नेपाल में नई सरकार

punjabkesari.in Wednesday, Dec 07, 2022 - 06:55 AM (IST)

नेपाल में हुए आम चुनावों में जिन सत्तारूढ़ पार्टियों ने पहले से गठबंधन सरकार बनाई हुई थीं, वे फिर से जीत गई हैं। उन्हें 165 में से 90 सीटें मिल गई हैं। अब नेपाली कांग्रेस के नेता शेर बहादुर देऊबा फिर प्रधानमंत्री बन जाएंगे। हालांकि उनकी पार्टी को 57 सीटें मिली हैं और प्रचंड की कम्युनिस्ट पार्टी को सिर्फ 18, लेकिन जहां तक वोटों का सवाल है, प्रचंड की पार्टी को 27,91,734 वोट मिले हैं जबकि नेपाली कांग्रेस को सिर्फ 26,66,262 वोट ही मिल पाए। 

इसका अर्थ क्या हुआ? अब कम्युनिस्ट पार्टी का असर ज्यादा मजबूत रहेगा। अब देऊबा की सरकार में कम्युनिस्ट पार्टी का सिक्का जरा तेज दौड़ेगा। देऊबा प्रधानमंत्री तो दोबारा बन जाएंगे, लेकिन उन्हें अब उन कम्युनिस्टों की बात पर ज्यादा ध्यान देना होगा, जो कभी नेपाली कांग्रेस के कट्टर विरोधी रह चुके हैं। उन्होंने अपनी बगावत के दौरान नेपाली कांग्रेस के कई कार्यकत्र्ताओं की निर्मम हत्या भी की थी और उनके पार्टी घोषणा-पत्रों में भारत के विरुद्ध विष-वमन में भी कोई कमी नहीं रखी जाती थी। 

यह हमारे दक्षिण एशिया की राजनीतिक मजबूरी है कि सत्ता में आने के लिए घनघोर विरोधी भी गले-मिलने लगते हैं। कोई आश्चर्य नहीं कि पूर्व प्रधानमंत्री के.पी. ओली की कम्युनिस्ट पार्टी अपने गठबंधन के भागीदारों के साथ मिलकर देऊबा सरकार की नाक में दम बनाए रखने पर आमादा रहे, लेकिन यह भी संभव है कि ओली के गठबंधन से टूट कर कुछ पार्टियां और सांसद देऊबा का समर्थन करने लगें। 

उन्हें पता है कि भारत के बिना नेपाल का गुजारा नहीं है और ओली ने भारत-विरोध का झंडा निरंतर उठाए रखा था। उन्होंने मधेशियों और आदिवासियों पर इतने अत्याचार किए थे कि भारत सरकार को उनके विरुद्ध कड़े कदम उठाने पड़े थे। इसके अलावा सीमांत के लिपुलेख क्षेत्र पर नेपाल का दावा घोषित करके उन्होंने मोदी सरकार से दुश्मनी मोल ले ली थी। इतना ही नहीं, उन दिनों यह माना जाता था कि काठमांडू में चीन की महिला राजदूत ही नेपाल सरकार की असली मार्गदर्शक है। यही वजह है कि वर्तमान चुनाव में ओली की पार्टी और उनकी गठबंधन की सीटें घट गई हैं। 

जहां तक देऊबा का प्रश्न है, प्रचंड और ओली, इन दोनों के मुकाबले वह अधिक अनुभवी और संयत स्वभाव के हैं। इन तीनों नेपाली प्रधानमंत्रियों के साथ मेरा भोजन और खट्टा-मीठा वार्तालाप भी हुआ है। देऊबा अभी कुछ माह पहले भारत यात्रा पर भी आए थे। वह चीन से अपने संबंध खराब किए बिना भारत को प्राथमिकता देते रहेंगे। भारत भी नेपाली कांग्रेस को, जिसके कोइराला आदि नेतागण प्राय: भारत प्रेमी ही रहे हैं, पूरी सहायता करने की कोशिश करेगा। यदि देऊबा और प्रचंड में सद्भाव बना रहेगा तो यह सरकार अपने पांच साल भी पूरे कर सकती है। 

नेपाली लोकतंत्र की यह पहचान बन गई है कि वहां सरकारें पलक झपकते ही उलट-पलट जाती हैं। लेकिन यह नेपाली लोकतंत्र की विशेषता भी है कि वहां न तो राजशाही का बोलबाला दोबारा हो पाता है और न ही वहां कभी फौजशाही का झंडा बुलंद होता है।-डा. वेदप्रताप वैदिक
 


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