जनजातीय गौरव के लिए राष्ट्र प्रतिबद्ध

punjabkesari.in Monday, Nov 15, 2021 - 03:40 AM (IST)

भारत दुनिया का एक अनूठा देश है, जहां 700 से अधिक जनजातीय समुदाय के लोग निवास करते हैं। देश की ताकत, इसकी समृद्ध सांस्कृतिक विविधता में निहित है। जनजातीय समुदायों ने अपनी उत्कृष्ट कला और शिल्प के माध्यम से देश की सांस्कृतिक विरासत को समृद्ध किया है। उन्होंने अपनी पारंपरिक प्रथाओं के माध्यम से पर्यावरण के संवर्धन, सुरक्षा और संरक्षण में अग्रणी भूमिका निभाई है। अपने पारंपरिक ज्ञान के विशाल भंडार के साथ, जनजातीय समुदाय सतत विकास के पथ प्रदर्शक रहे हैं। राष्ट्र निर्माण में जनजातीय समुदायों द्वारा निभाई  गई महत्वपूर्ण भूमिका को मान्यता देते हुए हमारे संविधान ने जनजातीय संस्कृति के संरक्षण और अनुसूचित जनजातियों के विकास के लिए विशेष प्रावधान किए हैं। 

जनजातीय लोग सरल, शांतिप्रिय और मेहनती होते हैं, जो मुख्यत: वन क्षेत्रों में स्थित अपने निवास स्थान में प्राकृतिक सद्भाव के साथ रहते हैं। औपनिवेशिक शासन की स्थापना के दौरान ब्रिटिश राज ने देश के विभिन्न समुदायों की स्वायत्तता के साथ-साथ उनके अधिकारों और रीति-रिवाजों का अतिक्रमण करने वाली नीतियों की शुरूआत की और कठोर कदम उठाए। इससे विशेष रूप से जनजातीय समुदायों में जबरदस्त आक्रोश पैदा हुआ। 

जल निकायों सहित संपूर्ण वन पारिस्थितिकी तंत्र जनजातीय अर्थव्यवस्था का मुख्य आधार था। ब्रिटिश नीतियों ने पारंपरिक भूमि-उपयोग प्रणालियों को तहस-नहस कर दिया। उन्होंने जमींदारों का एक वर्ग तैयार किया और उन्हें जनजातीय क्षेत्रों में भी जमीन पर अधिकार दे दिया। पारंपरिक भूमि व्यवस्था को काश्तकारी व्यवस्था में बदल दिया गया और जनजातीय समुदाय असहाय काश्तकार या बंटाईदार बनने पर मजबूर हो गए। 

अन्यायपूर्ण और शोषक प्रणाली द्वारा करों को लागू करने तथा उनकी पारंपरिक जीविका को प्रतिबंधित करने के बढ़ते दमन के साथ कठोर औपनिवेशिक पुलिस प्रशासन द्वारा वसूली और साहूकारों द्वारा शोषण ने आक्रोश को और गहरा किया, जिससे जनजातीय क्रांतिकारी आंदोलनों की उग्र शुरूआत हुई। उनका सर्वाधिक महत्वपूर्ण उद्देश्य ब्रिटिश औपनिवेशिक सरकार द्वारा भूमि, जंगल और आजीविका से संबंधित दमनकारी कानूनों को लागू करने के खिलाफ अपनी जनजातीय पहचान और जीवन तथा आजीविका पर आधारित अपने परंपरागत अधिकारों की रक्षा करना था। जनजातीय समुदायों ने आधुनिक हथियारों को नहीं अपनाया और अंत तक अपने पारंपरिक हथियारों और तकनीकों के साथ संघर्ष जारी रखे। 

ब्रिटिश राज के खिलाफ बड़ी संख्या में जनजातीय क्रांतिकारी आंदोलन हुए और इनमें कई आदिवासी शहीद हुए। इन शहीदों में से सबसे करिश्माई बिरसा मुंडा थे, जो वर्तमान झारखंड के मुंडा समुदाय के एक युवा आदिवासी थे। उन्होंने एक मजबूत प्रतिरोध का आधार तैयार किया, जिसने देश के साथी जनजातीय लोगों को औपनिवेशिक शासन के खिलाफ लगातार लडऩे के लिए प्रेरित किया। बिरसा मुंडा सही अर्थों में एक स्वतंत्रता सेनानी थे, जिन्होंने ब्रिटिश औपनिवेशिक सरकार की शोषणकारी व्यवस्था के खिलाफ बहादुरी से संघर्ष किया और एक किंवदंती नायक (लीजैंड) बन गए। 

बिरसा ने जनजातियों के बीच ‘उलगुलान’  (विद्रोह) का आह्वान करते हुए आदिवासी आंदोलन को संचालित और इसका नेतृत्व किया। युवा बिरसा जनजातीय समाज में सुधार भी करना चाहते थे और उन्होंने उनसे नशा, अंधविश्वास और जादू-टोना में विश्वास नहीं करने का आग्रह किया और प्रार्थना के महत्व, भगवान में विश्वास रखने एवं आचार संहिता का पालन करने पर जोर दिया। उन्होंने जनजातीय समुदाय के लोगों को अपनी सांस्कृतिक जड़ों को जानने और एकता का पालन करने के लिए प्रोत्साहित किया। वे इतने करिश्माई जनजातीय नेता थे कि जनजातीय समुदाय उन्हें ‘भगवान’ कहकर बुलाते थे। 

हमारे प्रधानमंत्री ने हमेशा जनजातीय समुदायों के बहुमूल्य योगदानों, विशेष रूप से भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के दौरान उनके बलिदानों पर जोर दिया है। प्रधानमंत्री की 15 अगस्त, 2016 को स्वतंत्रता दिवस पर उनके भाषण में की गई घोषणा का अनुसरण करते हुए जनजातीय कार्य मंत्रालय देश के विभिन्न स्थानों पर राज्य सरकारों के सहयोग से जनजातीय समुदाय के स्वतंत्रता सेनानियों से संबंधित संग्रहालयों का निर्माण कर रहा है। इस किस्म का सबसे पहले बनकर तैयार होने वाला संग्रहालय रांची का बिरसा मुंडा स्वतंत्रता सेनानी संग्रहालय है, जिसका उद्घाटन प्रधानमंत्री द्वारा किया जा रहा है। 

जनजातीय समुदायों के बलिदानों एवं योगदानों को सम्मान देते हुए, भारत सरकार ने 15 नवम्बर को जनजातीय गौरव दिवस के रूप में घोषित किया है। इस तिथि को भगवान बिरसा मुंडा की जयंती होती है। देश के विभिन्न हिस्सों में 15 नवम्बर से 22 नवम्बर तक सप्ताह भर चलने वाले समारोहों के दौरान बड़ी संख्या में गतिविधियों का आयोजन किया जा रहा है ताकि इस प्रतिष्ठित सप्ताह के दौरान देश के उन महान गुमनाम आदिवासी नायकों, जिन्होंने अपने जीवन का बलिदान दिया, को याद किया जा सके। 

समूचा भारत इस वर्ष भारत की आजादी के 75वें वर्ष के उपलक्ष्य में ‘आजादी का अमृत महोत्सव’ मना रहा है और यह आयोजन उन असंख्य जनजातीय समुदाय के लोगों एवं नायकों के योगदान को याद किए और उन्हें सम्मान दिए बिना पूरा नहीं होगा, जिन्होंने मातृभूमि के लिए अपने प्राण न्यौछावर कर दिए। उन्होंने लंबे समय तक चलने वाले स्वतंत्रता संग्राम की नींव रखी। 1857 के स्वतंत्रता संग्राम से बहुत पहले, जनजातीय समुदाय के लोगों और उनके नेताओं ने अपनी मातृभूमि और स्वतंत्रता एवं अधिकारों की रक्षा के लिए औपनिवेशिक शक्ति के खिलाफ विद्रोह किया। 

चुआर और हलबा समुदाय के लोग 1770 के दशक की शुरूआत में उठ खड़े हुए और भारत द्वारा स्वतंत्रता हासिल करने तक देश भर के जनजातीय समुदाय के लोग अपने-अपने तरीके से अंग्रेजों से लड़ते रहे। सबने अपने दुस्साहसी हमलों और निर्भीक लड़ाइयों के माध्यम से ब्रिटिश राज को असमंजस में डाले रखा। हमारी आदिवासी माताओं और बहनों ने भी दिलेरी और साहस भरे आंदोलनों का नेतृत्व किया। रानी गैडिनल्यू, फूलो एवं झानो मुर्मू, हेलेन लेप्चा एवं पुतली माया तमांग के योगदान आने वाली पीढिय़ों को प्रेरित करेंगे। 

15 नवंबर से सप्ताह भर चलने वाले समारोहों के दौरान, विभिन्न राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों द्वारा हमारे जनजातीय समुदाय के महान स्वतंत्रता सेनानियों की यादों के प्रति सम्मान के तौर पर आदिवासी नृत्य उत्सवों, शिल्प मेलों, चित्रकला प्रतियोगिताओं, आदिवासी उपलब्धियों का सम्मान करने के लिए कार्यशालाओं, रक्तदान शिविरों और महान आदिवासी स्वतंत्रता सेनानियों को श्रद्धांजलि देने जैसी गतिविधियों की एक विस्तृत शृंखला का आयोजन किया जा रहा है। यह जनजातीय समुदाय के बहादुर स्वतंत्रता सेनानियों के जीवन को तहेदिल से याद करने और खुद को राष्ट्र के लिए समॢपत करने का एक अवसर है।-अर्जुन मुंडा केंद्रीय जनजातीय कार्य मंत्री


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