यू.पी.: 2022 के विधानसभा चुनावों के नए आयाम

punjabkesari.in Saturday, Jan 15, 2022 - 11:07 AM (IST)

2014 में यह ‘मोदी लहर’ ही थी जिसने देश में संसदीय चुनावों में भगवा लहर  को लहरा कर रख दिया। राज्यों में इस लहर को रोका नहीं जा सकता था और इसने मार्च 2018 तक 29 राज्यों में से 21 राज्यों पर अपना कब्जा जमा लिया, जबकि सबसे पुरानी पार्टी कांग्रेस ढलान के दौर में देश के नक्शे पर निष्फल दिखाई देने लगी। दल-बदल के खेल में भाजपा ने अपने आप को मास्टर बना लिया है।  इसके लिए नेताओं को लुभाने, पैसे का प्रयोग, छापेमारी का भय तथा विधायकों की खरीदो-फरोख्त जैसी चीजें की गईं। इसी के चलते मणिपुर, उत्तराखंड, कर्नाटक, मध्यप्रदेश तथा पुड्डुचेरी सहित 9 राज्यों में 7 सालों के भीतर भाजपा अपना कब्जा जमाने में कामयाब रही। ऐसा पहली बार हुआ है कि भाजपा के भीतर में से नेताओं की नाराजगी सामने आ रही है। यह सब महत्वपूर्ण राज्य उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनावों से पहले देखा जा रहा है। उत्तर प्रदेश प्रधानमंत्री मोदी के लिए बेहद महत्व रखता है। इसी के बलबूते पर 2024 में मोदी सत्ता की वापसी चाहते हैं। 

राजनीतिक पंडितों का मानना है कि भाजपा के लिए यह एक बड़ा झटका है क्योंकि पिछले 48 घंटों में उत्तर प्रदेश सरकार से तीन कैबिनेट मंत्रियों तथा 8 विधायकों ने इस्तीफा दे दिया है। इन नेताओं ने मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ पर दलितों, पिछड़े वर्ग, किसानों, बेरोजगार युवकों, कारोबारियों, महिलाओं इत्यादि की अनदेखी करने का आरोप लगाया है। राजपूतों को प्रोत्साहित करने के लिए योगी खुद भी आलोचना का पात्र बने हुए हैं क्योंकि इससे ब्राह्मणों में असंतोष उत्पन्न हुआ है जोकि इस राज्य में भाजपा के कड़े समर्थक हैं।  योगी आदित्यनाथ हिंदुत्व के एजैंडे को बरकरार रखे हुए : हिंदुत्व के माध्यम से हिंदू वोट बैंक तथा जातियों के ध्रुवीकरण से भाजपा के कोर एजैंडे को आगे बढ़ाने की उम्मीद अभी भी मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ लगाए हुए हैं। हालांकि कई बातें उनको हैरान कर सकती हैं। उन्होंने उस समय ध्यान बंटाने की कोशिश की जब उन्होंने कहा, ‘‘यह लड़ाई उससे बहुत आगे जा चुकी है। यह लड़ाई 80  बनाम 20 की हो चुकी है। (लड़ाई 80 प्रतिशत हिंदू तथा 20 प्रतिशत हिंदू विरोधी मुसलमानों के बीच है)।’’ योगी ने अपना नया नारा भी दिया है जिसमें कहा गया है, ‘‘राजतिलक की करो तैयारी, आ रहे हैं भगवाधारी।’’ 

ऐसे संकेत मिल रहे हैं कि नाखुश नेता भाजपा की मुख्य प्रतिद्वंद्वी समाजवादी पार्टी (सपा) में शामिल होने को तैयार हैं। पर्यवेक्षकों का मानना है कि गैर-यादव ओ.बी.सी. जातियों के बीच दल-बदल प्रभावी दिखाई पड़ रहे हैं। गैर-यादव ओ.बी.सी. जातियों ने 2017 के विधानसभा चुनावों तथा 2019 के लोकसभा चुनावों में भाजपा की जीत को यकीनी बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका अदा की थी। ऐसे दल-बदलू नेता भाजपा को गहरा झटका दे रहे हैं। यादवों तथा मुसलमानों को जोड़ने के प्रयास में अखिलेश :  अखिलेश यादव की सपा ने ऐसी धारणा प्रकट की है कि यह मुख्य लड़ाई भाजपा तथा उनकी पार्टी के बीच में है, भाजपा से दल-बदलुओं के सपा में प्रवेश के बाद अखिलेश की स्थिति और सुदृढ़ होगी। यादवों तथा मुसलमानों की पार्टी कहलाने वाली सपा ने अब ओ.बी.सी. तथा अनुसूचित जातियों को अपनी चुनावी रणनीति के तहत प्रोत्साहित करने की कोशिश की है।  आधा दर्जन जाति आधारित पार्टियों  के साथ अखिलेश ने गठबंधन किया है। भाजपा के 7 दलों के साथ गठबंधन का मुकाबला करने के लिए अखिलेश ने ऐसा किया है।

यदि हम विकास को एक ओर छोड़ दें तो उत्तर प्रदेश में छोटी तथा मध्यम दर्जे की राजनीतिक पार्टियां सपा से गठबंधन कर रही हैं। राजनीतिक पर्यवेक्षकों का मानना है कि ऐसे गठबंधन से सपा सत्ताधारी भाजपा की प्रमुख प्रतिद्वंद्वी पार्टी बन गई है। पिछले वर्ष 7 छोटे दलों ने भाजपा के साथ गठजोड़ किया था। ऐसी पार्टियां विभिन्न जातीय ग्रुपों का प्रतिनिधित्व करती हैं। राज्य में भाजपा छोटी पार्टियों पर अपना ध्यान केन्द्रित किए हुए है। विभिन्न ओ.बी.सी. ग्रुपों के नेता अपनी आवाज उठाने तथा राज्य में अपना प्रतिनिधित्व पाने के लिए प्रयासरत हैं। ऐसी जातियों में बींद, गडरिया, कुम्हार, धीवर, कश्यप तथा राजभर शामिल हैं। विशेषज्ञों का कहना है कि भाजपा इस समय दलितों तथा गैर-यादव ओ.बी.सी. पर अपना ध्यान केन्द्रित कर रही है। इसी कारण गठबंधन गढ़ा गया। जिन 7 पार्टियों ने भाजपा के साथ गठबंधन किया है उनमें भारतीय मानव समाज पार्टी, शोषित समाज पार्टी, भारतीय सुहेलदेव जनता पार्टी, भारतीय समता समाज पार्टी, मानवहित पार्टी, पृथ्वीराज जनशक्ति पार्टी तथा मूसाहार आंदोलन मंच आका गरीब पार्टी शामिल हैं। चुनावी आंकड़ों के अनुसार एक दर्जन से ज्यादा पंजीकृत गैर-मान्यता प्राप्त पार्टियों ने भाजपा या फिर समाजवादी पार्टी के साथ गठबंधन किया है। अगर हम अंतिम आकलन करें तो भाजपा प्रधानमंत्री मोदी के ऊपर बहुत ज्यादा निर्भर है। पार्टी ने इन 5 विधानसभा चुनावों में उन्हें चुनावी शुभंकर बनाया था जो अब जोखिम पर है और यह बात पार्टी के खिलाफ जा सकती है।


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