श्री दरबार साहिब पर सैन्य हमला तीसरे घल्लूघारे के तौर पर स्थापित हो चुका है

punjabkesari.in Friday, Jun 04, 2021 - 05:35 AM (IST)

जून 1984 में भारतीय सेना द्वारा श्री दरबार साहिब पर किया गया हमला इतिहास में तीसरे घल्लूघारे के तौर पर स्थापित हो चुका है। श्री दरबार साहिब की चारों दिशाओं में हमेशा खुले रहने वाले 4 दरवाजे सर्व सांझी वार्ता के प्रतीक हैं, जहां से हमेशा ही ‘मानस की जात सबै एकै पहचानबो’ का संदेश झलकता है।

जून 84 के घल्लूघारे के दौरान श्री दरबार साहिब में प्रकाश श्री गुरु ग्रंथ साहिब जी को भी गोलियां मारी गईं जिनको विश्व का हर सिख हाजिर-नाजिर गुरु मानता है। भारतीय सेना द्वारा गोलियों से छलनी किए गए गुरु साहिब के स्वरूप आज भी श्री दरबार साहिब में सुशोभित हैं और फौजी हमले की गवाही भरते हैं। बंदगी के घर पर किए गए इस हमले ने केवल सिखों के ही नहीं बल्कि अन्य धर्म के लोगों के दिलों को भी लहू-लुहान कर दिया था। 

केंद्र में उस समय की कांग्रेस सरकार द्वारा श्री दरबार साहिब पर हमला करने के लिए श्री गुरु अर्जुन देव जी के शहीदी दिवस 3 जून का दिन नियत किया गया। सिखों द्वारा गुरु साहिब के शहीदी दिवस पर लगाई गई ठंडे पानी की छबीलों पर सेना द्वारा दागे गोले सिखों की भावनाओं को और भी उत्तेजित करते हैं। श्री गुरु अर्जुन देव जी की शहादत बादशाह जहांगीर के भारत में मचाए कहर को रोकने तथा मानवाधिकारों की रक्षा के लिए दी गई कुर्बानी थी। 

हिंदुस्तान पर मुगलों द्वारा किए गए अत्याचारों को रोकने की शुरूआत पहले सिख गुरु श्री गुरु नानक देव जी ने बाबर को ललकार कर की थी। जब मुगल हुकूमत ने कश्मीरी पंडितों के जनेऊ उतार कर उनको अपमानित किया और पवित्र मंदिरों को निशाना बनाकर उनका विध्वंस कर दिया तो उस समय श्री गुरु अर्जुन देव साहिब जी के पौत्र श्री गुरु तेग बहादुर साहिब ने चांदनी चौक में शहादत देकर ‘हिंद की चादर’ होने का स मान प्राप्त किया। उसी विरासत ने चमकौर के मैदान तथा सरहिंद की दीवारों में शहादत देकर सिख धर्म का इतिहास रचा। 

सिखों ने जबर-जुल्म तथा अन्याय की हुकूमत का अंत करके सूबा सरहिंद वजीर खां का चप्पड़चिड़ी के मैदान में सिर उतार कर 700 साल पुरानी मुगल बादशाहत का अंत कर सरहिंद फतेह करवाया। सिखों ने जहां सरहिंद फतेह करके ‘खालसा राज’ की नींव रखी, वहीं हिंदुस्तानियों को पहली बार आजादी की किरण भी दिखाई। 

श्री दरबार साहिब पर फौजी हमले के लिए भारतीय सेना का इस्तेमाल किया जाना कई तरह के प्रश्र खड़े करता है। भारतीय सेना जाति, धर्म, राजनीति तथा अन्य किसी भी अलगाव से ऊपर उठ कर एक संयम में रहने वाली प्रोफैशनल फोर्स के तौर पर जानी जाती है। सेना का इस्तेमाल हमेशा दुश्मनों से देश की रक्षा करने के लिए सीमाओं पर किया जाता है। मगर उस समय देश के किसी एक भाईचारे या धर्म को निशाना बनाकर नस्लकुशी करने के लिए सेना का इस्तेमाल सिख कौम को हमेशा याद रहेगा। 

जून 1984 में श्री दरबार साहिब पर किए गए सैन्य हमले ने जहां देश के भीतर कांग्रेस के चेहरे को कालिख मल कर दागदार किया, वहीं विश्व भर में शर्मसार भी किया। हमले के 30 सालों बाद ब्रिटिश संसद के हमले से संबंधित गुप्त दस्तावेज बाहर आने के साथ ही यह साबित होता है कि उस समय के ब्रिटिश प्रधानमंत्री की सलाह से ही हमले की योजना बनी थी। 

श्री दरबार साहिब पर हमले के कुछ दिन पहले ब्रिटिश कमांडो फोर्स द्वारा श्री हरमंदिर साहिब की रेकी करने के तथ्य सामने आने से उस समय की कांग्रेस सरकार को कटघरे में खड़ा करती है, कैसे एक आजाद मुल्क की सरकार अपने ही देश के नागरिकों तथा उनके धर्म को मिटाने के लिए उस विदेशी सरकार का इस्तेमाल करती है, जिसने भारतीयों को 200 साल अपना गुलाम बनाकर रखा था। 

हर वर्ष यह सप्ताह में जून 1984 का स्मरण करवाता हुआ कई तरह के प्रश्र तथा चुनौतियां छोड़ कर चला जाता है। श्री दरबार साहिब पर किया गया वहशियाना हमला स्वतंत्र भारत के इतिहास की सबसे दुर्भाग्यपूर्ण तथा कलंकित घटना है। इसको याद करके आज भी दिल कांप जाता है। इस घटना ने पंजाब की राजनीति तथा सामाजिक जीवन को बदल कर रख दिया। समय का ल बा दौर बीत जाने के बाद भी 3 से 6 जून की ये दर्दनाक, खौफनाक घटनाएं हर साल रौंगटे खड़े कर देती हैं। 

भारतीय संविधान की आत्मा ‘प्रस्तावना’ में स्पष्ट लिखा हुआ है कि यह देश प्रभुसत्ता स पन्न, धर्मनिपेक्ष तथा लोकतांत्रिक राज्य है। भारतीय संविधान देश के नागरिकों के अधिकार, कत्र्तव्यों तथा आजादी का चार्टर भी है अर्थात यहां की सरकारें लोक हितों के लिए काम करेंगी। देश के हर नागरिक को अपने विचार रखने तथा लिखने की पूर्ण स्वतंत्रता होगी।  सभी धर्मों को बराबर का स मान दिया जाएगा।

संविधान में दर्ज मौलिक नागरिक अधिकार तथा बुनियादी आजादी भारतीय लोकतंत्र के अस्तित्व के महत्वपूर्ण तत्वों में से एक है मगर जून 1984 में केंद्र सरकार के आदेश पर देश के एक बहुत छोटे लेकिन महत्वपूर्ण अल्पसंख्य भाईचारे के सबसे पवित्र स्थान पर फौजी हमला करके संविधान की रूह को भी कत्ल कर दिया था।(लेखक शिरोमणि अकाली दल के महासचिव तथा पूर्व सांसद हैं)-प्रो.प्रेम सिंह चंदूमांजरा


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