महिलाओं, आदिवासियों और हाशिए के समुदायों के लिए एक पूंजी साबित होंगी मुर्मू

punjabkesari.in Thursday, Jul 28, 2022 - 05:53 AM (IST)

25 जुलाई, 2022 के ऐतिहासिक दिन पहली आदिवासी महिला के भारत की पहली नागरिक के रूप में शपथ लेने से देश में उत्साह है। वह भारत की 15वीं राष्ट्रपति बनने वाली पहली आदिवासी महिला हैं। वह आजादी के बाद से भारत की सबसे कम उम्र की राष्ट्रपति भी हैं। वह ओडिशा राज्य से पहली राष्ट्रपति भी हैं। वह ओडिशा राज्य से दूसरे आदिवासी राज्य झारखंड में पहली आदिवासी महिला राज्यपाल भी थीं और उन्हें सबसे लंबे समय तक सेवा देने वाली राज्यपाल (2015-2021) होने का गौरव प्राप्त है। 

सफलता, त्रासदी और पराक्रम की व्यक्तिगत यात्रा : उनका ओडिशा के रायरंगपुर से दिल्ली के रायसीना हिल तक का सफर ऐतिहासिक है। उनका जन्म 20 जून, 1958 को एक छोटे से गांव उपरबेड़ा, कुसुमी ब्लॉक, जिला मयूरभंज, ओडिशा में हुआ था और उन्होंने एक जीर्ण-शीर्ण स्कूल में अध्ययन किया था। तब बच्चों के लिए प्राथमिक विद्यालय जाना भी मुश्किल था। उन्होंने जल्दी प्रतिस्पर्धा करना सीख लिया और स्कूल में प्रथम आईं। 

यह दृढ़ संकल्प ही था जो उन्हें 7वीं कक्षा के बाद पढऩे के लिए भुवनेश्वर ले गया क्योंकि गांव का स्कूल केवल उच्च प्राथमिक तक था। सफल होने का उनका दृढ़ संकल्प उन्हें समाजशास्त्र और राजनीति विज्ञान में विशेषज्ञता के साथ उच्च अध्ययन करने के लिए भुवनेश्वर के रमा देवी कॉलेज में ले गया। वह कॉलेज जाने वाली अपने गांव की पहली लड़की थी। 

कॉलेज खत्म करने के बाद, वह ओडिशा सचिवालय में कनिष्ठ सहायक के रूप में नौकरी करने लगीं। उसी वर्ष, उनकी शादी श्याम चरण मुर्मू से हुई और अपना नाम द्रौपदी टुडु से बदलकर द्रौपदी मुर्मू कर लिया, एक ऐसा नाम जो हमेशा भारतीय इतिहास में सुनहरे अक्षरों में अंकित रहेगा। नियति के साथ उनके प्रयास ने वहीं से अपनी रूप-रेखा विकसित करनी शुरू कर दी।

1980 में उन्होंने अपने 4 बच्चों की देखभाल के लिए अपनी नौकरी छोड़ दी। 1988 में उनकी सहनशीलता की परीक्षा ली गई, जब उनकी 8 वर्षीय सबसे बड़ी बेटी की बीमारी के कारण मृत्यु हो गई। जब उनके पति का रायरंगपुर स्थानांतरण हो गया, तो उन्होंने वहां के एक स्कूल में पढ़ाना शुरू कर दिया। धीरे-धीरे वह सभी के लिए दीदी बन गईं और उन्हें आज भी प्यार से ‘दीदी’ (बड़ी बहन) संबोधित किया जाता है। उनका राजनीतिक करियर और रायरंगपुर से रायसीना हिल्स तक की दौड़ वर्ष 1997 में शुरू होती है। जिस वार्ड में वह रायरंगपुर में रहती थीं, वह अनुसूचित जनजाति की एक महिला के लिए आरक्षित निर्वाचन क्षेत्र बन गया। 

उन्होंने भाजपा के साथ जुडऩे का विकल्प चुना, जबकि राजनीतिक दल न तो राज्य की राजनीति में और न ही केंद्र में एक प्रमुख खिलाड़ी था। ओडिशा में 11वीं विधानसभा में भाजपा से केवल 9 निर्वाचित सदस्य थे, जबकि कांग्रेस के 80 थे। कुछ राजनीतिक पंडितों का तर्क है कि राजनीति उनके जीन में है, क्योंकि उनके पिता और दादा अपने जीवनकाल में पंचायत के सरपंच थे।

हालांकि, यह उनकी विनम्रता और अपार लोकप्रियता और जमीन पर काम करने की प्रतिबद्धता है जिसने उन्हें राज्य में भाजपा की राजनीति में सबसे आगे ला दिया। 2000 में, वह ओडिशा राज्य विधानसभा के लिए चुनी गईं। भाजपा ने 38 सीटें जीतीं और बीजद  68 और कांग्रेस 26 पर सिमट गई। भाजपा-बीजद ने गठबंधन सरकार बनाई, और उन्हें परिवहन, मत्स्य पालन व पशुपालन मंत्री बनाया गया। 2004 में, वह विधानसभा के लिए दूसरे कार्यकाल के लिए फिर से चुनी गईं और वर्ष 2007 के लिए सर्वश्रेष्ठ विधायक होने के लिए ‘नीलकंठ पुरस्कार’ जीता। 

2009 में इस साहसी महिला की यात्रा को एक भारी राजनीतिक और व्यक्तिगत झटका लगा, वह लोकसभा चुनाव में मयूरभंज से कुल मतों का केवल 18.26 प्रतिशत प्राप्त करके भारी अंतर से हार गईं। उसी वर्ष वह अपने 25 वर्षीय बड़े बेटे की अचानक और असामयिक मृत्यु के कारण एक और व्यक्तिगत त्रासदी की चपेट में आ गईं। व्यक्तिगत त्रासदियों ने उनके जीवन को जटिल बना दिया। 2013 में उन्होंने एक कार दुर्घटना में अपने दूसरे बेटे को खो दिया और उसी महीने उनके भाई और मां दोनों का निधन हो गया। उन्होंने 2014 में अचानक हृदय गति रुकने के कारण अपने पति को खो दिया। 

वह कुछ समय के लिए वैरागी बन गईं, सक्रिय राजनीति से हटने का फैसला किया और ध्यान की शरण ली। वह 2015 में प्रजापिता ब्रह्माकुमारी संप्रदाय में शामिल हो गईं और खुद को आध्यात्मिकता की खोज में डुबो दिया। तिब्बती में एक कहावत है- ‘त्रासदी को शक्ति के स्रोत के रूप में इस्तेमाल किया जाना चाहिए’। उन्होंने इसे अपने और दुनिया के सामने साबित कर दिया और जनता की भलाई के लिए खुद घाव झेले। इसके बाद पीछे मुड़कर नहीं देखा। उसी वर्ष उन्हें झारखंड की राज्यपाल नियुक्त किया गया। 

2021 में राज्यपाल के रूप में अपना कार्यकाल पूरा करने के बाद, वह रायरंगपुर में अपने साधारण घर लौट आईं और वही करती रहीं जो वह सबसे अच्छी तरह से जानती थीं, सार्वजनिक सेवा। 2022 में उन्हें राजग ने राष्ट्रपति पद के अपने उम्मीदवार के रूप में नामित किया और आज राष्ट्रपति पद की शपथ लेने के बाद, उन्होंने फिर से इतिहास रच दिया। 

मैं उत्साहित क्यों हूं : सवाल यह है कि मैं उत्साहित क्यों हूं? मैं न संथाल हूं और न आदिवासी। लेकिन हां, मैं एक महिला और मानवविज्ञानी हूं, जिसने हमारी दोषपूर्ण विकास नीतियों और एजैंडे के कारण आदिवासी लोगों की निराशा और बेबसी को 30 वर्षों से अधिक समय तक देखा है। हमने अपने अहंकार के कारण उनकी आवाज को दबा दिया। आज, उनके पास एक महिला आदिवासी नेता है, जो जानती है कि पीड़ित होने और संघर्ष करने का क्या मतलब है। एक आवाज, जो बाकी सब से पहले आदिवासी हितों को बनाए रखेगी।

भारत में आदिवासी समुदाय एक ऐसे उत्पादक भविष्य की आकांक्षा रखता है जो उन्हें गरिमा और आर्थिक सुरक्षा प्रदान करे, उनके वन अधिकारों की रक्षा की जाए और उनकी स्थानीय सांस्कृतिक प्रथाओं को सम्मानित और पोषित किया जाए। मेरा दृढ़ विश्वास है कि अपने धैर्य, दृढ़संकल्प से वह हमेशा आदिवासी लोगों और उनके अधिकारों के समर्थन में कार्य करेंगी। कुछ बुद्धिजीवियों और कार्यकत्र्ताओं की धारणा के विपरीत, उनकी उपस्थिति भी प्रतीकात्मक नहीं होने वाली। वह महिलाओं, आदिवासियों और देश के अन्य हाशिए के समुदायों के लिए एक पूंजी साबित होंगी।-शालिना मेहता 
 


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