राम मंदिर के साथ ‘राम राज्य’ भी साकार हो

punjabkesari.in Saturday, Feb 08, 2020 - 03:35 AM (IST)

आखिर वह घड़ी आ ही गई जिससे यह सुनिश्चित हो गया कि भगवान श्री राम का भव्य मंदिर उनके जन्मस्थान अयोध्या में शीघ्र बन जाएगा। इसी के साथ मन में यह प्रश्न आना स्वाभाविक है कि क्या केवल मंदिर बन जाने से ही श्री राम के प्रति हमारे विचार, सोच और उनके पदचिन्हों पर चलने की आकांक्षा भी पूरी हो जाएगी। कुछ वर्ष पूर्व एक फिल्म बनाने के सिलसिले में अयोध्या जाना हुआ तो वहां मंदिरों के दर्शन भी किए। इसके साथ एक और चीज जो वहां देखी वह थी गंदगी, अशिक्षा और अव्यवस्था का बोलबाला। राम मंदिर का निर्माण करने वालों से उम्मीद है कि वे इसे पहले समाप्त करेंगे क्योंकि तब ही मंदिर की उपयोगिता सिद्ध हो पाएगी। 

बापू गांधी के राम
महात्मा गांधी के राम किसी एक धर्म, जाति या सम्प्रदाय  के नहीं थे बल्कि पूरा संसार ही हमारा परिवार है, इस धारणा की पुष्टि करते थे। उनके अनुसार सत्य, अङ्क्षहसा, वीरता, क्षमा, धैर्य और मर्यादा पालन राम के प्रतीक थे और उनके काम करने की विधि ऐसी थी जिसमें निर्बल की रक्षा हो जैसे कि सुग्रीव को उसकी पत्नी को उसके ही भाई के चंगुल से छुड़वाने में छिपकर बाली के  प्राण लेने का उदाहरण रखा जा सकता है। कह सकते हैं कि बाली के वध में राम ने मर्यादा का पालन नहीं किया और न्याय प्रक्रिया का उल्लंघन किया। अगर राम ऐसा करते तो क्या होता, इसे समझने के लिए वर्तमान काल का यह उदाहरण ही काफी है जिसमें निर्भया के गुनहगारों को 7 साल बाद भी और फांसी की सजा सुनाए जाने के बावजूद न्याय न मिलना है। इसी के विपरीत एक और महिला के गुनहगारों को क्या एनकाऊंटर में मार दिया जाना न्याय की परिधि में आएगा? शायद राम होते तो यही करते और तुरंत न्याय देकर सुशासन का उदाहरण प्रस्तुत करते। 

रामराज्य की व्यावहारिकता
श्री राम का एक और प्रसंग उनकी न्यायप्रियता को दर्शाता है, वह है रावण का वध। रावण बल, बुद्धि, वीरता और ज्ञान में अतुलनीय था। उसके पास धन, वैभव की कोई कमी नहीं थी और उसने दुर्लभ शक्तियों को पा लिया था। सीताहरण भी उसकी दृष्टि में उचित था क्योंकि वह उसने अपनी बहन के तथाकथित शील की रक्षा के लिए किया था। इसी के साथ वह अधर्मी, अत्याचारी भी था इसलिए उसके गुण अवगुण हो गए थे। राम के लिए रावण का वध केवल इसलिए संभव हो पाया क्योंकि विभीषण ने शरीर के उस स्थान पर बाण मारने के लिए कहा जो केवल उसी को ज्ञात था।  रावण ने राम से मृत्यु के समय यही कहा कि राम के साथ उसका भाई खड़ा हो गया इसलिए वह उसे मारने में सफल हुए। राम के अनुसार हालात के मुताबिक अपने को बदलना चाहिए और इसी कड़ी में दूसरों से यह अपेक्षा रखने कि वे भी हमारे अनुसार बदलें, इसके स्थान पर उन्हें अपने हिसाब से बदलने दीजिए। 

आज के संदर्भ में सरकार और राजनीतिक दल स्वयं चाहे अपने को न बदलें पर जनता से यही चाहते हैं कि वह उनके मुताबिक बदल जाए। गांधी जी के रामराज्य में ग्राम स्वराज प्रमुख है। उन्होंने यह धारणा इसीलिए बनाई थी क्योंकि भारत ग्रामीण इकाइयों से बना देश है और कस्बे, नगर और महानगर उससे बनी इकाइयां हैं। इसका अर्थ यह है कि  ग्राम के  विकसित होने पर ही उससे बनी इकाइयां फल-फूल सकती हैं। ऐसा न होने का नतीजा यह हुआ कि शासक, जमींदार और पूंजीपति का ऐसा गठजोड़ बना कि गांव खाली होने लगे, हमारी प्राकृतिक और वन सम्पदा को समाप्त किया जाने लगा और आर्थिक असमानता ने भीषण रूप ले लिया। 

किसान को मजबूर ही नहीं किया बल्कि उसे एक भिखारी के स्तर पर ला खड़ा किया। रामराज्य में गांव के स्तर पर ग्रामीण और कुटीर उद्योग खुलते और आसपास जो कच्चा माल होता उससे पक्का माल बनता और इस तरह ग्रामीण अर्थव्यवस्था के मजबूत होने की नींव डाली जाती। रामराज्य में शिक्षा संस्थान और विज्ञान के केंद्र नगरों से दूर वन्य क्षेत्रों में होते थे जहां प्राकृतिक संसाधन होने से शिक्षण, प्रशिक्षण, अनुसंधान और प्रयोग करने की सुविधाएं होती थीं। हमारी वनस्पतियां और वनों से प्राप्त होने वाली वस्तुओं का वैज्ञानिक ढंग से विकास करने के साधन उपलब्ध होते थे। एकांत में अध्ययन और मनन तथा ङ्क्षचतन करने की परिपाटी होती थी। 

राम का दैवीय राज
रामराज्य की कल्पना करते समय हम उसे देवताओं का राज्य जैसा समझने लगते हैं जबकि राम का जीवन एक सामान्य मनुष्य की भांति था। वह सामान्य व्यक्ति की तरह सीता के वियोग में रोते हैं, विलाप करते हैं और क्रोध करते हैं। समुद्र द्वारा रास्ता न देने पर उसे सुखा देना चाहते हैं। अपने भाई लक्ष्मण के समझाने पर शांत और स्थिर होते हैं। राम के लिए किसी भी जीव की रक्षा करने के साथ-साथ उसे मित्र बना लेना भी आवश्यक है। उनके लिए न कोई छोटा है न बड़ा, सब बराबर हैं। जो लोग रामराज्य को हिन्दू राज्य से जोड़ते हैं उनके लिए यह समझना जरूरी है कि रामराज्य किसी एक धर्म या जाति की बात नहीं करता बल्कि सभी को उसमें समाहित मानता है।-पूरन चंद सरीन
 


सबसे ज्यादा पढ़े गए

Recommended News

Related News