल की अंजलि बांसल तथा ग्लोबल अलायंस फॉर मॉस एंटरप्रेन्योरशिप के रवि वैंकटेशन जैसे कार्पोरेट लीडर्स शामिल हैं। 

आयोग का आखिरी बार पुनर्गठन तब किया गया था जब वर्तमान उप-चेयरमैन राजीव कुमार की नियुक्ति अरविंद पनगढिय़ा के अचानक इस्तीफे के बाद की गई थी। उनके कार्यकाल को 2019 में विस्तार दिया गया था (संयोग से यह कार्यकाल मोदी सरकार के कार्यकाल के साथ ही समाप्त होगा)। इससे पहले सरकार ने सी.ई.ओ. अमिताभ कांत का कार्यकाल जून 2022 तक बढ़ाया था। कुमार तथा कांत दोनों ही नीति निर्माण से जुड़े मुद्दों में महत्वपूर्ण रूप से शामिल रहे हैं। स्पष्ट तौर पर प्रस्तावित बदलाव नवागंतुकों के लिए है जिन्हें समीक्षा पूर्ण होने के बाद शामिल किया जाएगा। 

सूत्रों का कहना है कि जहां कुमार तथा कांत की नीति निर्माण में बड़ी भूमिका है, विशेषकर औद्योगिक विकास, तकनीक तथा निवेश के मामलों में, सरकार महसूस करती है कि थिंक टैंक को अब नीति तथा योजना से जुड़े मुद्दों से अधिक जोडऩा चाहिए। स्पष्ट है कि सरकार, जो अपने दूसरे कार्यकाल के दूसरे अद्र्ध की ओर अग्रसर है, अब अधिक सक्रिय नीति आयोग की परिकल्पना करती है जो बाहरी विशेषज्ञों के साथ विचार-विमर्श के लिए खुला है तथा एक नॉलेज पूल का निर्माण करता है जो केंद्र के साथ-साथ राज्यों के लिए भी लाभकारी होगा। जहां एक्सपर्ट पैनल ने अपने सुझावों को अंतिम रूप दे दिया है, किसी भी संभावित बदलाव पर अंतिम निर्णय स्वाभाविक रूप से पी.एम.ओ. ही करेगा। 

एन.एच.ए.आई. को शीघ्र नया चेयरमैन मिलेगा : हम सभी ने गौर किया है कि कैसे हाल ही में सरकार ने देश की प्रमुख जांच एजैंसियों के निदेशकों के कार्यकाल में विस्तार किया है। तात्कालिकता की इस भावना ने अब सरकार का ध्यान नैशनल हाईवे अथॉरिटी ऑफ इंडिया (एन.एच.ए.आई.) के नए चेयरमैन के साथ-साथ सदस्य (वित्त) की तलाश पर केंद्रित कर दिया है। 

एन.एच.ए.आई. मोदी सरकार की गणनाओं के लिए महत्वपूर्ण है- उच्च मार्गों का तेजी से निर्माण एक ऐसी उपलब्धि हो सकती है जिसे सरकार स्पष्ट तौर पर लोगों को दिखा सकती है। एन.एच.ए.आई. के चेयरमैन के पद पर 2015 से 6 वर्ष के भीतर 8 लोग बैठ चुके हैं। आखिरी चेयरमैन 1988 बैच के आई.ए.एस. अधिकारी एस.एस. संधू थे जिन्हें जुलाई में अपने मूल काडर उत्तराखंड में इसके मुख्य सचिव के तौर पर वापस भेज दिया गया था। कुछ चेयरमैनों का कार्यकाल तो महज कुछ महीनों का ही रहा। इसी तरह सदस्य (वित्त) का पद 2 वर्षों से खाली है। 

मगर अब सूत्रों ने सूचना दी है कि यद्यपि चुनाव समिति ने कथित रूप से चयन के लिए नामों के प्रस्ताव की प्रक्रिया को अंतिम रूप दे दिया है सरकार इस प्रक्रिया को अनदेखा करते हुए 1990-1993 बैच के अधिकारियों के बीच से ही नए सदस्य (वित्त) की सीधी नियुक्ति कर देगी। इसी तरह एन.एच.ए.आई. का कोई भी चेयरमैन चुनाव समिति के माध्यम से नहीं आया। इस बार भी कइयों को आशा है कि आगामी चेयरमैन की नियुक्ति मंत्रिमंडल की नियुक्ति समिति द्वारा सीधे की जाएगी। 

विनिवेश के लिए आगे का रास्ता : एयर इंडिया का विनिवेश हो गया है लेकिन विनिवेश सचिव तुहिन कांत  पांडे को आराम कहां। उन्होंने पहले ही भारत पैट्रोलियम कार्पोरेशन लिमिटेड (बी.पी.सी.एल.) सहित सरकारी स्वामित्व वाली 5 कम्पनियों के निजीकरण का काम सुनिश्चित करने का जिम्मा उठाया है जो मार्ग पर है तथा वर्तमान वित्त वर्ष में पूरा हो जाएगा। पांडे को विश्वास है कि बी.पी.सी.एल. तथा शिपिंग कार्पोरेशन ऑफ इंडिया (एस.सी.आई.)  के निजीकरण को अंतिम रूप दे दिया जाएगा तथा भारतीय जीवन बीमा निगम (एल.आई.सी.) को मार्च 2022 तक स्थानीय बाजारों में सूचीबद्ध कर लिया जाएगा। 

दांव ऊंचे हैं। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी एल.आई.सी. के लिए आई.पी.ओ. को आगे बढ़ाने को उत्सुक हैं क्योंकि यह सरकार को 40,000 करोड़ रुपए से एक खरब रुपए तक इकट्ठे करने में मदद कर सकता है, एक ऐसा कोष जिसकी जरूरत बजट में बढ़ते अंतर को पाटने के लिए है। इसका सूचीबद्ध होना महत्वपूर्ण है तथा अब यह पांडे तथा वित्त मंत्रालय में उनके सहयोगियों तथा अन्य संबंधित सदस्यों पर निर्भर करता है कि वे विनिवेश के लक्ष्य को हासिल करें जिसे सरकार ने वित्त वर्ष 2022 के लिए निर्धारित किया है। मगर एयर इंडिया की बिक्री के अनुभव से अन्य सरकारी सम्पत्तियों के तेजी से निजीकरण की आशाओं को बल मिला है।-दिल्ली का बाबू दिलीप चेरियन
 


सबसे ज्यादा पढ़े गए

Recommended News

Related News