‘मातृभाषा भारत की आत्मा है’

punjabkesari.in Sunday, Mar 14, 2021 - 03:54 AM (IST)

दुनिया में बोली जाने वाली 6,000 भाषाओं में से 43 प्रतिशत विलुप्त होने की कगार पर हैं। इनमें से, केवल कुछ सौ भाषाओं का उपयोग, शिक्षा प्रणाली में और लोगों की संपर्क भाषा के रूप में किया जाता है और डिजिटल दुनिया में तो सौ से भी कम भाषाओं का उपयोग होता है। हमें समझना चाहिए कि भाषा व्यक्ति और समुदाय के लिए संचार और पहचान का साधन है। अगर मैं स्वामी विवेकानंद के शब्दों में कहूं, तो ‘‘आम लोगों को उनकी मातृभाषा में ही शिक्षा दी जानी चाहिए, उन्हें विचार दिए जाने चाहिएं; उन्हें जानकारी प्राप्त होगी, लेकिन कुछ और भी आवश्यक है; उन्हें संस्कृति दी जानी चाहिए।’’ 

प्रत्येक भाषा; संस्कृति, समाज के सोचने और जीने के तरीके का प्रतिबिंब होती है। सांस्कृतिक विविधता और अंतर-सांस्कृतिक संवाद को प्रोत्साहित करते हुए, भाषा; विकास के लिए लोगों को आपस में जोडऩे की भूमिका निभाती है। सहयोग को मजबूत करने, समावेशी ज्ञानयुक्त समाजों और सांस्कृतिक विरासत को संरक्षित करने के साथ, भाषा गुणवत्तापूर्ण शिक्षा प्राप्त करने में मदद करती है। 

भारत में अद्वितीय भाषा विज्ञान हैं, जिनकी सांस्कृतिक विविधता के साथ तारतम्यता है। भाषा को एक शक्तिशाली साधन के रूप में जाना जाता है। माननीय प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी जी के कुशल नेतृत्व में, शिक्षा मंत्रालय ने शिक्षा के क्षेत्र में भाषाई विविधता व बहुभाषी शिक्षा को प्रोत्साहित करने के क्रम में मातृभाषाओं के उपयोग तथा प्रसार को मान्यता और बढ़ावा देने के लिए कई पहलें की हैं। 

भारत सरकार ने ‘‘भारत की लुप्तप्राय भाषाओं की सुरक्षा और संरक्षण योजना’’ (एस.पी.पी.ई.एल.) नाम से एक योजना शुरू की है। इस योजना के तहत भारतीय भाषा संस्थान (सी.आई.आई.एल.),  मैसूर  10,000 से कम लोगों द्वारा बोली जाने वाली भारत की सभी मातृभाषाओं/भाषाओं (अर्थात् लुप्तप्राय भाषाएं) की सुरक्षा, संरक्षण और प्रलेखन का कार्य करता है। 

योजना के पहले चरण में, भारत से 117 लुप्तप्राय भाषाओं/मातृभाषाओं को प्राथमिकता के आधार पर अध्ययन और प्रलेखन के लिए चुना गया है। विश्वविद्यालय अनुदान आयोग ने लुप्तप्राय भाषाओं के संरक्षण के लिए दो योजनाओं की शुरुआत की है, जिनके नाम हैं : ‘भारत में स्वदेशी और लुप्तप्राय भाषाओं में अध्ययन और अनुसंधान के लिए राज्य विश्वविद्यालयों को अनुदान सहायता’ और ‘केंद्रीय विश्वविद्यालयों में लुप्तप्राय भाषाओं के लिए केंद्रों की स्थापना’।

सी.आई.आई.एल. के साथ, वैज्ञानिक और तकनीकी शब्दावली आयोग (सी.एस.टी.टी.), महात्मा गांधी अंतर्राष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय, केंद्रीय हिंदी संस्थान, उर्दू भाषा साहित्य और संस्कृति केंद्र (सी.यू.एल. एल.सी.), राष्ट्रीय सिंधी भाषा संवर्धन परिषद (एन.सी.पी.एस.एल.) और राष्ट्रीय उर्दू भाषा संवर्धन परिषद (एन.सी.पी.यू.एल.) ने भारतीय भाषाओं के प्रोत्साहन और संरक्षण के क्षेत्र में प्रशंसनीय कार्य किए हैं। 

इसके अलावा, भारतीय भाषा संस्थान (सी.आई. आई.एल.) के परामर्श से, नवोदय विद्यालय द्वारा हाल ही में एन.वी.एस .के क्षेत्रीय भाषा शिक्षकों के लिए शिक्षण, परीक्षण और मूल्यांकन पर एक ऑनलाइन पाठ्यक्रम आयोजित किया गया है। पाठ्यक्रम, भाषा शिक्षण के लिए एन.एल.पी. (प्राकृतिक भाषा प्रसंस्करण) उपकरण का कार्यान्वयन करने तथा विज्ञान, सामाजिक विज्ञान और गणित के माध्यम से भाषाई कौशल में सुधार करने पर केंद्रित है। 

राष्ट्रीय एकता और अखंडता के लिए यह ‘एक भारत, श्रेष्ठ भारत’ के साथ अच्छी तरह से जुड़ा हुआ है। ‘एक भारत, श्रेष्ठ भारत’ को ध्यान में रखते हुए, एन.सी.ई.आर.टी. ने स्कूलों और शिक्षण संस्थानों के लिए भाषा संगम कार्यक्रम की शुरूआत की है। इस पहल का उद्देश्य भारतीय संविधान की 8वीं अनुसूची में सूचीबद्ध 22 भारतीय भाषाओं से छात्रों को परिचित कराना है। एन.सी.ई.आर.टी. ने भारत की क्षेत्रीय भाषाओं को बढ़ावा देने और संरक्षित करने के लिए सभी कक्षाओं के छात्रों को ध्यान में रखते हुए 22 भाषाओं में सरल व आमतौर पर उपयोग किए जाने वाले वाक्यों से युक्त छोटे संवाद तैयार किए हैं। 

बच्चे की भाषा और शिक्षण माध्यम के बीच मौजूदा अंतराल को कम से कम करने के लिए ठोस प्रयास किए जाएंगे। भाषा सीखना केवल वर्णमाला, अर्थ, व्याकरण के नियम और शब्दों की व्यवस्था को सीखना नहीं है, बल्कि इसे समाज की संस्कृति को आत्मसात करते हुए ज्ञान-प्राप्ति  कौशल को बढ़ाने का एक माध्यम होना चाहिए।-रमेश पोखरियाल ‘निशंक’(केंद्रीय मानव संसाधन विकास मंत्री)


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