ईद का पैगाम आत्मसात करने की जरूरत

punjabkesari.in Friday, May 14, 2021 - 05:50 AM (IST)

मुस्लिमों  के सबसे पवित्र महीनों में से एक रमजान अब खत्म हो चुका है और आज देश भर में ईद-उल-फितर मनाया जा रहा है। पूरे माह रोजे रखने की खुशी में रमजान खत्म होते ही हर साल इस मौके पर ईद मनाई जाती है मगर पिछले साल की तरह ही इस साल भी ईद का यह पवित्र पर्व कोरोना महामारी की भेंट चढ़ गया। दिल्ली, उत्तर प्रदेश, बिहार समेत कई राज्यों में लॉकडाऊन होने से इस साल भी ईद की नमाज ईदगाह की बजाय घरों में ही अदा करनी होगी। 

कोरोना संकट के कारण सामाजिक और धार्मिक सौहार्द को बढ़ावा देने वाला ईद का व्यापक उद्देश्य इस साल भी पूरा होता नहीं दिख रहा। इस दिन लोग पड़ोसियों और दोस्तों को घर बुलाते हैं और उनसे गले मिलते हैं। लेकिन कोरोना की दूसरी लहर में बढ़ते संकट के चलते यह सबकुछ फिर से मुमकिन नहीं हो सकेगा। सभी लोग अपने-अपने घरों में रह कर लॉकडाऊन का पालन करेंगे, इसलिए एक-दूसरे से मिलना-जुलना मुश्किल होगा। चूंकि यह ईद रमजान के रोजे रखने की खुशी में मनाई जाती है, इसलिए इस ईद को खुशियों का पर्व कहा जाता है। रमजान के पूरे एक महीने रोजे रखने के बाद सभी को इस दिन का बेसब्री से इंतजार रहता है। बूढ़े, बच्चे, जवान सभी इस दिन की खुशी को महसूस करना चाहते हैं। 

घर, मोहल्ले, ईदगाह, मस्जिदें सभी सजाए जाते हैं। लेकिन  इस साल फिर से सब कुछ अलग है। न कोई सजावट होगी और न ही कोई रौनक। सब कुछ कोरोना संकट के कारण फीका पड़ गया है। फिर भी इस बात को नहीं भूला जा सकता कि पड़ोसियों और रिश्तेदारों को लेकर इस्लाम की शिक्षा बेहद प्रेरक है। इनसे मोहब्बत करने, उनका याल रखने और उनकी इज्जत करने की शिक्षा इस्लाम में दी जाती है।

यहां पर गौर करने वाली बात यह है कि पड़ोसी या दोस्त केवल मुस्लिम हों, यह कोई जरूरी नहीं है। उलेमा कहते हैं कि ये किसी भी धर्म के हों, आप उनके साथ वही व्यवहार करें जिसकी शिक्षा इस्लाम में दी गई है। लिहाजा, जब ईद आती है तो मुस्लिम समुदाय के लोग अपने हिन्दू, सिख, ईसाई आदि पड़ोसियों और दोस्तों को अपने घर बुलाते हैं। दरअसल, ईद के जश्न के जरिए अमन और भाईचारे का संदेश यहीं से निकला है। ईद पर यह सब कुछ मुमकिन नहीं हो सकेगा। 

इन सबके बावजूद हमें मायूस होने की जरूरत नहीं है। हम घर पर रह कर भी अपनी खुशियों में इजाफा कर सकते हैं। यह सच है कि हम इस बार पड़ोसी और दोस्तों से न तो गले मिल पाएंगे और न ही उन्हें दावत पर घर बुला सकेंगे लेकिन, इसका एक विकल्प यह है कि हम अपने सभी खास लोगों से फोन के जरिए संपर्क करें। उन्हें ईद की बधाई देकर उनका हालचाल जानें। सामाजिक सौहार्द की दिशा में यह एक बेहतर कोशिश होगी। समाज के प्रति हमारी यह जि मेदारी है कि जब हर तरह की सामाजिक गतिविधियां प्रतिबंधित हैं तब भी हम लोगों से जुडऩे का कोई मौका न गंवाएं। ऐसा करके ईद के मौके पर एक-दूसरे से न मिलने की तकलीफ तो कम होगी ही, साथ ही हम एक-दूसरे का भरोसा भी जीत सकेंगे। 

दूसरी ओर, इस ईद हम ज्यादा से ज्यादा गरीबों और भूखों के मददगार बन सकते हैं। अमूमन ईद के मौके पर गरीबों को कपड़े और पैसे से मदद की जाती है। इस बार जब हमारी ईद काफी सादगी से मनाई जा रही है, तब हम शारीरिक दूरी का याल करते हुए इन गरीबों के घर-घर खाना पहुंचाएं। रमजान में जकात और फितरा (एक प्रकार का दान) की अवधारणा इन्हीं गरीबों के दुख-दर्द में शामिल होने का एक माध्यम है। तमाम पाबंदियों के बाद भी कुछ ऐसी चीजें हैं जिनमें कोई कमी नहीं आएगी। हम अपने बड़े-बुजुर्गों के लिए खूब दुआ करें। अपने गरीब पड़ोसियों को भी इस दुआ में याद रखें। 

लॉकडाऊन के चलते लाखों गरीब और मजदूर कई प्रकार के संकट से गुजर रहे हैं। कोई कोरोना से पीड़ित है, तो कोई भूखा है। लिहाजा इनकी सलामती के लिए खूब दुआएं करने की जरूरत है। दरअसल ईद का संदेश व्यापक है। यह गरीब-अमीर और अपने-पराए सभी के साथ बिना मजहब का फर्क किए अमन व शांति के साथ गुजर-बसर करने का संदेश देती है। इसे आत्मसात कर जीवन में आगे बढऩे से आपसी दूरियां मिटती हैं और व्यक्ति में मानवता के प्रति झुकाव बढ़ जाता है। 

हमें भाईचारे के संदेश को इस तरह आत्मसात करने की जरूरत है कि वह व्यक्तिगत तौर पर या सामाजिक रूप से दीर्घकालिक प्रभाव डाले। एक ऐसे समय में, जब पूरा देश आजादी के बाद के संकट के सबसे बड़े दौर से गुजर रहा है, देश को ईद के इस पैगाम की निहायत जरूरत है।-रिजवान अंसारी


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