फौजी हितों के लिए सैन्य आयोग गठित किया जाए

punjabkesari.in Wednesday, Jul 27, 2022 - 06:54 AM (IST)

23 वर्ष पूर्व जब अप्रैल 1999 में पाकिस्तानी सेना की नार्दर्न लाइट इन्फैंट्री ने कारगिल सैक्टर में 168 किलो मीटर लम्बी नियंत्रण रेखा पार करके भारी संख्या में मश्कोह घाटी, द्रास, काकसर तथा बटालिक सैक्टरों में भारतीय सेना द्वारा शीतकाल के दौरान खाली छोड़ी गई पोस्टों पर मोर्चाबंदी कर ली तो देश के रक्षकों ने 16500 से 19000 फुट की ऊंचाई वाली अत्यंत कठोर तथा जोखिम भरी पहाडिय़ों से दुश्मन को खदेड़ कर 26 जुलाई को तिरंगा फहराया। फिर क्या था, सेना की चारों ओर जय-जयकार होने लग पड़ी। यह एक कड़वी सच्चाई है कि ‘परमात्मा तथा सेना को केवल कठिन घड़ी के समय ही याद किया जाता है’। जब खतरा टल जाता है तो इंसान सब कुछ भूल जाता है, सरकारों की तो बात ही छोड़ दो। 

जरूरत क्यों : तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने जब युद्ध प्रभावित सैनिकों के लिए यह जानने की कोशिश की कि इस क्रम में क्या कोई राष्ट्रीय नीति है, बस फिर क्या था, जल्दबाजी मच गई। यदि होती तो अफसरशाही प्रधानमंत्री को पुट-अप करती। खैर उन्होंने सबसे पहले यह प्रशंसनीय आदेश जारी किया कि शहीदों के मृत शरीरों को उनके घरेलू रिहायशी इलाकों में पहुंचा कर फौजी रस्मों के अनुसार अंतिम विदाई दी जाए, जो आज भी लागू है।

फिर वाजपेयी जी ने सैनिकों की भलाई को मद्देनजर रखते हुए एक राष्ट्रीय नीति बनाने के लिए एक उच्च स्तरीय समिति का गठन किया। इस कमेटी में अन्य के अतिरिक्त पंजाब के मुख्यमंत्री भी नामजद थे और बतौर स्टाफ अफसर मुझे बैठकों की कार्रवाई बारे पूरी जानकारी है। इसलिए इस बारे एक अलग लेख लिखा जाएगा। खैर असलियत तो यह है कि न तो अभी तक राष्ट्रीय नीति दिखाई देती है और न ही कोई अलग सैन्य आयोग। 

एक बार फिर करीब 2 वर्ष पूर्व जब लद्दाख के पश्चिमी सैक्टर में पड़ती पैंगोंग-त्सो झील के उत्तर की ओर पी.एल.ए. की कम्पनियां प्रवेश कर गईं तो गलवान घाटी में खूनी झड़प भी हुई। तो फिर जाकर शासकों को सेना की याद सताने लगी। बेशक उस समय सैनिकों के बढ़े हुए डी.ए. पर 18 महीनों के लिए कट लगा दिया गया मगर सेना के आधुनिकीकरण की ओर ध्यान जरूर आकर्षित हुआ। 

लद्दाख सैक्टर, जहां 10,000 के करीब सेना थी, वह नफरी अब वायुसेना, तोपखाने, आम्र्ड, इंजीनियर सहित 50,000 के करीब पहुंच गई क्योंकि जल्दबाजी में कई पलटनों के जवान तथा अफसर भी अपने परिवारों को भगवान भरोसे छोड़ कर एल.ए.सी. पहुंच गए। गत वर्ष रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने लद्दाख के सीमांत क्षेत्र का दौरा किया और जवानों को संबोधित किया। उनके ध्यान में लाया गया कि देश के विभिन्न क्षेत्रों में बसे सैन्य परिवार अनेक मुसीबतें झेलते रहते हैं लेकिन प्रशासन द्वारा उनकी कोई पूछताछ नहीं होती। रक्षा मंत्री ने तुरंत आदेश जारी किया कि संबंधित जिले में फार्मेशनों द्वारा एक-एक जूनियर कमीशंड अफसर (जे.सी.ओ.) तैनात किया जाए ताकि सिविल तथा पुलिस अधिकारियों के साथ तालमेल करके सैन्य परिवारों के मसले हल किए जा सकें। लो बताओ! 

खुदमुख्तियार तथा घमंडी प्रशासनिक अधिकारी तथा पुलिस अफसर तो सेना के उच्चाधिकारियों को बनता सम्मान देने को राजी नहीं होते तो एक बेचारे जे.सी.ओ. को कौन पूछे? इस तरह से जब 4 वर्षों बाद 75 फीसदी अग्निवीरों की छंटनी की गई, अब केंद्र, राज्य सरकारों, उद्योगपतियों, गैर सरकारी तथा अनेक तरह के अदारों द्वारा सेना द्वारा फारिग किए गए अग्निवीरों के लिए आरक्षण के ऐलान तो किए जा रहे हैं मगर जब तक इन्हें लागू करने बारे कानूनी मान्यता प्रदान नहीं की जाती और जिम्मेदार अधिकारियों की जवाबदेही तय नहीं की जाती, तब तक परेशानी होती रहेगी। 

समीक्षा तथा सुझाव : जानकारी के अनुसार सारे देश में करीब 25 लाख पूर्व सैनिक तथा लगभग 7 लाख सैन्य विधवाएं हैं। यदि इनके पारिवारिक सदस्यों को भी जोड़ लिया जाए तो यह गिनती एक करोड़ तक पहुंच जाती है। पंजाब में पूर्व सैनिकों की पूर्व गिनती 3,39,267 तथा वीर नारियों की संख्या 1,51,860 है और इन पर निर्भर सदस्यों की गिनती करीब 10 लाख है। इस समय सशस्त्र सेनाओं की कुल नफरी 14 लाख के करीब है और 1.15 लाख रिर्वजस्ट हैं। बेशक गत 2 वर्षों से पक्की भर्ती बंद थी मगर हर वर्ष करीब 50,000 योद्धाओं को सेना अलविदा कह देती है। 4 वर्षों बाद अग्निवीरों की घर वापसी के कारण यह गिनती बढ़ती जाएगी फिर भलाई कैसे संभव हुई। 

सैनिकों, पूर्व सैनिकों तथा उनके परिवारों का सारा कल्याण तथा पुनर्वास की जिम्मेदारी केंद्र तथा राज्य सरकारों की सांझे तौर पर होती है मगर ‘सांझे बाबे’ को भी कौन दुहाई दे। यद्यपि केंद्र सरकार द्वारा राज्यों के सैनिक भलाई विभागों के लिए खर्चे की 60 प्रतिशत आपूर्ति उनके द्वारा की जाती है, उल्लेखनीय यह भी है कि भारत सरकार के विभागों तथा राष्ट्रीय बैंकों आदि में ग्रुप ‘सी’ तथा ‘डी’ के लिए 10 फीसदी के 25 फीसदी नौकरियां सैनिकों के लिए हैं मगर क्या ये भरी गईं? जिस तरह से पंजाब सरकार के विभागों, कार्पोरेशनों, अद्र्ध सरकारी अदारों आदि के लिए 13 फीसदी सैनिकों के लिए आरक्षण की नीति है मगर यह तो फौजी वर्ग के लिए आधे कोटे से भी कम उपलब्ध हैं। 

पंजाब सरकार ने जिला सैनिक भलाई अफसरों को प्रशासन के साथ मिल कर सैनिकों की समस्याएं हल करने के लिए ‘नोडल अफसर’ के तौर पर नामांकित किया हुआ है। अफसोस की बात तो यह है कि जब सौनिक कल्याण विभाग में डायरैक्टर के अलावा हैडक्वार्टर सहित 24 जिलों के लिए केवल 3 अफसर ही उपलब्ध हों तो फिर रक्षा मंत्री के सामने हर बार दुखी हृदय के साथ मुद्दे उठाने जायज हैं। मुख्यमंत्री को चाहिए कि विभाग की कमी तुरंत पूरी करें। 

अग्रिपथ स्कीम की तरह सबसे पहले प्रस्ताव पास करने के साथ राज्य सैन्य आयोग कायम किया जाए। सर्वहिंद फौजी भाईचारा एन.जी.ओ. के तौर पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी को अपील करता है कि अटल जी द्वारा सैन्य वर्ग के कल्याण हेतु गठित की गई राष्ट्रीय नीति को सिरे चढ़ा कर  राष्ट्रीय सैन्य आयोग’ भी कायम किया जाए, ताकि दोषी अधिकारियों को जवाबदेह बनाया जा सके। जरूरत इस बात की भी है कि सुप्रीम कोर्ट के आदेशों के अनुसार ओ.आर.ओ.पी. की खामियां दूर की जाएं।-ब्रिगे. कुलदीप सिंह काहलों (रिटा.)
 


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