मोदी के ‘नासमझ’ भक्त उन्हें मुक्तिदाता समझते हैं

punjabkesari.in Monday, Jun 15, 2020 - 02:19 AM (IST)

‘भक्त’ का अर्थ है उपासक। कोई व्यक्ति किसी के प्रति बेतहाशा उत्साह दिखा सकता है। हिंदी उस व्यक्ति को अनुरागी की तरह प्रभाषित करती है जो शर्तहीन और शाश्वत प्रेम की पेशकश करता है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के अनुयायियों के लिए ‘भक्त’ शब्द प्रभाषित किया जाता है। मोदी के भक्त उनको मुक्तिदाता समझते हैं। वह समझते हैं कि मोदी का मतलब बदलाव है जो भारत की जरूरतों के अनुसार देश में बदलाव को उत्पन्न करेगा। इस तरह से सोचने वाले लोग भ्रष्ट तथा अक्षम राजनेताओं से अपने आपको अलग समझते हैं। वे मानते हैं कि मोदी उनसे अलग हैं तथा वह सब कुछ पलट कर रख देंगे और भारत को फिर से महान बना देंगे।

भक्ति बुद्धि का नहीं जुनून का उत्पाद है
मेरे सोचने का ढंग अलग है मगर यह स्पष्ट नहीं कि भक्ति क्या है? भक्ति बुद्धि का नहीं बल्कि जुनून का उत्पाद है। यह धार्मिक है और धर्म की तरह यहां भी भक्त का संबंध भौतिक जगत से नहीं है कि वास्तविकता में क्या होता है। सवाल यह है कि क्या मोदी के समर्थकों को भक्तों के रूप में वर्गीकृत करना उचित है। हमें इसे निष्पक्ष रूप से देखना चाहिए।

गुजरात माडल के एजैंडे में पहला विषय अर्थव्यवस्था होना था। भारत की अर्थव्यवस्था इस वर्ष सिकुड़ेगी जिसका अर्थ है कि 2020-21 में सकल घरेलू उत्पाद (जी.डी.पी.) पिछले साल की तुलना में कम होगा। यह कुछ ऐसा है जो चार दशकों में नहीं हुआ था। संकुचन पिछली 9 तिमाहियों के लिए प्रत्येक तिमाही अर्थव्यवस्था की लगातार धीमी गति से हुआ है। 1947 के बाद ऐसा कभी नहीं हुआ। यह स्थिति लॉकडाऊन से पहले की थी। 

रेटिंग एजैंसी मूडीज ने भारत को वापस उसी स्थान पर गिराया है, जहां पर यह 2003 में था। यह हमारी साख तथा लागत को प्रभावित करेगा जहां से भारत पैसे को जुटा सकता है। रिपोर्ट कार्ड पर यह केवल एक निशान मात्र नहीं। हम सभी को इसके लिए भुगतना पड़ेगा। सरकार के मुख्य आर्थिक सलाहकार का कहना है कि वे नहीं जानते कि रिकवरी साल के दूसरे भाग में होगी या फिर अगले साल में। 

वर्ष की शुरूआत में बेरोजगारी की दर 8 प्रतिशत थी, जो भारत के इतिहास में सबसे अधिक थी। यह स्थिति लॉकडाऊन से पहले की थी। आज यह करीब 20 प्रतिशत हो चुकी है। शनिवार को अर्थशास्त्रियों ने एक शीर्षक दिया ‘‘भारत का लॉकडाऊन वायरस को रोकने में विफल रहा है लेकिन यह अर्थव्यवस्था को रोकने में सफल रहा है।’’ अर्थशास्त्री मोदी के इतने करीब हैं कि उन्होंने 2013 में रिपोर्ट दी थी कि वह 2014 में उत्तर प्रदेश से चुनाव लड़ेंगे। मैंने तब लिखा था कि यह गलत था कि मोदी गुजरात से ही चुनाव लड़ेंगे। मगर मैं ही था जो गलत था। 

एजैंडे में दूसरा विषय राष्ट्रवाद का था, ब्रिटिश समाचार पत्र ‘टैलीग्राफ’ ने गुरुवार को खुलासा किया कि भारत में हर कोई जानता है लेकिन इस पर चर्चा नहीं की जा सकती। चीन ने लद्दाख के 60 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र पर कब्जा कर लिया है। शुक्रवार को फ्रांसीसी समाचार एजैंसी ए.एफ.पी. ने इस क्षेत्र में एक वरिष्ठ अनाम भारतीय सैन्य अधिकारी के हवाले से कहा कि चीनी पैंगोंग और गलवान घाटी दोनों में अपने नए कब्जे वाले स्थानों से वापस जाने से इंकार कर रहे हैं। वह नई यथास्थिति को मजबूत कर रहे हैं।

शनिवार को मैं जागा और हैडलाइन पढ़ी, जिसमें लिखा था ‘‘कुलगाम और अनंतनाग में चार आतंकवादी मारे गए, मुठभेड़ चल रही है।’’ सप्ताह में यह चौथी बार था, जब ऐसा कुछ हुआ था। कश्मीर में 2002 में शुरू और 2014 में नीचे तक लोगों की जानलेवा घटनाओं में बड़ी गिरावट आई है। मगर घाटी में फिर से हिंसा जारी है। इस बीच एक भी कश्मीरी पंडित घाटी में वापस नहीं लौटा है। 

पाकिस्तान के साथ नियंत्रण रेखा जहां एक ओर बनी हुई है, वहीं चीन  ने वास्तविक नियंत्रण रेखा को पार कर लिया है। यह घोषणा करने के बाद कि भारत उनके नेतृत्व में कोरोना वायरस के खिलाफ महाभारत का युद्ध लड़ेगा जो 3 सप्ताहों तक चलेगा। मोदी इस बात पर चुप हो गए कि लड़ाई का अगला चरण क्या होगा। लॉकडाऊन खत्म हो गया और मामले बढ़ रहे हैं जैसा कि पहले भी लिखा है कि मोदी के नेतृत्व में गुजरात ने स्वास्थ्य सेवा और शिक्षा की उपेक्षा की।

आज गुजरात में केरल के मुकाबले 10 गुणा ज्यादा कोरोना के मामले हैं। इस बीच जैसा कि भारत की गिरावट की वास्तविकता से मोदी बेखबर हैं फिर भी वह निरंतर ही राजनीतिक खेल खेल रहे हैं। कोरोना महामारी के बीच मध्यप्रदेश शीर्ष पर था और अब राजस्थान में खरीदो-फरोख्त का मामला देखा जा सकता है। राजनीतिक सत्ता पर कब्जा करना एकमात्र लक्ष्य प्रतीत हो रहा है। 

6 वर्षों के बाद मोदी के नेतृत्व में भारत की वास्तविकता यही है। निश्चित रूप से एक मसीहा नेता के लिए चमत्कार दिखाने का पर्याप्त समय है। यदि उन्होंने इसको उत्पन्न नहीं किया। अब यह सोचा जाएगा कि ऐसा उत्पन्न करने की क्षमता उन में कभी न थी। कई लोग लम्बे समय से यही बात कह रहे हैं। उनका निधान गलत था और उनके इलाज बीमारी से बदतर साहिब हुए। दिलचस्प बात यह है कि इससे उनके समर्थकों पर कोई फर्क नहीं पड़ा। वे तो उनकी आराधना में मग्र हैं। मोदी के नेतृत्व में भारत को वास्तविक, ठोस, सत्यनिष्ठ क्षति हुई है जिसके लिए उन्हें दोषी ठहराया है। हम यह निष्कर्ष निकाल सकते हैं कि वास्तव में भक्तों को भक्त कहना बिल्कुल सही है। मतलब वे मोदी के नासमझ भक्त हैं।-आकार पटेल 


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