बेलगाम डिजिटल व सोशल मीडिया पर लगाम दरकार

punjabkesari.in Monday, Jul 11, 2022 - 05:28 AM (IST)

पिछले दिनों जस्टिस जे.पी. पारदीवाला ने सोशल मीडिया के विनियमन पर जोर देते हुए कहा था कि अब डिजिटल और सोशल मीडिया पर ‘लक्ष्मण रेखा’ लांघी जा रही है और लोग न्यायपालिका और जजों को व्यक्तिगत एजैंडे के तहत निशाना बना रहे हैं। इसलिए संविधान की रोशनी में कानून का शासन कायम रखने के लिए डिजिटल और सोशल मीडिया को रैग्युलेट करना जरूरी हो गया है। मालूम हो कि देशभर में लगी आग के लिए अकेले नूपुर शर्मा को जिम्मेदार ठहराए जाने के कारण लोग जस्टिस पारदीवाला और जस्टिस सूर्यकांत के खिलाफ आग-बबूला थे और उनके तर्कों को बेबुनियाद और एजैंडा से प्रेरित बता रहे थे। 

खैर, इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता कि आम जनता तक पहुंचने के लिए सोशल मीडिया एक असरदार जरिया बन कर उभरा है। भारत की सवा अरब से अधिक की जनसंख्या में लगभग 70 करोड़ लोगों के पास फोन हैं, जिसमें से 25 करोड़ लोगों की जेब में स्मार्टफोन हैं। 15.5 करोड़ लोग हर महीने फेसबुक पर और 16 करोड़ लोग हर महीने व्हाट्सऐप पर रहते हैं। लेकिन ज्ञातव्य हो कि हाल ही में सर्वोच्च अदालत ने कहा है कि हमें अब ऐसी गाइडलाइन की सख्त जरूरत है, जिससे ऑनलाइन अपराध, व्यक्तिगत एजैंडा चलाने वालों और सोशल मीडिया पर भ्रामक जानकारी डालने वाले लोगों को ट्रैक किया जा सके। 

गौरतलब है कि आज सोशल मीडिया के दौर में बहुचर्चित मामलों की सुनवाई खत्म होने से पहले ही बताया जाने लगता है कि कौन दोषी है और कौन निर्दोष। बड़ी बात तो यह है कि समाज भी सोशल मीडिया के नजरिए से ही फैसले की आशा करने लगता है। लिहाजा, संसद को सोशल और डिजिटल मीडिया के रैग्युलेशन के लिए कानून बनाने पर विचार करना चाहिए। खासकर संवेदनशील विचाराधीन मामलों को लेकर जारी न्यायिक प्रक्रिया में हस्तक्षेप रोकने के लिए सूचना प्रौद्योगिकी कानून और अदालत की अवमानना कानून में संशोधन भी किया जाना चाहिए। वैसे अगर ट्विटर को ही देखें तो वह आए दिन भारतीय कानूनों, नियमों और विनियम से स्वयं को सर्वश्रेष्ठ साबित कर मनमानी करता दिखता है। ऐसे में कोई ठोस कदम लाजिमी तौर पर दरकार है। 

खास बात यह है कि आज ब्रॉडबैंड और मोबाइल इंटरनैट सेवाएं भारत के लोगों की जीवन-रेखा बन चुकी हैं। यह न केवल सूचनाएं प्राप्त करने और सोशल मीडिया के साथ-साथ संचार का साधन है, बल्कि उससे भी अधिक अभिव्यक्ति के आजादी में सहायक है। मौजूदा समय में वैचारिक और सूचनाओं के आदान-प्रदान के लिए समुदायों और समाज के विभिन्न समूहों को आपस में जोडऩे हेतु सोशल मीडिया का प्रचलन बहुत बढ़ गया है। व्हाट्सएप, ट्विटर, फेसबुक आदि कुछ लोकप्रिय साधन हैं जिन मंचों पर कुछ ऐसे कार्यकत्र्ता सक्रिय रहते हैं, जो सरकार, समाज और मीडिया पर नियंत्रण रखने की दृष्टि से समय-समय पर उनकी आलोचना में भी पीछे नहीं हटते। 

लेकिन वास्तविकता यह है कि आज जहां एक ओर सूचना की यह क्रांति अनेक सकारात्मक परिवर्तन लेकर आई है, वहीं इसके चलते सरकारों के लिए सिरदर्द भी बढ़ा है और समाज में कुछ नकारात्मक प्रभाव भी देखने को मिल रहे हैं। सरकारों का सिरदर्द इसलिए बढ़ रहा है क्योंकि कुछ लोग अभिव्यक्ति की आजादी के नाम पर इंटरनैट का दुरुपयोग कर रहे हैं। घटनाओं के परिप्रेक्ष्य में बात करें तो इसके नकारात्मक और सकारात्मक दोनों ही तरह के प्रभाव देखे जाने लगे हैं, चाहे वह कन्हैया लाल के प्रति व्हाट्सएप के द्वारा विद्वेष फैला कर हत्या करने को प्रेरित करना हो या फिर पिछले साल पूर्वी दिल्ली में भड़के हिन्दू-मुस्लिम दंगे हों, इन सबकी जड़ सोशल मीडिया पर प्रसारित छद्म या सच्ची घटनाएं और उनसे संबंधित वीडियो ही रहे हैं। 

हाल में उच्चतम न्यायालय ने एक टिप्पणी करते हुए कहा कि आज प्रौद्योगिकी ‘खतरनाक’ मोड़ ले चुकी है और देश में सोशल मीडिया के दुरुपयोग पर अंकुश लगाने के लिए निश्चित समय के भीतर दिशा-निर्देश बनाने की आवश्यकता है। सोशल मीडिया के दुरुपयोग के बारे में हम यह नहीं कह सकते कि हमारे पास इसे रोकने की कोई तकनीक नहीं है, लेकिन राजनीतिक इच्छाशक्ति की कमी के कारण आज हालात ऐसे हैं कि हमारी निजता तक सुरक्षित नहीं। 

भारत को मलेशिया, थाईलैंड जैसे देशों की तर्ज पर कड़े और त्वरित दंड का विधान करना चाहिए। मलेशिया में इसके लिए दोषी व्यक्ति को 6 साल की सजा का प्रावधान है, जबकि थाईलैंड में 7 साल का। इसके अलावा सिंगापुर, चीन, फिलीपींस आदि देशों में भी गलत खबरोंं पर रोक लगाने के लिए सख्त कानून बनाए गए हैं। जर्मनी ने तो हाल ही में सोशल मीडिया पर आपत्तिजनक सामग्री इस्तेमाल करने वालों पर शिकंजा कसने के लिए कठोर कानून बनाया है, जिसके अंतर्गत सोशल मीडिया कंपनियों को 24 घंटों के भीतर आपत्तिजनक सामग्री को हटाना होगा। 

अब भारत को भी जल्द से जल्द अपने नियम-कानूनों को मजबूत व सख्त बनाना होगा, तभी अभिव्यक्ति की आजादी सभी को प्राप्त हो सकेगी और इसका दुरुपयोग करने वालों को चिन्हित भी किया जा सकेगा। अगर ऐसा नहीं होता तो ट्विटर की मनमानी कभी भी नहीं रुकेगी और सभी सोशल साइट्स की हौसलाअफजाई भी होगी, तब ‘सोशल मीडिया’ बन जाएगा ‘शोषण मीडिया’।-लालजी जायसवाल
 


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