नफरत फैलाने वालों की बजाय एकजुट देश का नेतृत्व करें मोदी

punjabkesari.in Friday, Jun 17, 2022 - 05:20 AM (IST)

मैं अधिकतर अपने प्रधानमंत्री की आलोचना करता रहा हूं और यह जानने का प्रयास किया कि क्यों? मेरे मित्रों की दुनिया आज ऐसे लोगों में विभाजित है जिनमें से कुछ मोदी समर्थक तथा अन्य मोदी विरोधी हैं। और चूंकि मैं नफरत की राजनीति को स्वीकार नहीं करता, मैंने खुद को तब तक दूसरे हिस्से में रखा जब तक कि कुछ अपरिहार्य नहीं घटा और मोदी जी को अपने खुद के प्रवक्ताओं से अपनी तथा अपनी पार्टी की दूरी बनाने के लिए मजबूर नहीं होना पड़ा। 

इन दिनों प्रवक्ता काफी ताकतवर बन गए हैं। कई प्रमुख प्रवक्ताओं को मंत्रिमंडल में पदोन्नत किया गया है जैसे कि निर्मला सीतारमण तथा स्मृति ईरानी। निर्मला ने निश्चित तौर पर अपनी गुणवत्ता के कारण अपना राजनीतिक भाग्य अर्जित किया है। मगर नूपुर शर्मा को उसकी विशाल तथा निष्ठावान फॉलोइंग के बावजूद एक वरिष्ठ सहयोगी के साथ ‘बकवास’ करने का काम सौंपा गया जिसका नाम समाचारों में नियमित रूप से नहीं आता था। 

नूपुर को दरकिनार करने से भाजपा की अन्यथा अच्छी-भली मशीनरी को झटके लगने शुरू हो गए। मोदी जी के पास उस तूफान को झेलने की बुद्धि है लेकिन इसके परिणाम को लेकर क्या? भाजपा के प्रमुख मतदाता मुस्लिम देशों को खुश करने के लिए नूपुर शर्मा के खिलाफ तेजी से की गई कार्रवाई के झटके को सह पाएंगे, जो हमारी अर्थव्यवस्था के लिए महत्वपूर्ण कच्चे तेल की आपूर्ति करते हैं तथा अपने वहां भाग्य उत्पादों का आयात करते हैं जिन्हें अपने अस्तित्व के लिए हमें बेचने की जरूरत होती है? 

इन प्रश्रों तथा इन प्रश्रों के उत्तरों के संदर्भ में मुझे वास्तविक तौर पर अपने प्रधानमंत्री के लिए तरस महसूस होता है। मेरे कई करीबी मित्रों को मेरी इस टिप्पणी पर हैरानी होगी। खुद मुझे भी हैरानी होगी। लेकिन मोदी जी की उपलब्धियों तथा असफलताओं बारे गंभीरतापूर्वक विचार करने के बाद मैं इस निष्कर्ष पर पहुंचा हूं कि हमारे प्रधानमंत्री को देश की सहानुभूति के साथ-साथ समर्थन की भी जरूरत है। 

मोदी जी को भारत की जनता ने प्रचंड बहुमत के साथ चुना था। हालांकि, जिसे ज्यादा वोट मिले वह जीता प्रणाली के अंतर्गत जहां अधिकतर मतदाताओं ने संभवत: उनकी पार्टी के उम्मीदवार को समर्थन नहीं दिया। मगर यह तथ्य है कि हमारी चुनाव प्रणाली में, जो वैस्टमिंस्टर माडल पर आधारित है, वह विजयी रहे। प्रत्येक भारतीय को यह स्वीकार करना होगा। प्रत्येक भारतीय को उन्हें अपने प्रधानमंत्री के तौर पर स्वीकार करना तथा संकट से पार लगाना होगा। 

मेरे मित्र तर्क देंगे कि यह संकट उनका खुद का बनाया हुआ है। वह हर उस समय चुप रहे जब अल्पसंख्यक समुदाय पर जहर उगला जा रहा था तथा उनकी सम्पत्तियों पर बुलडोजर चलाया जा रहा था। मैं उनके इन तर्कों को खारिज नहीं कर सकता लेकिन इस घड़ी उनका समर्थन करने के लिए मैंने कई कारणों पर विचार किया। 

पहला तथा सबसे महत्वपूर्ण कारण यह है कि मोदी जी एक जन्मजात नेता हैं। अपनी वाक्पटुता के कौशल से भीड़ों को प्रभावित करने की उनकी ताकत का कोई मुकाबला नहीं। राजनीतिक क्षितिज में किसी भी विपक्षी नेता के पास परमात्मा का दिया यह तोहफा नहीं है। यह सच है कि इस तोहफे का दुरुपयोग कई बार सफेद को काला करने के लिए किया जा सकता है लेकिन यह तथ्य कि उन्होंने इससे भी पार पा लिया भी एक कौशल है। 

उनके पक्ष में दूसरा तर्क तथा जिसका विरोध नहीं किया जा सकता, वह है देश तथा इसकी तरक्की के प्रति उनकी पूर्ण निष्ठा। मोदी जी दिन में 18 घंटे काम करते हैं, गुजरात में उनके एक छोटे से गांव में उनकी बुजुर्ग मां के अतिरिक्त उन पर कोई निर्भर नहीं है। अत: ‘परिवार’ की ओर से नौकरशाहों पर कोई दबाव नहीं है तथा हमारी तरह के लोकतंत्र में यह एक सच्चा आशीर्वाद है। अपने पूर्ववर्ती मनमोहन सिंह की तरह खुद मोदी जी पर कभी कोई आरोप नहीं लगा या उन पर कभी भ्रष्टाचार को लेकर संदेह किया गया हो। सभी राजनीतिक दलों की तरह उनकी पार्टी को भी संचालन के लिए बड़ी मात्रा में धन की जरूरत है। यह अपना धन चुनावी बांड्स से बनाती है जो बड़े कार्पोरेट घराने निर्दिष्ट बैंकों से खरीदते हैं। बहुत से एन.आर.आईज. भी हैं जो अकूत धन के साथ उनकी पार्टी का समर्थन करके खुश हैं। 

आज प्रधानमंत्री एक गंभीर दुविधा की स्थिति में हैं। उन्हें तथा उनकी पार्टी को उस नफरत से चुनावी लाभ हुआ है जिसका प्रसार उन्होंने समाज में देश भर में किया। एक विशाल संख्या में हिंदू आज भाजपा का समर्थन करते हैं क्योंकि उनमें से प्रत्येक मुसलमानों के लिए नफरत से सिंचित है। जैसे कि यदि लोग केवल नफरत पर ही जीने बारे सोचें तो प्रतिस्पर्धात्मक जगत में फल-फूल सकते हैं। मोदी एक चतुर राजनीतिज्ञ हैं। उन्होंने अकेले अपने दम पर भगवा पार्टी के लिए चुनाव जीते हैं। भाजपा के लिए देश भर में वोट प्रतिशत 2014 में 32 से बढ़ कर 2019 में 37 तक पहुंच गया। इनमें से बड़ी संख्या में वोट उन सीमांत लोगों की ओर से आए जिनका दिल कल्याणकारी योजनाओं से जीता गया।

मगर अधिकतर लोकप्रिय राजनीतिज्ञों की तरह मोदी लोगों के दिलों में अपनी जगह तथा अपनी छवि को लेकर अत्यंत सतर्क हैं। जब खाड़ी के मुस्लिम सुल्तानों ने एकमत में उनकी पार्टी के प्रवक्ताओं द्वारा किए गए नफरत वमन के खिलाफ बोला तो उन्हें तुरन्त पता चल गया कि वह फिसल गए हैं। एक को निलंबित तथा दूसरे को पार्टी से निष्कासित करके वह मुस्लिम शासकों को खुश करने में तो सफल रहे लेकिन ‘फ्रिज एलिमैंट्स’ के खिलाफ दंडात्मक कार्रवाई करके उन्होंने एक तरह से भिड़ के छत्ते को छेड़ दिया।

भाजपा के समर्थकों में नूपुर शर्मा की एक बड़ी फॉलोइंग है तथा इस वर्ग ने विद्रोह किया है। अब यह अधिक प्रबुद्ध लोगों का कत्र्तव्य बनता है कि मोदी को नफरत की राजनीति से दूर करें जो उनके देश को नुक्सान पहुंचा रही है और उनका ‘ङ्क्षफ्रज एलिमैंट्स’ से बचाव करें, जिनका उन्होंने चाहते या न चाहते हुए सशक्तिकरण किया है। 

हमें देश तथा दुनिया में मोदी के निजी महत्व पर जोर देते हुए इस पर विजय पानी है और अब उनके लिए रवैया बदलना तथा ‘फ्रिज एलिमैंट्स’ की सेना की बजाय एकजुट देश का नेतृत्व करना जरूरी है। विडम्बना यह है कि शुरू में उन्होंने भी यही लक्ष्य बनाया था जब तक कि नफरत के रास्ते ने उनके नैरेटिव को नहीं बदल दिया। यदि आखिरकार ऐसा होता है तो सभी विद्वान, धर्मनिरपेक्ष उदारवादी, अर्बन नक्सल तथा अल्पसंख्यक उनके दिल में इस बदलाव का स्वागत करेंगे। संभवत: आर.एस.एस. के सरसंघचालक भी खुलकर सामने आएंगे और अच्छे ङ्क्षहदुओं को देश की प्रत्येक मस्जिद में शिवलिंग न खोजने की अपनी सलाह को दोहराएंगे। और वास्तव में यह हमारे प्रयासों का अंत होगा। देखते हैं क्या होता है!-जूलियो रिबैरो(पूर्व डी.जी.पी. पंजाब व पूर्व आई.पी.एस. अधिकारी)
 


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