संसद में बेहतर फ्लोर प्रबंधन की जरूरत

punjabkesari.in Thursday, Dec 02, 2021 - 04:25 AM (IST)

संसद के शीतकालीन सत्र के शुरू होने से कुछ ही मिनट पहले, जिसके एजैंडे में तीन विवादास्पद कृषि कानूनों की वापसी का एजैंडा शामिल था, प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने पत्रकारों को बताया कि उनकी सरकार सभी मुद्दों पर चर्चा करने तथा सदन में ‘खुले मन से’ सभी प्रश्रों के उत्तर देने के लिए तैयार है। उन्होंने यह भी कहा कि सांसदों को राष्ट्रीय हित से जुड़े मुद्दों पर चर्चा करनी चाहिए, विकास के लिए नए रास्ते तलाशने चाहिएं तथा ‘रचनात्मक निर्णय लेने चाहिएं जिनके दूरगामी प्रभाव हों’। 

प्रधानमंत्री के ये शब्द वास्तव में काफी प्रोत्साहित करने वाले थे। उन्हें पत्रकारों से बात करने के लिए नहीं जाना जाता लेकिन उस दिन उन्होंने एक अपवाद बनाया तथा अपने पसंदीदा मीडिया संगठनों के एक वर्ग से बात की। उनकी टिप्पणियों ने यह आशा जगाई कि संसद में उन कृषि कानूनों पर चर्चा देखने को मिलेगी जिन्हें वापस लिया जाना था। हालांकि तीन कृषि कानूनों को वापस लेने में लोकसभा में तीन मिनट तथा राज्यसभा में 9 मिनट का समय लगा,  नि:संदेह बिना किसी वाद-विवाद अथवा चर्चा के। 

यह स्पष्ट था कि सरकार ने निर्णय कर लिया था कि विपक्ष को इस मुद्दे पर चर्चा करने तथा न्यूनतम समर्थन मूल्य (एम.एस.पी.) की मांग के मुद्दे पर सरकार को घेरने का कोई भी अवसर दिए बिना कृषि कानूनों पर आगे कदम बढ़ाना है, जिसकी आंदोलनकारी संगठन अब मांग कर रहे हैं। यदि यही रणनीति थी तो क्यों प्रधानमंत्री ने इस तरह बाहर जाकर यह पुष्टि की कि उनकी सरकार सभी मुद्दों पर संसद में चर्चा करवाना चाहती है? इसमें कोई संदेह नहीं कि सरकार ने कृषि कानूनों के साथ संबंधित सारे मुद्दे को गड़बड़ कर दिया। किसी को भी यह नहीं भूला कि इन्हेें अध्यादेश के द्वारा लाया गया था जब सारा ध्यान कोविड महामारी पर था। अभी तक सरकार ने उस जल्दबाजी बारे स्पष्टीकरण नहीं दिया है कि बिना किसी चर्चा के अध्यायदेश के द्वारा ये कानून क्यों लाए गए? 

इसके बाद जब पहले वाले कानून के स्थान पर इन कानूनों को लागू किया गया, दोनों सदनों में विपक्ष के शोर-शराबे के बीच एक सीमित चर्चा हुई। यद्यपि विधेयकों को पारित करवाने के लिए सरकार ने संसद में अपने संख्याबल का इस्तेमाल किया। हालांकि ऐसा दिखाई नहीं देता कि सरकार ने कोई सबक सीखा हो और कोई भी चर्चा न करवाना इसकी नीति के अनुरूप है जब से भाजपा नीत राजग सरकार 2014 में पहली बार सत्ता में आई थी।

दिलचस्प बात यह है कि जब प्रधानमंत्री बनने के बाद मोदी पहली बार संसद में प्रविष्ट हुए थे तो ‘लोकतंत्र के मंदिर’ को प्रणाम करने के लिए नतमस्तक हुए थे और आश्वासन दिया था कि लोकतांत्रिक परम्पराओं का पालन-पोषण करना उनका पवित्र कत्र्तव्य है। 11 जून 2014 को लोकसभा में अपने पहले भाषण में उन्होंने घोषणा की थी कि वह मानते हैं कि ‘हमें (संसद में) संख्या के आधार पर आगे नहीं बढऩा चाहिए। हमें सामूहिकता के आधार पर आगे बढऩा चाहिए। हम सामूहिकता की भावना के साथ आगे बढऩा चाहते हैं।’ 

एक बार फिर बहुत प्रोत्साहित करने वाले शब्द लेकिन तथ्य यह प्रतिबंबित करते हैं कि वर्तमान सरकार सर्वाधिक तानाशाहीपूर्ण सरकारों में से एक साबित हुई है जिसने हमेशा संसद में किसी भी तरीके से अपना रास्ता बनाने की कोशिश की है। आंकड़े दर्शाते हैं कि गत 7 वर्षों के दौरान चर्चा में बिताए जाने वाले समय में नाटकीय रूप से गिरावट आई है। यह इस तथ्य के अलावा है कि बिखरा हुआ विपक्ष खराब हालत में है तथा उसके पास मोदी के कद का कोई नेता नहीं है। ऐसी स्थिति में अपना योगदान डालने वाले कारकों में से एक है सत्ताधारी पार्टी द्वारा खराब फ्लोर प्रबंधन। इसकी रणनीति ‘मेरा अपना रास्ता’ रही है। यहां विपक्ष तक पहुंच बनाने अथवा महत्वपूर्ण मुद्दों पर वाद-विवाद तथा चर्चा के लिए समय देने पर सहमति का कोई प्रयास नहीं है। 

अतीत में यह परम्परा थी कि संसदीय कार्य मंत्री विपक्ष के नेता तथा विभिन्न राजनीतिक दलों के अन्य फ्लोरलीडर्स के साथ तालमेल बनाकर महत्वपूर्ण मुद्दों पर चर्चा के लिए समय आबंटित करता था। यद्यपि वर्तमान सरकार यह सोचती है कि विपक्ष तक पहुंच बनाना तथा अवसर उपलब्ध करवाना उसकी  शान के खिलाफ है। संचार का अभाव, यहां तक कि कृषि तथा अन्य महत्वपूर्ण राष्ट्रीय मुद्दों से संबंधित विधेयक लाने बारे भी, संसद में कम उत्पादकता का कारण बनता है। 

जहां इसे लोकसभा में बहुमत हासिल है, ऊपरी सदन में इसकी संख्या बहुमत से कम है। इस स्थिति से निपटने के लिए वर्तमान सत्र में इसकी रणनीतिक टीम एक असामान्य तरीके के साथ आई। राज्यसभा से 12 सांसदों को निलंबित करने से भाजपा अब ऊपरी सदन में बहुसंख्या में आ गई है। अब यह सदन से सूचीबद्ध विधेयकों को आसानी से पारित करवा सकती है। अपना उद्देश्य प्राप्त करने के लिए इसने प्रोसीजर एंड कंडक्ट ऑफ बिजनैस इन राज्यसभा के नियम 256 के तहत इन्हें निलंबित किया है जिसका इस्तेमाल आमतौर पर सदन के चालू सत्र के दौरान किसी घटना के लिए किया जाता है न कि किसी पहले वाले सत्र के लिए। 

अपनी बहुसंख्या के कारण सरकार से आशा की जाती थी कि वह विपक्ष के साथ अधिक सहिष्णु होगी मगर ऐसा नहीं हो रहा। इसे विपक्षी दलों के साथ तालमेल बनाकर संसद में कार्रवाई को सुचारू रूप से चलाना सुनिश्चित करने के लिए अपनी फ्लोर मैनेजमैंट में सुधार करना चाहिए। यदि यह पहले किया जा सकता था तो अब क्यों नहीं?-विपिन पब्बी
 


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