संसद में सांसदों का होगा ‘आभासी मिलन’

punjabkesari.in Tuesday, Jul 07, 2020 - 03:19 AM (IST)

संसदीय इतिहास के सात दशकों से भी ज्यादा समय में भारत का पहला मानसून सत्र होगा, जिसमें इसके कुछ सदस्य निजी तौर पर उपस्थित होंगे तथा अन्य आभासी तौर पर शामिल होंगे। इस दोहरे प्रयोग की मजबूरी कोविड महामारी संकट के चलते पड़ी। यदि भारतीय सांसद इस सत्र में आपस में नहीं मिलेंगे तो वे भारतीय संविधान द्वारा सौंपी गई भूमिका जिसके तहत कानून बनाना, कार्यकारी जवाबदेही का दायित्व निभाना तथा बजट की जांच करना होता है, निभा नहीं पाएंगे। 

संविधान द्वारा यह निर्धारित है कि संसद को 6 माह में कम से कम एक बार मिलना होता है और यह 6 माह की अवधि 22 सितम्बर को समाप्त होरही है। 23 मार्च को बजट सत्र के अनिश्चितकाल के लिए रद्द होने के बाद सांसदों को कोविड, अर्थव्यवस्था, लद्दाख में चीनी विस्तार जैसे कई ज्वलंत मुद्दों के बारे में कार्यकारी से सवाल करना कठिन हो जाएगा। 

आभासी संसद सत्र कोई नई बात नहीं क्योंकि घातक कोरोना वायरस महामारी के फूटने के बाद अनेकों देश इस प्रक्रिया को अपना रहे हैं। विश्व भर में संसद इस महामारी को झेल रही है। मिस्र,जर्मनी, इसराईल, स्वीडन तथा यूरोपियन यूनियन पहलेसे ही आभासी हो चुके हैं। यू.के. तथा फिलीपींस जैसेदेशोंने निजी तौर पर उपस्थित होने तथा आभासी जैसे दोमॉडल अपनाए हैं। भारत यू.के. मॉडल अपनाना चाहता है। आखिर ऐसी संकट भरी घड़ी में संसद को क्यों मिलना चाहिए। कोविड का हवाला देकर मार्च में क्या विपक्ष ने इसे स्थगित करने की मांग नहीं की थी? अब स्थितियां क्यों बदल गईं? संवैधानिक जरूरतों के अलावा कार्यकारी के लिए यह जरूरी है कि संकट से निपटने के लिए उठाए जाने वाले उपायों को विधानमंडल के समक्ष रखा जाए। दूसरा यह कि कुछ आपातकालीन उपायों को विधानमंडल की जरूरत पड़ सकती है। यहां पर विभिन्न अध्यादेश हैं जिन्हें संसद में प्रस्तुत करने की जरूरत है। 

तीसरा यह कि संसद सत्र सरकार तथा सदस्यों के लिए टू-वे ट्रैफिक बन जाएगा। कांग्रेस नीत विपक्ष सत्र की मांग कर रहा है तथा संवैधानिक प्रावधान ऐसी बैठक को अनुबंधित करते हैं। राज्यसभा के चेयरमैन वेंकैया नायडू तथा लोकसभा स्पीकर ओम बिड़ला की तीन बैठकें हो चुकी हैं। मगर अंतिम निर्णय का भी इंतजार है क्योंकि यह सरकार है जिसे यह निर्णय लेना है। दोनों सदनों के पीठासीन अधिकारी हाईब्रिड सत्र को आयोजित करने की चुनौतियों से वाकिफ हैं। पहली तो बैठक स्थल की चुनौती है। उनके पास कई विकल्प हैं, जिसमें सैंट्रल हाल में राज्यसभा के साथ लोकसभा की बैठक आयोजित करना शामिल है क्योंकि राज्यसभा के निचले सदन से कम सदस्य हैं। इसलिए वे लोकसभा के चैम्बर में शिफ्ट हो सकते हैं। राज्यसभा के 127 सदस्य निजी तौर पर तथा बाकी के गैलरी में उपस्थित हो सकते हैं। सदन के भीतर तथा  बाहर आभासीय भागीदारी को सुनिश्चित बनाने के लिए स्क्रीनों का प्रबंध करना होगा। 2022 में जब तक नया पार्लियामैंट काम्पलैक्स बन नहीं जाता, तब तक जगह की दिक्कत हो सकती है।

दूसरी बात यह है कि भारत में यू.के. की तरह 21वीं सदी की आधुनिक तकनीकों को अपनी संसदों में अपनाने के लिए अभी मुश्किल आ रही है। कोरोना वायरस ने नई डिजीटल प्रक्रियाओं को जन्म दिया है। यू.के. की संसद ने अपने 800 वर्ष पुरानी मान्यताओं को तोड़ कर बदलाव लाने के लिए अग्रणी भूमिका अदा की है। यह कुछ ही सप्ताह पूर्व आभासी तौर पर बैठी थी। भारत भी यू.के. मॉडल का मार्गदर्शन कर रहा है, जिसमें सांसदों की आभासी तथा निजी तौर पर उपस्थिति शामिल है। संसद के हाईब्रिड सत्र के लिए सबको तैयार रहना होगा। इसके लिए बेरोकटोक बिजली की आपूर्ति भी शामिल है। इसके साथ सदस्यों के लिए सुरक्षित ब्राडबैंड कनैक्शन तथा तत्काल अनुवाद होना भी लाजिमी है, जिसमें जिला स्तर पर सदस्यों के साथ आभासी तौर पर जुड़े रहने के लिए 3 माह की समय अवधि के लिए 25 करोड़ की लागत बैठेगी। 

उन सदस्यों के लिए क्या होगा जो आधुनिक तकनीक से परिचित नहीं? इस सत्र के लिए लोगों की कुल गिनती करीब 3500 होगी, जिसमें स्टाफ, सिक्योरिटी, मीडिया तथा सांसद व उनका स्टाफ भी शामिल है। इस तरह उनके महामारी से पॉजिटिव होने का जोखिम भी है। तीसरी बात यह है कि सदन को सदस्यों को वोट डालने तथा नए सदस्यों को शपथ दिलाने और सामाजिक दूरी के प्रभावी उपायों आदि के लिए तैयार रहना होगा। इसके अलावा सदन में स्वच्छता तथा सदस्यों के परिवहन की समस्या आ सकती है। लोकसभा सचिवालय ने संसदीय पैनलों की शारीरिक तौर पर होने वाली बैठकों की अनुमति दे दी है। अपने आपमें यह एक नया प्रयोग होगा जिसके तहत सदस्यों को साफ्ट कापी पेपरों को देना, सामाजिक दूरी तथा अन्य दिशा-निर्देशों को अपनाना शामिल है। मंत्रालयों को भी यह परामर्श दिया गया है कि वे कमेटी के सामने ज्यादा से  ज्यादा पांच सदस्यों को उपस्थित होने दें।

संसद का यह हाईब्रिड सत्र कितना प्रभावी होगा, यह लाखों डालर का सवाल है। संसद की कार्रवाई पर शारीरिक दूरी का क्या असर पड़ेगा? विपक्ष किस तरह अपनी कार्रवाई करेगा? उन्हें कार्रवाई को बाधित करने नहीं दिया जाएगा, न ही वे शोर मचा सकेंगे, पोस्टर दिखा सकेंगे। दिल्ली में 750 सांसदों को लाना तथा उन्हें सुरक्षित रखने के जोखिम से पीठासीन अधिकारी भली-भांति परिचित हैं। आने वाली चुनौतियां लाजिमी हैं। इससे सिस्टम की जांच भी हो जाएगी। इन सबके अलावा लोगों द्वारा चुने गए प्रतिनिधियों के पास एक मौका है कि वे लोगों की आवाज बन कर उपस्थित हों। नए हालात में अपने आपको ढालने के लिए हमें तैयार रहना है। वर्तमान समय से बेहतर अन्य कोई समय नहीं।-कल्याणी शंकर


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