मेहुल चोकसी : फैसला अब अदालत के हाथ

punjabkesari.in Tuesday, Jun 08, 2021 - 05:20 AM (IST)

छक -छक कर दाना चुगने के बाद कैद के डर से सरहदों के पार जा चुकी चिडिय़ा पराए हाथों द्वारा पकड़ तो ली गई लेकिन उसे अपने पिंजरे में कैद करने की हसरत अधूरी रह गई जिससे काश दूसरी चिडिय़ों को भी नसीहत मिल पाती? सच है, मेहुल चोकसी अभी भारत नहीं आएगा पर कभी नहीं यह पता नहीं। सारे के सारे मंसूबों पर पानी फिर गया लगता है? बस यूं लगने लगा था कि धोखा देकर फुर्र हुई चिडिय़ा अब हाथ आई कि तब! लेकिन ऐसा हो नहीं सका। 

यह सही भी है और अपवाद भी नहीं कि कानूनी पेचीदगियां सिर्फ हमारे देश में ही होती हों। डोमिनिका में भी उसे यही फायदा मिला। उसके वकीलों ने उच्च न्यायालय में बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका दाखिल की तो निचली अदालत से डोमिनिकन कानून में गिर तार व्यक्ति को कानूनी या गैर-कानूनी तरीके से हिरासत में बंदी बनाने और अदालत में पेश करने व जमानत देने की गुहार लगाई। मकसद पूरा हुआ-कानूनी उलझन व तुरंत भारत आने से बचना था। 

भारतीय बैंक घोटाले के सबसे बड़े घोटालेबाज मेहुल चोकसी और उसके भांजे नीरव मोदी पर 13,578 करोड़ रुपयों की बैंक धोखाधड़ी के आरोप हैं जिसमें 11,380 करोड़ रुपयों के फर्जी  और  बेजा लेन-देन हैं। पी.एन.बी. बैंक घोटाला 7 साल चलता रहा किसी को भनक तक नहीं लगी। भागने से पहले ही मेहुल  ने 2017 में पूरी व्यूह रचना कर ली थी। पहले अपने कथित पासपोर्ट नंबर जैड 3396732 को कैंसिल्ड बुक्स के साथ जमा कर नागरिकता छोडऩे के लिए 177 अमरीकी डॉलर का ड्रा ट भी जमा कराया और नागरिकता छोडऩे वाले फार्म में नया पता मेहुल चोकसी, जौली हार्बर सेंट मार्कस एंटीगुआ लिखाया। 

तब भी हमारे कान में जूं नहीं रेंगी। जैसे ही घोटाले की परतें खुलने को आईं, उसके चुपचाप 4 जनवरी 2018 को एंटीगुआ से फुर्र होने की बात भी सामने आई। अब कूटनीतिक प्रयास या अन्य जो भी कारण हों- नहीं पता। एंटीगुआ से 72,000 लोगों की आबादी वाले एक छोटे से आईलैंड डोमिनिका अभी मई के आखिरी ह ते कैसे और क्यों पहुंचा, रहस्य ही है?

कहते हैं कि वह यहां से क्यूबा जाने की फिराक में था। शरीर पर चोट, मिस्ट्री गर्ल का नाम, भगाने में आरोप के साथ कई किस्से और पेंच हैं। दरअसल एंटीगुआ और भारत के बीच प्रत्यर्पण संधि नहीं है, लेकिन संयुक्त राष्ट्र संघ की भ्रष्टाचार निरोधी संयुक्त राष्ट्र संधि (यू.एन.सी.ए.सी.) पर भारत और एंटीगुआ ने सहमति जताते हुए हस्ताक्षर किए हैं। शायद इसी के तहत भारत वापसी का डर हो। जबकि डोमिनिका के साथ भारत की प्रत्यर्पण संधि नहीं है। 

उधर एंटीगुआ के प्रधानमंत्री गैस्टन ब्राऊन का कहना है कि उनका देश मेहुल चोकसी को स्वीकार नहीं करेगा क्योंकि उसने द्वीप से जाकर बड़ी गलती की है। डोमिनिका भी हमारे साथ सहयोग कर रहा है। इधर भारत से स्पैशल प्लेन लेकर 14 घंटे का सफर कर तमाम अधिकारी व दूसरे डिप्लोमेट मेहुल को लेने भी जा पहुंचे लेकिन डोमिनिका की अदालत और कानूनी बंदिशों ने पानी फेर दिया। 

मेहुल ने 2017 में ही कैरेबियाई देश एंटीगुआ और बरबूडा की नागरिकता ले ली थी। आर्थिक रूप से कमजोर कुछ देश नागरिकता बेचते हैं। मेहुल जैसे अपराधियों ने इसका फायदा उठाया। एंटीगुआ, ग्रेनेडा, माल्टा, नीदरलैंड्स और स्पेन इसीलिए अमीर निवेशकों के आकर्षण का केंद्र हैं जो प्रत्यक्ष निवेश के जरिए नागरिकता बेच रहे हैं। बाहरी अमीर निवेशकों की खातिर कई प्रस्ताव बना रखे हैं। एंटीगुआ में 2013 में नागरिकता निवेश कार्यक्रम (सी.आई.पी.) की शुरूआत हुई। नागरिकता हासिल करने हेतु पहले एंटीगुआ के नैशनल डिवैल्पमैंट फंड में एक लाख अमरीकी  डॉलर का दान। 

दूसरा, यूनिवर्सिटी ऑफ वैस्टइंडीज में डेढ़ लाख अमरीकी डॉलर का दान, तीसरा, सरकारी इजाजत वाले रियल एस्टेट में दो लाख अमरीकी डॉलर का निवेश, चौथा, नागरिकता पाने की खातिर तय किसी व्यवसाय में डेढ़ लाख अमरीकी डॉलर का निवेश जरूरी होगा। मेहुल ने सभी को पूरा करते हुए 2017 में ही नागिरकता ले ली थी। ऐसे देशों के बारे में अंतर्राष्ट्रीय बिरादरी को सोचना होगा। भारत में धोखाधड़ी के ज्यादातर मामले भारतीय स्टेट बैंक, एच.डी. एफ.सी. बैंक और आई.सी.आई. सी.आई. बैंक में दिखे। आंकड़ों के मुताबिक, पिछले 11 सालों में 2.05 लाख करोड़ रुपए की धोखाधड़ी के 53,334 मामले दर्ज किए गए थे। 70 से ज्यादा विदेश भाग गए। 

लोकसभा में जनवरी 2019 में तत्कालीन वित्त राज्यमंत्री एस.पी. शुक्ला ने जानकारी दी कि 2015 से 27 आॢथक अपराधी भागे हैं जिनमें इन मेहुल चोकसी, नीरव मोदी के अलावा भारतीय स्टेट बैंक की अगुवाई में एक कंसोॢटयम बनाकर विजय माल्या को 9000 करोड़ के दिए गए लोन, जो ब्याज के बाद 14,000 हजार करोड़ पहुंच गया, के आरोपी विजय माल्या सहित ललित मोदी, नीशाल मोदी, पुष्पेश बैद, आशीष जोबनपुत्रा, सन्नी कालरा, संजय कालरा, एस.के. कालरा, आरती कालरा, वर्षा कालरा, जतिन मेहता, उमेश पारेख, कमलेश पारेख, नीलेश पारेख, एकलव्य गर्ग, विनय मित्तल, सब्या सेठ, राजीव गोयल, अल्का गोयल, नितिन जयंती लाल संदेसरा, दीप्ती बेन, चेतन कुमार संदेसरा, रितेश जैन, हितेश पटेल, मयूरीबेन पटेल और प्रीति आशीष जोबनपुत्रा हैं।

इन घोटालों के अलावा रोटोमैक पैन घोटाला, सहारा घोटाला, आरपी इंफोसिस्टम भी बेहद चॢचत घोटाले रहे हैं। इन फरेबियों से अमूमन हर भारतीय वाकिफ हो चुका है। कह सकते हैं कि संगठित और साजिशन आर्थिक अपराध रोकने के लिए पूरे तंत्र पर नकेल कसनी होगी और कानून का कागज में होना नहीं हकीकत में असर भी दिखना चाहिए तभी यह सब रुक पाएगा। शायद रामायण में भी इसीलिए कहा गया है कि ‘विनय न मानत जलधि जड़, गए तीन दिन बीत। बोले राम सकोप तब, बिन भय होय न प्रीत’।-ऋतुपर्ण दवे


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