जरूरतमंदों की मदद संपन्नों का नैतिक दायित्व

punjabkesari.in Friday, Jul 29, 2022 - 04:37 AM (IST)

यह वक्त की विडंबना है कि हर महत्वाकांक्षी भारतीय अमरीका को अपना आदर्श मानकर भौतिक सुख की चकाचौंध हासिल करना चाहता है। उच्च शिक्षितों व सक्षम लोगों की पहली मंजिल अमरीका ही होती है। ऐसे तमाम लोगों को दुनिया के धन्ना सेठों में शुमार बिल गेट्स आईना दिखाते हैं। वह जानते हैं कि दुनिया में कितनी असमानता, गरीबी व दुख है। अत: उन्होंने अपनी आय में 20 अरब डालर (लगभग 15.92 खरब रुपए) बिल एंड मेलिंडा गेट्स फाऊंडेशन को दान देने का फैसला किया है।

वह कहते हैं कि अपने संसाधन समाज को लौटाना मेरा नैतिक दायित्व है, जिससे लाखों लोगों का जीवन बेहतर बनाने में वह अपनी भूमिका निभा सकें। वह कोरोना महामारी व यूक्रेन संकट से जूझ रहे लोगों की मदद के लिए आर्थिक सहायता बढ़ा रहे हैं। काश दुनिया का हर संपन्न व्यक्ति ऐसे ही सोचे तो दुनिया स्वर्ग ही बन जाए। लेकिन आज व्यक्ति अपनी 7 पुश्तों का भविष्य सुनिश्चत करने में लगा है। 

भारतीय दर्शन जीवन के क्षणभंगुर होने की बात सदियों से करता आया है। जीवन क्या है, सिर्फ जन्म और मृत्यु के बीच का एक फासला ही तो है। दुनिया में अमृत्व किसी को नहीं मिला, चाहे देवता ही क्यों न हो, ऐसे में हम इंसान की क्या बिसात। यह महत्वपूर्ण नहीं है कि जन्म से लेकर मृत्यु तक हमने कितना लंबा जीवन जिया, महत्वपूर्ण यह है कि हमने कितना सार्थक जीवन जिया। इस विशाल ब्रह्मांड में पृथ्वी, जो एक छोटा सा ग्रह है, जिस पर हमारा वास है,हम समाज, मानवता व प्रकृति के प्रति समर्पण भाव से इसे और सुन्दर बना सकते हैं। तभी हमारा जीवन सार्थक होगा। एक चौंकाने वाला आंकड़ा सामने आया कि संसार में लाखों लोग अगली सुबह का सूरज नहीं देख पाते, यानी हृदय रोग व अन्य बीमारियों से उनकी अप्राकृतिक मृत्यु हो जाती है। 

चाहे हम कितने भी संपन्न हों, हमें अपने परिजन को बचाने का मौका भी नहीं मिल पाता। ऐसा भी कहा जाता है कि हमारी सांसें भी निश्चित हैं। एक बहुचर्चित फिल्मी गाना भी है कि ‘न जाने कौन सा पल मौत की अमानत हो’। 

कितना क्षणिक व क्षणभंगुर है जीवन। भारत व अन्य देशों में ऐसे उदाहरण मिलते हैं कि बड़े धनाढ्य लोगों ने अपना सर्वस्व राष्ट्र व समाज के कल्याण के लिए दे दिया। भामाशाह ने अपना सब कुछ महाराणा प्रताप को दे दिया था। जब महाराणा प्रताप ने भामाशाह को कहा कि कुछ तो परिवार के लिए रख लो, तो उन्होंने कहा था जब राष्ट्र जीवित रहेगा तो मैं फिर धन कमा लूंगा। अगर राष्ट्र जीवित नहीं रहेगा तो मेरा संचित धन किस काम का। 

सेठ टोडरमल ने गुरु गोबिंद सिंह जी के छोटे साहिबजादों के अंतिम संस्कार के लिए अपना सारा धन एक छोटे से जमीन के टुकड़े के लिए दे दिया। देश में कारोबार व वाणिज्य में दुनिया में परचम लहराने वाले वैश्य समाज ने सदियों से सामाजिक कार्यों में अग्रणी भूमिका निभाई है। संसार के सबसे अमीर व्यक्ति वार्न बफे व बिल गेट्स का उदाहरण सबके सामने है, जिन्होंने अपनी संपत्ति का एक बहुत बड़ा भाग जनकल्याण के लिए दान कर दिया। अजीम प्रेमजी का नाम एशिया के सबसे बड़े दानवीर के रूप में आता है, जिन्होंने अपनी संपति का 75 प्रतिशत हिस्सा दान कर दिया है, जो लगभग 27 करोड़ रुपए प्रतिदिन बनता है। गौतम अडानी ने अपने 60वें जन्मदिन पर 60,000 करोड़ रुपए दान देकर अपने जन्म दिवस को सार्थकता प्रदान की। 

चण्डीगढ़ पी.जी.आई. के बाहर लाखों जरूरतमंदों को खाना खिलाने वाले पद्मश्री जगदीश लाल आहूजा, जिन्हें लंगर बाबा भी कहते थे, के परिवार ने अपना सब कुछ बीमारों के परिजनों की भोजन व्यवस्था में लगा दिया। आंध्र प्रदेश के एक रिटायर्ड हैडमास्टर पूरमराम भूपाल ने रिटायर होने के बाद आराम की जिन्दगी बिताने की बजाय बच्चियों की शिक्षा के लिए तपस्या करने का फैसला लिया। रिटायरमैंट पर मिली 25.71 लाख की राशि बच्चियों की शिक्षा के लिए दान कर दी। यदि हम सभी सक्षम व्यक्ति समाज के वंचित व गरीब वर्ग के लिए कुछ न कुछ करें तो हमारा देश अगले 10 साल में गरीबी से उबर जाएगा। 

मैं दो उदाहरण देता हूं। मेरे एक परिचित का लड़का स्नातक करने के बाद आॢथक संकट के कारण आगे नहीं पढ़ पाया। मैंने उसको प्रोत्साहित किया व उसकी आगे पढऩे की व्यवस्था की। उसने एम.कॉम अच्छे नम्बरों से पास की व उसकी सरकारी नौकरी लग गई। अब वह 12वीं क्लास को पढ़ा रहा है। जिसकी तनख्वाह लगभग 1 लाख रुपए है। मेरे एक संबंधी जो रेलवे में अधिकारी थे, उनके पास उनके घर में काम करने वाली बाई का लड़का आया कि मुझे चपरासी की नौकरी दिलवा दो। उन्होंने उससे 12वीं के नम्बर पूछ कर अपने सहयोगियों के साथ मिल कर उसको इन्जीनियरिंग के कोर्स में दाखिला दिलवा दिया। वह आज इन्जीनियर है। अगर हम किसी गरीब को सुविधाएं देंगे तो वह निश्चित रुप से तरक्की कर सकेगा। 

इसके अलावा समाज में सेवा व मदद करने का व्यक्ति के स्वास्थ्य से भी सीधा रिश्ता है। जो व्यक्ति सामाजिक होता है, संवेदनशील होता है। जो लोगों के सुख-दुख में शामिल होता है, वह तनावमुक्त होता है। उसका रक्तचाप संतुलित व हृदय स्वस्थ होता है। सकारात्मकता उसके शरीर में स्वास्थ्यवद्र्धक हार्मोन्स का रिसाव करती है। उससे व्यक्ति स्वस्थ होता है और उसकी उम्र अधिक होती है। सही मायनों में सेवा का संकल्प हमें तनावमुक्त रखता है। 

हमें कोरोना संकट ने दुख तो बहुत दिए, लेकिन उसने हमें सबक भी बहुत सिखाए। हमने देखा कि करोड़पतियों को भी उपचार उपलब्ध नहीं हो पाया। या फिर उनकी देखरेख करने उनके खून के रिश्तों के लोग भी नहीं आए। लेकिन कई मामले ऐसे आए कि अनजान लोगों ने सैंकड़ों लोगों की मदद संक्रमितों के उपचार व अंतिम संस्कार में की। समाज तो लोगों के मिलने व सहयोग करने से ही बनता है। केवल आर्थिक ही नहीं, हम कई तरह से लोगों की मदद करके समता के न्याय को हकीकत बना सकते हैं।-अनिल गुप्ता ‘तरावड़ी’
 


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