आखिर क्यों करती हैं महिलाएं आत्महत्या

punjabkesari.in Saturday, Jan 15, 2022 - 11:19 AM (IST)

स्त्री समाज की दर्पण होती है। यदि किसी समाज की स्थिति को देखना हो तो वहां की नारी की अवस्था को देखना होगा। नारी एक संघर्ष की नहीं  वह त्याग और ममता की प्रतिमा भी है। वह व्यक्ति ही नहीं अपितु एक शक्ति भी है जो समय आने पर दानवों का नाश भी करती है। परिवार, समाज व राष्ट्र को संस्कार देने वाली महिला जोकि बहन, पत्नी, मां व समाज की निर्मात्री भी है, ऐसे समाज में जन्म से लेकर मृत्यु तक एक बहुत बड़ा रोल अदा करती है। महादेवी वर्मा ने कहा था कि नारी केवल व्यक्ति ही नहीं अपितु वह काव्य और प्रेम की प्रतिमूर्ति भी होती है। पुरुष विजय का भूखा होता है और नारी समर्पण की।  

महिलाओं के सशक्तिकरण के लिए भारत सरकार ने कई योजनाएं बनाई हैं जिनके परिणामस्वरूप महिलाएं हर क्षेत्र में पुरुषों से भी आगे आकर विभिन्न कीर्तिमान स्थापित कर रही हैं। इसी तरह महिलाओं से संबंधित घटित होने वाले विभिन्न अपराधों पर अंकुश लगाने के लिए सरकार ने समय-समय पर कड़े से कड़े अधिनियम भी लागू किए हैं।  उदाहरण के तौर पर 1860 में बाल विवाह रोकने हेतु कानून बनाया गया और बाद में लड़कियों के विवाह की न्यूनतम सीमा 18 वर्ष की गई, जिसे अब बढ़ाकर 21 वर्ष किया जा रहा है। 
दहेज प्रथा को रोकने के लिए वर्ष 1961 में कानून बनाया गया तथा वर्ष 1987 में महिलाओं के अश्लील चित्र दिखाने के विरुद्ध कड़ा एक्ट बनाया गया। 

कार्यस्थलों पर कामकाजी महिलाओं के विरुद्ध होने वाले यौन शोषण को रोकने के लिए कड़े नियम बनाए गए। इसके साथ-साथ महिलाओं के साथ दैनिक स्तर पर होने वाली घरेलू हिंसा को रोकने के लिए वर्ष 2005 में महिला संरक्षण अधिनियम बनाया गया। मगर इन सब प्रावधानों के बावजूद समाज की मानसिकता में अब भी कोई विशेष बदलाव नहीं आया। महिलाओं के विरुद्ध अपराध की घटनाएं बढ़ती ही जा रही हैं। महिलाएं अधिकतर तनावग्रस्त जीवन व्यतीत करती हैं तथा उनमें आत्महत्या करने की प्रवृत्ति बढ़ती ही जा रही है। राष्ट्रीय पारिवारिक स्वास्थ्य सर्वेक्षण के आंकड़ों के अनुसार पता चलता है कि देश में 15 से 49 वर्ष की आयु वर्ग में 20 प्रतिशत विवाहित महिलाओं ने अपने जीवनसाथी की हिंसा झेली है तथा इस वर्ग में ही गृहिणियां सबसे अधिक आत्महत्याएं करती हैं। 
राष्ट्रीय अपराध रिकार्ड ब्यूरो के अनुसार वर्ष 2020 में 22,373 गृहिणियों ने आत्महत्याएं कीं तथा इस तरह हर दिन भारत की 61 महिलाएं आत्महत्याएं कर रही हैं। महिलाओं द्वारा की जाने वाली आत्महत्याओं के कारणों का विशेषण कुछ इस प्रकार से किया जा रहा है-


1. आत्महत्या करने वाली महिला को जब यह लगने लगता है कि उसकी मानसिक समस्या का कोई और समाधान नहीं है तब उसमें एक अवसाद उत्पन्न होता है। उसकी मानसिक स्थिति खराब हो जाती है तथा उसका नकारात्मक दृष्टिकोण उसे आत्महत्या करने को प्रेरित करता है। 

2. ऐसी स्त्रियां जो घर में अकेली रहती हैं तथा उन्हें पति का वांछित प्यार नहीं मिल पाता, वे भी असंतुलित रहती हैं। कई महिलाओं के पति फौज में या विदेशों में रहते हैं, पीछे से उन्हें अपने ससुराल वालों के ताने सुनने पड़ते हैं तथा उनकी कहीं सुनवाई नहीं होती। शर्म के मारे बहुत-सी महिलाएं  तनाव के बारे में अपने माता-पिता से भी बात सांझा नहीं करतीं। समय रहते उनकी काऊंसलिंग नहीं हो पाती तथा वे अपनी जीवन लीला समाप्त कर लेती हैं।

3. यह भी देखा गया है कि कुछ महिलाओं के पतियों का किसी दूसरी महिला से यौन संबंध बन जाता है तथा वे अपनी पत्नियों की परवाह किए बिना रंगरलियां मनाने में व्यस्त हो जाते हैं तथा वे अपनी पत्नी की अवहेलना करनी शुरू कर देते हैं। कुछ पति इस सीमा तक चले जाते हैं कि वे अपना धर्म बदल कर मुस्लिम बन जाते हैं तथा दूसरी पत्नी को रख  लेना अपना अधिकार समझते हैं।

4. आज के युवाओं में विदेशों में रहने का रुझान बढ़ता जा रहा है। वे किसी न किसी ढंग से विदेश में पहुंच जाते हैं तथा फिर उनके मन में वहां के स्थायी निवासी बनने की ललक-सी पैदा हो जाती है। वे अपने माता-पिता को बिना बताए विदेशी लड़कियों से विवाह कर लेते हैं। स्वदेश आने पर वे दूसरी शादी भी कर लेते हैं। मगर कुछ ही दिनों के बाद उनके विदेशी विवाह का पता चल जाता है तथा अब स्वदेशी लड़की के पास तनावग्रस्त होने के अतिरिक्त कुछ नहीं बचता तथा उसमें आत्महत्या की प्रवृत्ति उत्पन्न होने लगती है।

5. बाल विवाह भी ऐसी घटनाओं के लिए उत्तरदायी है। बाल विवाह के कारण स्त्री खुद का निर्णय नहीं ले पाती। परिपक्व न होने के कारण वह तनाव की शिकार होकर आत्महत्या करने को मजबूर हो जाती है।

6. गरीबी भी एक ऐसा अभिशाप है कि कई परिवारों को दो समय की रोटी भी नसीब नहीं होती। एक महिला जिसका पति शराबी या कुछ भी न कमाता हो तथा घर पर तीन-चार बच्चे तथा वे भी लड़कियां ही हों तो अकेली लाचार महिला बेबस होकर आत्महत्या कर लेने की सोचती है। 

उपरोक्त तथ्यों को ध्यान में रख कर हम कह सकते हैं कि समाज के सभी लोगों की अपनी गिद्द भरी मानसिकता में बदलाव लाना चाहिए। उन्हें नहीं भूलना चाहिए कि उनकी भी बेटियां व बहनें हैं तथा यदि उनके साथ ऐसी घटनाएं घटें तब वे इसके बारे में क्या करेंगी? अपनी कुंद मानसिक संकीर्णताओं को सकारात्मक ढंग से जागृत करने की आवश्यकता है। इसके साथ-साथ न्यायिक प्रक्रिया को भी चुस्त व दुरुस्त करने की अति आवश्यकता है जिससे पीड़ित महिलाओं को तुरन्त न्याय मिले तथा अपराधियों को कड़ी से कड़ी सजा मिले। इसी तरह महिला सशक्तिकरण के लिए और भी ज्यादा प्रयास करने की आवश्यकता है।
 


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