चीन से ‘व्यापार घाटा’ घटाने के लिए नई रणनीति जरूरी

punjabkesari.in Saturday, Oct 19, 2019 - 03:39 AM (IST)

यदि हम भारत-चीन विदेश व्यापार के आंकड़ों को देखें तो पाते हैं कि दोनों देशों के बीच 2001-02 में आपसी व्यापार महज 3 अरब डॉलर था जो वर्ष प्रतिवर्ष छलांगें लगाकर आगे बढ़ता गया। पिछले वित्त वर्ष 2018-19 में भारत और चीन के बीच द्विपक्षीय व्यापार करीब 88 अरब डॉलर रहा। इसमें भारत से चीन को किया गया निर्यात करीब 18 अरब डॉलर रहा तथा चीन से आयात करीब 70 अरब डॉलर रहा। ऐसे में भारत का विदेश व्यापार घाटा 52 अरब डॉलर रहा। 

यह बात महत्वपूर्ण है कि अप्रैल 2018 में वुहान वार्ता में चीन ने भारत के साथ व्यापार असंतुलन को कम करने पर ध्यान देने की बात कही थी। इसके अलावा वर्ष 2018 की शुरूआत से ही अमरीका-चीन ट्रेड वॉर के कारण कई वस्तुएं, जिनका चीन अमरीका से आयात करता था, उनका आयात अमरीका द्वारा लगाए अधिक शुल्क के कारण चीन ने कम कर दिया है तथा ऐसी वस्तुओं का आयात चीन ने भारत से प्रारम्भ कर दिया है। इस कारण चीन को भारत के निर्यात बढ़ गए और वर्ष 2018-19 में पहली बार चीन के साथ भारत के व्यापार घाटे में वर्ष 2017-18 की तुलना में करीब 10 अरब डॉलर की कमी आई है। इन्हीं कारणों के चलते वर्ष 2019-20 में भी चीन के साथ भारत के व्यापार घाटे में कमी आने का परिदृश्य दिखाई दे रहा है। 

ट्रेड वार और मंदी 
यकीनन इस समय चीन की अर्थव्यवस्था अमरीका से बढ़ते ट्रेड वार और बढ़ती मंदी के कारण सबसे बुरे दौर से गुजर रही है और चीन वैश्विक व्यापार बढ़ाने के लिए हरसम्भव कोशिश कर रहा है। ऐसे में 12 अक्तूबर 2019 को चेन्नई के मामल्लापुरम में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के साथ चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग दूसरी अनौपचारिक शिखर वार्ता में सकारात्मक कारोबार संकेतों के साथ आगे बढ़े हैं। दोनों देशों के बीच व्यापार घाटा, निवेश और सेवाओं से संबंधित मुद्दों को सुलझाने के लिए मंत्रिस्तरीय व्यवस्था का गठन सुनिश्चित किया गया। इसके साथ-साथ चीन ने क्षेत्रीय व्यापक आर्थिक सांझेदारी (आर.सी.ई.पी.) मुक्त व्यापार  समझौते को लेकर भारत की ङ्क्षचताओं के निराकरण हेतु सहमति दी। 

उल्लेखनीय है कि वर्ष 2019-20 में भारत-चीन कारोबार का लक्ष्य 95 अरब डॉलर है। चीन इस समय भारत का सबसे बड़ा व्यापारिक सांझेदार है। अप्रैल 2019 में चीन के साथ द्विपक्षीय कारोबार में व्यापार घाटे को कम करने के लिए भारत ने 380 उत्पादों की सूची चीन को भेजी है, जिसके तहत चीन को निर्यात बढ़ता जा रहा है। इनमें मुख्य रूप से बागवानी, वस्त्र, रसायन और औषधि क्षेत्र के उत्पाद शामिल हैं। पिछले दिनों भारत में चीन के राजदूत सन वेइडोंग ने कहा कि अमरीका के साथ चीन के बढ़ते हुए ट्रेड वॉर के बीच चीन विदेश व्यापार के लिए भारत की जरूरत अनुभव कर रहा है और भारत-चीन व्यापार असंतुलन कम करने पर चीन द्वारा ध्यान दिया जा रहा है। 

वर्ष 2018 की शुरूआत से चीन के अमरीका के साथ व्यापार युद्ध के कारण चीन में 35 लाख से अधिक लोगों का रोजगार छिन गया है और उसकी कारोबारी व आपूर्ति शृंखला टूट रही है। चीन में तेजी से मंदी का परिदृश्य बढ़ता जा रहा है। हाल ही में चीन के राष्ट्रीय सांख्यिकी ब्यूरो (एन.बी.एस.) ने कहा है कि चीन में सकल घरेलू उत्पाद (जी.डी.पी.) की वृद्धि दर वर्ष 2018 में घटकर 6.6 फीसदी पर आ गई है।  यह 27 साल में सबसे कम है। अब चीन के लिए निकट भविष्य में मंदी घटाना और विकास दर बढ़ाना कठिन काम है। ऐसे परिदृश्य में चीन-भारत के साथ कारोबार बढ़ाने की अहमियत को समझ रहा है। भारत के पास कई ऐसे कारण हैं जिससे इसकी अहमियत बढ़ रही है। इसके पास तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्था और शानदार बाजार हैं। 

दोनों को एक-दूसरे की जरूरत
इसमें कोई दो मत नहीं है कि भारत और चीन दोनों को कारोबार के लिए एक-दूसरे की जरूरत है। ये दोनों देश अपने-अपने आॢथक संसाधनों और मानव संसाधनों की बदौलत दुनिया में चमकते हुए दिखाई दे रहे हैं। चीन दुनिया का कारखाना बना हुआ है, दुनिया का सबसे बड़ा निर्यातक देश है। सॉफ्टवेयर विकास के क्षेत्र में भारत और हार्डवेयर विकास के क्षेत्र में चीन दुनिया में सबसे आगे है इसलिए दोनों देश अगर मिलकर काम करते हैं तो वे दुनिया में शीर्ष पर रहेंगे। 

निश्चित रूप से 12 अक्तूबर को मोदी और जिनपिंग की दूसरी अनौपचारिक शिखर वार्ता के बाद यह संभावना उभरी है कि अगर भारत और चीन एक-दूसरे को सांझा हित के भागीदार बनाएं तो दोनों देश मिलकर दुनिया की नई आर्थिक शक्ति के रूप में दिखाई दे सकते हैं। अमरीकी राष्ट्रीय खुफिया निदेशालय की ग्लोबल ट्रैंड्स-2025 रिपोर्ट में बहुध्रुवीय दुनिया में भारत और चीन की पहचान प्रमुख नई आर्थिक शक्तियों के तौर पर की गई है। भारत को टाइगर और चीन को ड्रैगन कहा जा रहा है। 

आर्थिक सुधारों में तेजी लानी होगी
यदि हम चाहते हैं कि भारत चीन के साथ व्यापार असंतुलन में तेजी से कमी लाए और चीन को अपना निर्यात बढ़ाए तो हमें कई बातों पर ध्यान देना होगा। हमें आर्थिक सुधारों को गतिशील करना होगा। देश में जी.एस.टी. से संबंधित कई उलझनों का निराकरण करना होगा। अर्थव्यवस्था को डिजिटल करने की रफ्तार तेज करनी होगी, सरकार को निर्यात प्रोत्साहन के लिए और अधिक कारगर कदम उठाने होंगे। सरकार द्वारा भारतीय उत्पादों को प्रतिस्पर्धी बनाने वाले सूक्ष्म आर्थिक सुधारों को लागू किया जाना होगा। मैन्युफैक्चरिंग सैक्टर की अहम भूमिका बनाई जानी होगी। मेक इन इंडिया योजना को गतिशील करना होगा। 

उन ढांचागत सुधारों पर भी जोर दिया जाना होगा, जिनमें निर्यातोन्मुखी विनिर्माण क्षेत्र को गति मिल सके। हमें अपनी बुनियादी संरचना में व्याप्त अकुशलता एवं भ्रष्टाचार पर नियंत्रण कर अपने प्रॉडक्ट की उत्पादन लागत कम करनी होगी। भारतीय उद्योगों को चीन के मुकाबले में खड़ा करने के लिए उद्योगों को नए आविष्कारों, खोज से परिचित कराने के मद्देनजर सी.एस.आई.आर., डी.आर.डी.ओ. और इसरो जैसे शीर्ष संस्थानों को महत्वपूर्ण बनाना होगा।-डा. जयंतीलाल भंडारी 
 


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