नए कृषि कानूनों के बाद एम.एस.पी. पर सबसे ज्यादा खरीद

punjabkesari.in Sunday, Jul 11, 2021 - 05:49 AM (IST)

पंजाब के बाघापुराना में अपने खेत में जहां पर उन्होंने हाल ही में धान बोया है, आराम फरमा रहे अजीत सिंह ने कहा कि उसने अपने गेहूं तथा धान की दो उपजों को न्यूनतम समर्थन मूल्य (एम.एस.पी.) पर बेच दिया है। मगर अभी भी वह मोगा जिले में 3 कृषि कानूनों के खिलाफ प्रदर्शन का नेतृत्व कर रहा है। उनका कहना है कि इन कानूनों को निरस्त कर देना चाहिए। 

पंजाब के मालवा क्षेत्र में किसान मुद्दा इस तरह के विचित्र विरोधाभास को जन्म देता है। चूंकि पिछले साल नए कृषि कानून लाए गए थे और फिर सुप्रीमकोर्ट द्वारा इन पर रोक लगा दी गई थी, पंजाब में फसल खरीद के पिछले 2 सत्रों में एम.एस.पी. पर अब तक की सबसे बड़ी खरीद देखी गई है। 210 लाख मीट्रिक टन (एल.एम.टी.) धान खरीदा गया  तथा 2020-21 के मौसम में भारत में करीब एम.एस.पी. खरीद का लगभग 30 प्रतिशत हिस्सा पंजाब से खरीदा गया था। 

2021-22 के मौसम में पंजाब ने अब तक देश में 132 एल.एम.टी. गेहूं की एम.एस.पी. खरीद पर 32 प्रतिशत का अपना योगदान दिया है जो फिर से सबसे अधिक है। नए कृषि कानून लाए जाने के बाद से दोनों मौसमों में पंजाब में एम.एस.पी. पर खरीद में वृद्धि हुई है। एक वरिष्ठ केंद्रीय अधिकारी ने तर्क दिया कि नए कानूनों ने किसानों को अपनी उपज को खुले बाजार में अधिक कीमत पर बेचने का विकल्प दिया जबकि एम.एस.पी. विकल्प हमेशा ही रहेगा। मगर अजीत सिंह अभी भी प्रभावित नहीं है। उनका कहना है कि केंद्र एम.एस.पी. पर एक नया कानून क्यों नहीं लाता। कोई भी प्राइवेट पार्टी एम.एस.पी. से कम पर हमारी फसल नहीं खरीद सकती और एम.एस.पी. हमेशा रहेगा। जब तक ऐसा हो नहीं जाता तब तक ये तीन कृषि कानून हमारे गले की फांस हैं। 

लुधियाना के निकट मक्की की फसल की बुवाई करने वाले अमरीक सिंह का कहना है कि मक्की का एम.एस.पी. 1850 रुपए है लेकिन निजी बाजारों में 800 रुपए पर यह बिकती है। जब निजी क पनियां आएंगी तो ऐसा ही गेहूं और धान के साथ होगा। किसान हाल ही में केंद्र द्वारा गेहूं और धान के समर्थन मूल्य में वृद्धि की सराहना करते हैं। मगर वे पंजाब के बिजली संकट की ओर भी इशारा करते हैं और निजी पावर प्लांटों को इसके लिए दोषी मानते हैं। प्राइवेट क पनियां एक व्यापक समस्या है। जगराओं के मिठ्ठू सिंह का कहना है कि अकाली सरकार ने निजी क पनियों के साथ बिजली खरीद समझौते किए और हम उसकी कीमत चुका रहे हैं। इस तरह कृषि कानूनों के मामले में अब हम केंद्र पर कैसे भरोसा कर सकते हैं? मिठ्ठू का कहना है कि धान बोने के लिए उन्हें पर्याप्त बिजली और पानी नहीं मिला। 

किसान विरोध और राजनीति : एक प्रमुख किसान नेता गुरनाम सिंह चढ़ूनी ने दो दिन पहले कहा था कि उन्हें एक पार्टी बनानी चाहिए और 2022 के पंजाब विधानसभा चुनावों को लडऩा चाहिए। हालांकि इस बयान से अन्य किसान समूहों ने खुद को दूर रखा है। हालांकि सभी राजनीतिक दल अपने पक्ष में काम करने के लिए किसान आंदोलन पर भरोसा कर रहे हैं और आंदोलन का समर्थन करने का वादा कर रहे हैं। राजनीतिक दल किसान समूहों को सक्रिय रूप से लुभा रहे हैं। मंडी गोङ्क्षबदगढ़ के निकट लुधियाना हाईवे पर कांग्रेस और दिल्ली के मु यमंत्री अरविंद केजरीवाल के साथ वरिष्ठ किसान नेता बलबीर सिंह राजेवाल के बड़े-बड़े पोस्टर देखे जा सकते हैं। चुनावों से पूर्व किसान समूहों के बीच कई विचार उत्पन्न हो रहे हैं। 

कुछ का कहना है कि किसानों को पूर्णतय: चुनावों का बहिष्कार करना चाहिए वहीं चढ़ूनी जैसे अन्य नेता मानते हैं कि नए राजनीतिक दल का गठन करना चाहिए जबकि कुछ और किसान नेता मानते हैं कि उन्हें आजाद उ मीदवारों का समर्थन करना चाहिए। चंडीगढ़ में भाजपा नेता बताते हैं कि किस तरह से राकेश टिकैत जैसे किसान नेताओं ने चुनावों के दौरान लोगों से भाजपा को वोट न देने के लिए कहा और आंदोलन ने इसके राजनीतिक उद्देश्यों को उजागर किया।

किसान मुद्दे के कारण शिरोमणि अकाली दल (शिअद) को मालवा क्षेत्र में गांवों में पैठ बनाने में परेशानी का सामना करना पड़ रहा है क्योंकि किसान शिअद को संसद द्वारा पारित कृषि कानूनों के एक पक्ष के रूप में देखते हैं। कांग्रेस को फायदा हो सकता है मगर आम आदमी पार्टी भी किसानों के मुद्दे को कैश करने के लिए उत्साहित दिखती है। किसानों का कहना है कि हमें ऐसी सरकार चाहिए जो कृषि कानूनों को निरस्त कर सके।
 


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