खालसा: व्यक्तिगत जीवन शैली के साथ कल्याणकारी राज्य का माडल भी

punjabkesari.in Wednesday, Apr 27, 2022 - 11:08 AM (IST)

हम सभी एक आदर्श कल्याणकारी राज्य (वैल्फेयर स्टेट) की कामना करते हैं। भारतीय संविधान के निर्माता बाबा साहेब डा. भीमराव अम्बेडकर ने एक आदर्श समाज के संकल्प बारे पूछे जाने पर स्पष्ट उत्तर दिया था, ‘‘यदि आप मुझसे पूछो तो मेरा आदर्श समाज आजादी, बराबरी तथा भाईचारे पर आधारित होगा।’’ डा. अम्बेडकर ने बाद में इस आदर्श समाज की प्राप्ति को 26 जनवरी 1950 को भारत में लागू किए गए संविधान में आधार के तौर पर लिया। मगर हकीकत यह है कि पंजाब में अम्बेडकर साहिब द्वारा सुझाए या कल्पित किए गए ऐसे समाज की स्थापना को तीन शताब्दी पूर्व दशमेश पिता श्री गुरु गोबिंद सिंह जी द्वारा रूपमान किए गए खालसे के रूप में अनुभव किया था।

खालसा व्यक्तिगत जीवन शैली के साथ एक कल्याणकारी राज्य का माडल भी है। 1699 में बैसाखी के दिन खालसे का सृजन करके गुरु गोबिंद सिंह जी ने एक आधुनिक सामाजिक व्यवस्था को जन्म दिया जो जात-पात तथा इससे जुड़ी तथा विशेषता ग्रहण कर चुकी सामाजिक समानता तथा नाइंसाफी की समाप्ति की ओर केंद्रित थी। इसकी बनावट तथा भावना के कारण खालसा एक विश्व स्तरीय सम्मिलित भाईचारा है जो लोकतंत्र, समानतावाद, न्याय, मान-सम्मान तथा देशभक्ति पर आधारित है। सांझीवालता, खुशहाली तथा सहकारी जीवन पर जोर देने के कारण खालसा वह खाका है जिस पर आधुनिक कल्याणकारी राज्य विकसित हुआ है। 

श्री गुरु नानक देव जी के तीन सुनहरी आदर्श-‘किरत करो’, ‘बांट कर छको’ तथा ‘नाम जपो’ ही खालसे के मूल सिद्धांत हैं। गुरबाणी में ‘किरत’ (काम) को प्रमुखता प्राप्त है। जीवन को सम्मानपूर्वक तरीके से गुजारने के लिए किरत करने का उपदेश है। आजादी, निपुणता, उत्तमता, उद्यम, आत्मनिर्भरता तथा स्वाभिमान को दर्शाते होने के कारण ‘किरत’ एक सर्वव्यापक सिद्धांत है।  सबसे महत्वपूर्ण, किरत समाज को ‘दलिद्दर’ (आलस) से बचाती है। दलिद्दर सबसे खतरनाक दीमक है जो समाज को धीरे-धीरे तबाह कर देती है। महत्वपूर्ण तौर पर दलिद्दर आॢथक तंगी को बुलावा देती है। 

जो काम नहीं करते, अर्थात ‘वेहल्ड़ लोग’ विकारों के शिकार हो जाते हैं। एक दलिद्दर व्यक्ति के साथ नशाखोरी, कानून तोडऩा, हिंसा तथा अपराध साथ-साथ चलते हैं जिस कारण उनको अपमान, बदनामी तथा नमोशी झेलनी पड़ती है। डा. अम्बेडकर का मानना है कि जात-पात लोगों को किरत से दूर करती है। उनके अनुसार, इस सिद्धांत की परम्परागत जाति प्रणाली में उल्लंघन की गुंजाइश प्रबल है क्योंकि व्यक्तियों को कार्य क्षमता या कुशलता के आधार पर नहीं बल्कि उनके पारम्परिक सामाजिक मूल के आधार पर परोसे जाते हैं। वह दलील देते हैं कि जाति प्रणाली के अंतर्गत बहुत से लोग ऐसे पेशों में लगे हुए हैं जिनमें उनकी कोई दिलचस्पी नहीं होती। पीढ़ी दर पीढ़ी  वे मल-मूत्र की सफाई, जूतों की मुरम्मत, मजदूरी आदि उन मामूली या घटिया दर्जे के पेशों में फंसे रहते हैं जिन्हें ऐतिहासिक तथा सामाजिक तौर पर अपमानजक माना जाता है। बहुत से लोग आज इन पेशों को अपनाने की बजाय काम न करना पसंद करेंगे। इसलिए किरत के बढऩे-फूलने के लिए  मान-सम्मान पूर्व शर्त है।

‘बांट कर छको’ या सांझीवालता का सिद्धांत समावेश, एकता, भागीदारी तथा योगदान को शामिल करने वाला शक्तिशाली सामाजिक दृष्टिकोण है। यह शक्ति, दौलत तथा अवसर की एक समान बांट के सिद्धांत को उजागर करता है। यदि सत्ता, दौलत तथा अवसर कुछ लोगों के हाथों में केंद्रित रहेंगे तो शांति तथा खुशहाली नहीं आ सकती। यहां तक कि भारत का संविधान धारा 38 तथा 39 द्वारा भारतीय राज्य को इस सुनहरे नियम की पालना करने का निर्देश देता है। तीसरा सिद्धांत ‘नाम जपो’ मानवीय विकास के लिए ज्ञान (रुहानी तथा दुनियावी) को पहचानने, प्रसारित करने तथा लागू करने की क्षमताएं बनाने पर जोर देता है। 

हुकूमतों की निष्क्रियता के कारण गत समय से पंजाब 5 आफतों यानी नशा, विदेशों को प्रवास, बेरोजगारी, आॢथक संकट तथा आतंकवाद से दुखी रहा। दशकों से कई राजनीतिक पाॢटयों तथा सरकारों ने इन समस्याओं के समाधान हेतु प्रयास किए मगर असफल रहीं। हम आमतौर पर यह पहचान करने में असफल रहे हैं कि पंजाब में किरत, सर्वसांझीवालता या भाईचारक एकता या ज्ञान का खात्मा इन आफतों की जड़ है। 

कल्याणकारी राज्य का खालसा माडल ही पंजाब की लापता शान तथा खुशहाली को वापस ला सकता है। किरत तथा ज्ञान (शिक्षा) का नेतृत्व समाज का इस दिशा में पहला कदम होना चाहिए। सरकार तथा समाज को किरत के लिए योग्य माहौल बनाना पड़ेगा। अभिलाषी नौकरियां पैदा की जानी चाहिएं। हर किसी की क्षमता को अधिक से अधिक विकसित किया जाना चाहिए तथा प्रत्येक को अपनी पसंद तथा क्षमता के अनुसार रोजगार चुनने की छूट होनी चाहिए। मगर यह सावधानी भी जरूरी है कि किरत प्रधान समाज में बेसमझ मुफ्तखोरी के लिए कोई जगह नहीं है क्योंकि मुफ्तखोरी प्रेरणा तथा प्रगतिशील ऊर्जा को दबाती है। ज्ञान को समाज के केंद्रीय स्तंभ के तौर पर स्थापित करने के लिए जनता के अधिक से अधिक हिस्से को उच्च शिक्षा प्रदान करनी चाहिए तथा उसके पास सूचना तथा संचार तकनीक व इंटरनैट पहुंच की क्षमता होनी चाहिए। 
 


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