भारतीय विद्रोहियों की मदद कर रही म्यांमार की सेना

punjabkesari.in Wednesday, Dec 08, 2021 - 06:48 AM (IST)

जब 13 नवम्बर को अलगाववादी विद्रोहियों ने भारत के पूर्वोत्तर राज्य मणिपुर में घातक हमला किया तो इसने भारत और म्यांमार के गर्म-ठंडे द्विपक्षीय संबंधों में एक नया उबाल लाने का काम किया। असम राइफल्स की अर्धसैनिक इकाई के कमांङ्क्षडग ऑफिसर, उनकी पत्नी, उनके 6 साल के बेटे और 4 अन्य राइफलमैन सहित 7 लोग मारे गए, जब जिस काफिले में वे यात्रा कर रहे थे, उस पर पीपुल्स लिबरेशन आर्मी (पी.एल.ए.) और मणिपुर नागा पीपुल्स फ्रंट (एम.एन.पी.एफ.) के विद्रोहियों ने हमला किया। 

दोनों विद्रोही समूहों को नजदीकी म्यांमार सीमा के उस पार पनाहगाहों में शरण लेने के लिए जाना जाता है और रिपोर्टों से संकेत मिलता है कि जानलेवा घात लगाने के बाद वे सीमा के पार पीछे हट गए होंगे। भारत म्यांमार के साथ 1,600 किलोमीटर लंबी झरझरी सीमा सांझी करता है और विद्रोही लड़ाकों के लिए अधिकारियों को पता चले बिना आगे और पीछे खिसकना आसान हो जाता है। पूर्वोत्तर भारत के जातीय नागा, मणिपुरी और असमिया विद्रोहियों ने म्यांमार के सागिंग क्षेत्र में वर्षों से ठिकाने बनाए हुए हैं। 

ये पनाहगाहें लंबे समय से द्विपक्षीय विवाद का एक गर्म बिंदू रही हैं, लेकिन म्यांमार की इसकी उपेक्षा की लंबे समय से चली आ रही नीति उस समय बदल गई जब म्यांमार सेना, जिसे तातमाडॉ के तौर पर जाना जाता है, ने जनवरी 2019 में विद्रोहियों के मुख्य शिविरों में से एक पर कब्जा कर लिया। उस निकासी अभियान, जिसने नागा, मणिपुरी और असमिया विद्रोहियों को उत्तरी सागाइंग के तागा में उनके वास्तविक मुख्यालय से खदेड़ दिया, ने भारत-म्यांमार सैन्य संबंधों में उल्लेखनीय सुधार किया। 

पर अब ऐसा लगता है कि तातमाडॉ न केवल म्यांमार के सीमावर्ती क्षेत्रों में विद्रोही समूहों की उपस्थिति को फिर से सहन कर रहा है, बल्कि तख्तापलट के बाद से देश भर में फैले सैन्य-विरोधी पीपुल्स डिफैंस फोर्स (पी.डी.एफ.) प्रतिरोध समूहों से लडऩे के लिए उनका उपयोग कर रहा है। मणिपुर की बहुसंख्यक मैतेई आबादी के विद्रोहियों को भारत के मणिपुर में मोरेह के सामने, साङ्क्षगग क्षेत्र के तमू क्षेत्र में पी.डी.एफ. इकाइयों पर हमला करने के लिए जाना जाता है। बदले में, उन्हें स्पष्ट रूप से सीमा के पार म्यांमार की ओर सुरक्षित पनाहगाहें बनाए रखने की अनुमति दी गई है। 

स्थानीय सूत्रों का कहना है कि तातमाडॉ द्वारा ऐसी छद्म सेनाओं का उपयोग तेज होना तय है क्योंकि इसकी जनशक्ति तेजी से बढ़ती जा रही है क्योंकि आमतौर पर देश के शांत मध्य क्षेत्र तख्तापलट के बाद से युद्ध के मैदान बन गए हैं। क्रांतिकारी पीपुल्स फ्रंट (आर.पी.एफ.) की सशस्त्र शाखा पी.एल.ए. 1970 के दशक से मैतेइयों के बीच सक्रिय है। इसके संस्थापकों को मूल रूप से तिब्बत की राजधानी ल्हासा के पास एक सैन्य शिविर में चीनियों द्वारा प्रशिक्षित किया गया था। पी.एल.ए. ने विभिन्न गुटों में विभाजित होने से पहले मणिपुर के मैतेई आबादी वाली इंफाल घाटी में कई हमले किए और बचे हुए विद्रोही म्यांमार सीमा पर पीछे लौट गए। 

आर.पी.एफ./पी.एल.ए. के अलावा कई अन्य मैतेई विद्रोही समूह हैं, जिनमें पीपुल्स रैवोल्यूशनरी पार्टी ऑफ कांगलीपाक (पी.आर.ई.पी.ए.के.), यूनाइटेड नैशनल लिबरेशन फ्रंट और कंगलीपाक कम्युनिस्ट पार्टी शामिल हैं। ऐसा लगता है कि सभी मैतेई विद्रोही संगठन भारत से मणिपुरी स्वतंत्रता की मांग के साथ एक वामपंथी एजैंडे को जोड़ते हैं। 

एम.एन.पी.एफ. जातीय नागा उग्रवादियों का एक छोटा समूह है जो नागालैंड की मुख्य नैशनल सोशलिस्ट कौंसिल ऑफ नागालैंड (या नागालिम) से अलग संचालित होता है, जिसके आगे कई समूह हैं। उन समूहों ने भी लंबे समय से म्यांमार की ओर सीमा पार पनाहगारों का फायदा उठाया है। 

भारतीय पक्ष के नागा विद्रोहियों के म्यांमार के नागा हिल्स में ठिकाने हैं क्योंकि भारतीय सेना ने उन्हें 1970 के दशक में सीमा पार खदेड़ दिया था। उन नागा समूहों को भी चीन से हथियारों की आपूर्ति का लाभ मिला, जब तक कि 1980 के दशक में पेइचिंग ने उन्हें समर्थन देने की अपनी नीति नहीं बदली। उन विद्रोही पनाहगारों को उखाड़ फैंकने में म्यांमार की अक्षमता या अनिच्छा 2 पड़ोसी देशों के द्विपक्षीय संबंधों में लगातार कांटा रही है, जो वर्षों से आपसी अविश्वास और संदेह में योगदान दे रही है। नई दिल्ली की नाराजगी के कारण, म्यांमार के अधिकारी अक्सर ऐसे शिविरों के अस्तित्व से इंकार करते हैं। 

तख्तापलट के बाद से, म्यांमार फिर से अलग-थलग पड़ गया है और उसके कुछ विदेशी सहयोगी हैं, रूस उनमें से एक है, लेकिन इसकी मंशा काफी हद तक व्यावसायिक है क्योंकि म्यांमार रूस निर्मित सैन्य उपकरणों का एक प्रमुख खरीदार है। म्यांमार में चीन के महत्वपूर्ण भू-रणनीतिक हित हैं, जो उसके बैल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (बी.आर.आई.) द्वारा सुगम हैं और पेइचिंग अपनी क्षेत्रीय महत्वाकांक्षाओं को मजबूत करने के लिए संकट का लाभ उठाएगा। 

भारत के चीफ ऑफ डिफैंस स्टाफ जनरल बिपिन रावत ने 24 जुलाई को ‘पूर्वोत्तर भारत में अवसर और चुनौतियां’ विषय पर सैन्य वैबिनार में कहा कि भारत को म्यांमार में उभरती स्थिति पर बारीकी से नजर रखने की जरूरत है। उन्होंने कहा कि 1 फरवरी के तख्तापलट के बाद देश पर अंतर्राष्ट्रीय प्रतिबंध फिर से लगाए जाने के बाद चीन आगे बढ़ रहा है। 

गौरतलब है कि भारत भी उन 8 देशों में शामिल था, जिन्होंने 27 मार्च को नैपीताव में म्यांमार सशस्त्र बल दिवस परेड में भाग लेने के लिए एक प्रतिनिधि (अपने सैन्य अटैची) को भेजा था। अन्य प्रतिनिधि चीन, रूस, पाकिस्तान, बंगलादेश, वियतनाम, लाओस और थाईलैंड से आए थे। यह देखा जाना बाकी है कि भविष्य में भारत और म्यांमार के संबंधों पर मणिपुर घात के क्या परिणाम होंगे। विश्लेषकों का कहना है कि भारत के लिए पूर्वोत्तर विद्रोहियों और तातमाडॉ के बीच हाल ही में बने नए गठबंधनों की अनदेखी करना मुश्किल होगा। 

पहली बार, तातमाडॉ भारत के पूर्वोत्तर विद्रोहियों के साथ खुले तौर पर सहयोग कर रहा है, एक ऐसा मोड़ जो परंपरागत रूप से पहले से ही एक अस्थिर सीमा पर एक पूरी तरह से नए सुरक्षा प्रतिमान को जन्म दे सकता है।-बर्टिल लिंटनर


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