नई औद्योगिक नीति : 5 पहलुओं पर विचार करे मान सरकार

punjabkesari.in Wednesday, Jul 13, 2022 - 04:50 AM (IST)

पंजाब में निवेश व रोजगार को बढ़ावा देने के लिए भगवंत मान सरकार नई औद्योगिक नीति लेकर आ रही है। दूसरे राज्यों के मुकाबले आॢथक, औद्योगिक एवं सेवा क्षेत्र में पिछड़ते पंजाब को दक्षिणी एंव पश्चिमी समुद्री तटीय राज्यों के मुकाबले एक ऐसी औद्योगिक नीति की जरूरत है, जो रोजगार इंजन के रूप में पूरे राज्य का एक समान विकास कर सके। पंजाब को देश का एम.एस.एम.ई. केंद्र बनाने वाले पंजाबियों की उद्यमशीलता को गति देने के लिए टिकाऊ समाधान को ध्यान में रख नई औद्योगिक नीति में 5 अहम पहलुओं पर गौर किए जाने की जरूरत है। 

पहला : प्रतिस्पर्धी ‘लॉजिस्टिक्स’, औद्योगिक विकास का आधार। माल भाड़े का बोझ घटाकर पंजाब के उद्योगों को अन्य राज्यों के मुकाबले खड़ा किया जा सकता है। पाकिस्तान की सीमा से लगता ‘लैंड लॉक्ड’ पंजाब समुद्री पोर्ट से दूर होने के कारण ग्लोबल मार्केट में दक्षिणी एंव पश्चिमी राज्यों की तुलना में तेजी से पिछड़ा है। 

कोविड महामारी से पहले के आंकड़ों के मुताबिक 13 प्रतिशत सालाना औसतन औद्योगिक विकास दर से तमिलनाडु देश में पहले पायदान पर है, जबकि महाराष्ट्र 8.8 प्रतिशत दर पर दूसरे, तीसरे पर गुजरात 8.1, तेलंगाना 7.9 और कर्नाटक 7.6 प्रतिशत जबकि पंजाब की औद्योगिक विकास दर 5.6 प्रतिशत रही। देश की जी.डी.पी. मेंं पंजाब के मैन्युफैक्चरिंग सैक्टर का योगदान सिर्फ 2 प्रतिशत पर सिमटने का एक बड़ा कारण यह रहा कि हम पंजाब के उद्योगों को इन राज्यों के मुकाबले ‘लैवल प्लेइंग फील्ड’ नहीं दे पाए। 

इम्पोर्ट-एक्सपोर्ट से जुड़े कारोबारियों को पहले ड्राई पोर्ट तक और फिर पंजाब के ड्राई पोर्ट से औसतन 2000 किलोमीटर दूर समुद्री पोर्ट तक माल दोहरे माल भाड़े की मार उत्पादन लागत बढ़ा रही है। भाड़े के इस बोझ को हल्का करने के लिए राज्य सरकार रेलवे को 50 प्रतिशत माल ढुलाई भाड़ा सबसिडी के रूप में भरपाई कर सकती है। डी.पी.आई.आई.टी. (डिपार्टमैंट फॉर प्रोमोशन ऑफ इंडस्ट्री एंड इंटर्नल ट्रेड) उत्तरी पूर्वी क्षेत्र (एन.ई.आर.) राज्यों को माल भाड़े में 20 प्रतिशत छूट दे रहा है, जबकि बॉर्डर स्टेट होने के बावजूद पंजाब को ऐसी रियायत नहीं दी जा रही। 

इसके अलावा पंजाब सरकार अपनी मालगाडिय़ां खरीद कर प्रदेश के कारोबारियों पर माल भाड़े का बोझ काफी हद तक कम कर सकती है। साथ ही मार्कफैड, मिल्क फैड, पंजाब एग्रो एक्सपोर्ट कारपोरेशन जैसे सहकारी संस्थानों के अलावा राज्य के सरकारी थर्मल प्लांटों के लिए कोयले के माल भाड़े पर खर्च को भी 40 प्रतिशत तक घटाया जा सकता है। 

दूसरा : राज्य के आर्थिक विकास के लिए उन उद्योगों को विशेष रियायत और प्रोत्साहन की जरूरत है जो बड़े पैमाने पर रोजगार दे रहे हैं। टैक्सटाइल, कृषि-मशीनरी, ट्रैक्टर, ऑटोमोबाइल पुर्जे, खेल का सामान और इंजीनियरिंग सामान उत्पादक ऐसे औद्योगिक कलस्टर हैं, जिनमें मैन्युफैक्चरिंग सैक्टर के 80 प्रतिशत लोगों को रोजगार मिला है। देश के साइकिलों के उत्पादन में पंजाब का 75 प्रतिशत योगदान है। कृषि मशीनरी 60 और 35 प्रतिशत ट्रैक्टर पंजाब की देन हैं। पंजाब में बने खेल के सामान देश के 75 प्रतिशत खिलाडिय़ों के हाथों में हैं। सूती धागे में हमारी भागीदारी 14 प्रतिशत है। देश-दुनिया में उभरे पंजाब के इन कलस्टरों को और आगे बढ़ाने की जरूरत है। पंजाब के इस गौरव को दुनियाभर में ले जाने का जज्बा पंजाबियों में है, जरूरत सरकार के सहयोग और समर्थन की है। 

तीसरा : केंद्र सरकार द्वारा लाए गए नए श्रम कानून को पंजाब में लागू होने का इंतजार है। संसद में 2019-20 में पास किए 4 नए लेबर कोड में वेतन, औद्योगिक संबंध, सामाजिक और व्यवसाय सुरक्षा, स्वास्थ्य और काम करने की स्थिति को मंजूरी मिली। चूंकि श्रम कानून राज्यों के अधिकार का विषय है और राज्यों को इन्हें लागू करना है, पंजाब ने अभी तक इन 4 वेज कोड को नोटिफाई करने और लागू करने के लिए अभी तक मसौदा नियमों को प्रकाशित किया है, जबकि पड़ोसी केंद्र शासित जम्मू-कश्मीर ने इन्हें नोटिफाई कर लागू कर दिया है। 

चौथा : नई औद्योगिक नीति बनाने और इसे कारगर ढंग से लागू करने के लिए एक्सपर्ट के रूप में उन उद्योगों के प्रतिनिधियों की सेवाएं सरकार औद्योगिक सलाहकारों के रूप में ले, जिन औद्योगिक कलस्टरों में सबसे अधिक रोजगार दिए गए हैं और इनमें रोजगार के अवसर और भी बढ़ाए जाने की संभावना है। ये सलाहकार राज्य सरकार के साथ सीधे बातचीत से संबंधित उद्योगों के मसले-मुद्दों के स्थाई समाधान का रास्ता निकालने में सरकार के मददगार हो सकते हैं। 

पांचवां : पंजाब का मैन्युफैक्चरिंग सैक्टर औद्योगिक शहरों में महंगी जमीन की वजह से प्रभावित है। ऐसे में पूरे राज्य के औद्योगिक विकास और रोजगार को रफ्तार देनेे के लिए ग्रामीण व पिछड़े इलाकों में विशेष रियायतें और प्रोत्साहन से निवेश बढ़ाए जाने की जरूरत है। 1970-80 के दशक में फिलिप्स, जे.सी.टी., हॉकिन्स, रैनबैक्सी, डी.सी.एम. जैसे बड़े औद्योगिक समूहों ने होशियारपुर, रोपड़ और मोहाली जैसे पंजाब के पिछड़े इलाकों में भारी निवेश इसलिए किया, क्योंकि केंद्र और राज्य सरकार द्वारा विशेष प्रोत्साहन दिया गया। जुलाई 1991 में देश के आर्थिक उदारीकरण के बाद प्रोत्साहन स्कीम खत्म किए जाने से पिछड़े इलाकों की बजाय बड़े औद्योगिक समूहों ने शहरों के निकट विकसित औद्योगिक केंद्रों में निवेश पर जोर दिया। 

थमे औद्योगिक विकास के कारण बेरोजगारी के संकट से घिरे पिछड़े और ग्रामीण इलाकों के ज्यादातर लोग खेती से सीमित आय पर निर्भर हैं। खेती पर पूरी तरह से निर्भर छोटे किसानों व खेत मजदूरों के परिवारों के लिए आय का दूसरा साधन उनके गांवों के नजदीक फूड प्रोसैसिंग, पैकेजिंग, कोल्ड स्टोरेज चेन, लॉजिस्टक और अन्य औद्योगिक कारखानों में काम से महीनेभर में 15,000 रुपए से 20,000 रुपए कमाए जा सकते हैं। रोजगार की क्षमता रखने वाले उद्योगों को बढ़ावा देकर राज्य में भारी बेरोजगारी की आपदा को अवसर में बदला जा सकता है। नई औद्योगिक नीति में पिछड़े और ग्रामीण इलाकों में विशेष प्रोत्साहन से पंजाब की 63 प्रतिशत ग्रामीण आबादी को खेती के साथ रोजगार के दूसरे साधन से ‘रंगला’ पंजाब बनाए जाने का सपना साकार होगा।-डा. अमृत सागर मित्तल(वाइस चेयरमैन सोनालीका)
 


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