इस्लामाबाद में नई सरकार, भारत-पाक संबंध सामान्य करने का अवसर

punjabkesari.in Thursday, Apr 21, 2022 - 05:30 AM (IST)

इस्लामाबाद में सरकार में बदलाव न केवल भारत और पाकिस्तान के बीच संबंधों में शिष्टाचार बहाल करने के लिए एक अग्रदूत बन सकता है, बल्कि दोनों पड़ोसियों के बीच संबंध सामान्य बनाने के लिए भी प्रोत्साहन दे सकता है। 

इमरान खान के विपरीत प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ न तो एक लोकतंत्रवादी हैं और न ही एक अहंकारवादी, जो एक वैकल्पिक वास्तविकता में रहते हैं। इसके विपरीत, शहबाज शरीफ एक अनुभवी राजनेता हैं, जो भारत के साथ संबंधों में सुधार की अनिवार्यता को समझते हैं। सौभाग्य से, उन्हें भारत के प्रति किसी पहल या पहुंच में पाकिस्तानी सेना का समर्थन भी प्राप्त होगा। अपने तौर पर, भारत पाकिस्तान के साथ बातचीत में सतर्क रहते हुए उसके द्वारा की गई किसी भी पहल पर प्रतिक्रिया देने के खिलाफ नहीं हो सकता। 

भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का बधाई संदेश और प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ की प्रतिक्रिया सामान्य से अधिक कुछ भी नहीं थी। दो सरकारों के प्रमुखों के लिए शिष्टाचार का आदान-प्र्रदान करना सामान्य है। यहां तक कि यह उस विषाक्तता से कुछ बदलाव से कुछ बदलाव को परिभाषित करता है, जो इमरान खान के शासन के दौरान दोनों देशों के संबंधों में पैदा हो गई थी। आगे चलकर यह उम्मीद की जा सकती है कि कूटनीतिक मर्यादा और शालीनता, जिसे गाली देने वाले इमरान खान ने हवा में उड़ा दिया था, एक बार फिर आदर्श बन जाएगी। यह अपने आप में द्विपक्षीय संबंधों में तनाव और कड़वाहट को कम करने में मदद करेगा। इससे भी महत्वपूर्ण बात यह है कि यह 2 दक्षिण एशियाई पड़ोसियों के बीच किसी प्रकार के जुड़ाव की संभावना का द्वार खोलेगा। 

इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता कि केवल शैली में परिवर्तन ही कुछ सबसे गंभीर मुद्दों, जैसे कि क्षेत्रीय विवाद, कश्मीर मुद्दा और निश्चित रूप से आतंकवाद, जो भारत-पाकिस्तान संबंधों को बाधित करता है, का समाधान करने के लिए पर्याप्त नहीं है। लेकिन समय आ गया है कि दोनों देशों और कुछ मायनों में भारत से अधिक पाकिस्तान, बकाया मुद्दों और अस्तित्व के मुद्दों के बीच अंतर करें, जो उस राज्य के अस्तित्व के लिए खतरा हैं। 

अधिकांश देश ऐसे मुद्दों को बातचीत के माध्यम से प्रबंधित करते हैं, युद्ध या छद्म युद्ध नहीं छेड़ते। शायद समय आ गया है कि पाकिस्तान भी अन्य देशों के अनुभव से सीखे और कुछ लंबित मुद्दों पर अपना पक्ष रख सकता है, लेकिन उसे इन्हें द्विपक्षीय संबंधों को विषाक्त नहीं बनाने देना चाहिए या भारत के साथ संबंधों के आड़े नहीं आने देना चाहिए। पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था ठप्प होने के कगार पर है। यह कर्ज के जाल में फंस गया है और डिफॉल्ट बनने की ओर अग्रसर है। भारत के लिए व्यापार और संपर्क खोलना पाकिस्तान को अपने पैरों पर वापस लाने में मदद करेगा। इसमें वास्तव में कोई नकारात्मक पहलू नहीं है। कट्टरवाद और आतंकवाद जैसे अन्य मुद्दे आम चुनौतियां हैं। 

दोनों देशों के बीच सहयोग इन्हें आतंकवाद के खतरे से छुटकारा पाने और कट्टरपंथ को हराने में सक्षम बनाएगा। इन दोनों ने खुद को बड़ी शक्तियों के बीच रणनीतिक प्रतिस्पर्धा के विपरीत पक्षों में पाया है। लेकिन अगर वे एक साथ काम करते हैं तो उनकी बातचीत करने की स्थिति काफी बढ़ जाएगी और वे बड़ी शक्ति की राजनीति के दबावों से प्रभावित होने का विरोध कर सकते हैं। भारत-पाकिस्तान संबंधों को सामान्य बना कर बहुत कुछ हासिल कर सकते हैं, बजाय इसके कि एक-दूसरे के खिलाफ खंजर निकाले रखें। आॢथक लाभ को कम करके नहीं आंका जा सकता। व्यापार मुद्रास्फीति से लडऩे, आवश्यक वस्तुओं की कमी को रोकने, दोनों पक्षों को बाजार और कनैक्टिविटी प्रदान करने और अब तक अवरुद्ध किए गए तालमेल को मुक्त करने में मदद करेगा। 

व्यापार और यात्रा संबंध न केवल राज्य बल्कि समाज की भौतिक और आर्थिक सुरक्षा को भी बढ़ाते हैं। एक-दूसरे को युद्ध के नजरिए से देखने की बजाय दोनों देश अपने नागरिकों के जीवन को बेहतर बनाने पर ध्यान केंद्रित कर सकते हैं। विशेषकर पाकिस्तान के मामले में, यह राष्ट्रीय सुरक्षा राज्य से कल्याणकारी राज्य बनने की ओर बढ़ सकता है। वास्तव में सेना का प्रभाव घटनाओं के ऐसे मोड़ के लिए उत्प्रेरक होगा, क्योंकि भारत से कथित खतरा कुछ हद तक समाप्त हो जाएगा। 

यदि भारत और पाकिस्तान एक उज्जवल भविष्य की दिशा में एक साथ काम कर सकते हैं, तो यह स्वाभाविक रूप से पूरे दक्षिण एशियाई क्षेत्र के अधिक एकीकरण का मार्ग प्रशस्त करेगा। पाकिस्तान के लिए सहायक लाभ यह होगा कि सी.पी.ई.सी. पश्चिम एशिया और दक्षिण एशिया के बीच और मध्य एशिया और दक्षिण एशिया के बीच एक व्यवहार्य पुल होने के पाकिस्तान के सपने के बावजूद भी आगे की गति को देखेगा। कुछ पाकिस्तानी राजनेताओं, विशेष रूप से नवाज शरीफ ने इसे समझा। 

दुर्भाग्य से, उस समय पाकिस्तानी सेना इस दृष्टिकोण को स्वीकार करने के लिए बिल्कुल तैयार नहीं थी। लेकिन पिछले कुछ वर्षों में इस बात के स्पष्ट संकेत हैं कि पाकिस्तानी सेना अब भारत के साथ मेल-मिलाप को बढ़ाने के लिए राजनेताओं से भी ज्यादा उत्सुक है। पाकिस्तान के सेना प्रमुख जनरल कमर जावेद बाजवा द्वारा प्रतिपादित भू-अर्थशास्त्र की अवधारणा दृष्टिकोण के इस परिवर्तन को रेखांकित करती है। 

ऐसा लगता है कि पाकिस्तानी सेना ने महसूस किया है कि शत्रुता की अंतहीन स्थिति पाकिस्तान को नीचे खींच रही है और अस्तित्व संबंधी समस्याएं पैदा कर रही है। अब भारत और पाकिस्तान दोनों के लिए अपने द्विपक्षीय संबंधों को फिर से स्थापित करने का प्रयास करने का एक अवसर है। यदि वे इस अवसर का लाभ उठाते हैं तो यह न केवल दक्षिण एशिया का चेहरा बल्कि अंतर्राष्ट्रीय राजनीति की गतिशीलता को भी बदल सकता है, लेकिन अगर वे अवसर को बर्बाद करते हैं तो यह दुखद होगा, क्योंकि ऐसा अवसर कई-कई सालों तक खुद को पेश नहीं करेगा।


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