प्रधानमंत्री हमें ताकत,  हिम्मत, दृष्टि और दृढ़ संकल्प दें

punjabkesari.in Sunday, May 16, 2021 - 07:24 AM (IST)

अच्छी सरकारें बातचीत करती हैं और वे ऐसा एक साधारण कारण से करती हैं। उनका प्रयास लोगों को अपने साथ ले कर चलना होता है। इसलिए वह साधारण तौर पर सूचित नहीं करतीं बल्कि सतर्कता से इस मत को प्रोत्साहित करती हैं कि हम सब एक हैं। ऐसा करने के लिए वह एक संदेश देती हैं जो देश को आपस में जोड़ता है। जब इसे प्रभावी तौर पर किया जाता है तब यह लोगों के लिए समर्थन भी जुटाता है। हालांकि यह रास्ता कठिन हो सकता है और उनकी सफलताएं कम हो सकती हैं, मगर ये रास्ते दूर तक चलते हैं। 

यहां पर एक दूसरी सच्चाई भी है। महान नेता ऐसे शब्दों को खोजते हैं जो लोगों की आकांक्षाओं को प्रस्तुत करते हैं या उस पर खरे उतरते हैं। द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान विंस्टन चॢचल की बात करते हैं। उन्होंने कहा, ‘‘हम बीचों पर लड़ेंगे, हम भूमि पर लड़ेंगे, हम खेतों और गलियों में लड़ेंगे,  हम पहाडिय़ों पर लड़ेंगे मगर हम कभी भी आत्मसमर्पण नहीं करेंगे।’’ 

इसी तरह रुजवेल्ट ने अवसाद की गहराई के दौरान कहा, ‘‘यह मुख्य रूप से सच्चाई मतलब पूरी सच्चाई को बताने का समय है। आज हमारे देश में हालातों को झेलते हुए हम ईमानदारी से सिकुड़ेंगे नहीं। यह महाराष्ट्र सहेगा जैसा कि इसने सहा है। यह पुन: जागृत और खुशहाल होगा। मैं दृढ़ विश्वास से कहता हूं कि हमें जिससे डरना है वह खुद एक डर है।’’ मुझे अफसोस है कि दोनों पहलुओं पर हमारी सरकार और हमारे प्रधानमंत्री ने हमें निराश किया है। 

यही कारण है कि कई लोग अपने आप को त्यागा हुआ और उम्मीद रहित समझते हैं। लोग बेबसी से परिपूर्ण हैं और उस चमकदार रोशनी को देखने में असमर्थ हैं जो हमारी उ मीद को जिंदा रख सकती है। मुझे इस बात को लेकर समझाना होगा ताकि आप इसे बेहतर से समझ सकें। पहली बात यह है कि प्रैस वार्ताएं जिनका आयोजन हमारी सरकार करती है वह ल बी होती है। मगर इनका आयोजन बिना सोचे-समझे किया जाता है। 

हम विस्तृत सूचना में डूब जाते हैं जिससे ज्यादातर लोगों के लिए इसे समझना मुश्किल होता है। इसमें कोई दोराय नहीं कि ऐसी प्रैस वार्ताओं को अच्छे नौकरशाहों द्वारा संबोधित किया जाता है मगर वह ध्यान आकर्षित करने की क्षमता में कमी रखते हैं या फिर उनके पास होती ही नहीं। मगर सबसे बुरा यह है कि कड़वी सच्चाई का खुलासा करने के लिए अनिच्छा होती है। इसके नतीजे में आपकी शंकाएं पक्की हो जाती हैं और आपका डर जैसे का तैसा बिना हल निकले रह जाता है। प्राइवेट न्यूज चैनल इन्हें पूरा ही नहीं दिखाते यहां तक कि राज्य सभा टी.वी. ने भी इसे पहले से ही काट दिया। 

प्रैस वार्ताओं का अकथनीय हिस्सा यह है कि यह पूरी तरह से हिंदी में होती है। इसकी परवाह नहीं की जाती कि ऐसी वार्ताओं को दक्षिण भारतीय या फिर उत्तर भारतीय सुन रहा है। ङ्क्षहदी के प्रति उसे समझने की असमर्थता जग जाहिर है। मगर इसे तो उन पर थोपा जाता है? मैं निरंतर ही ऐसी प्रैस वार्ताओं को देखता हूं और उनसे बहुत कुछ सीखता भी हूं। एक जर्नलिस्ट होने के नाते मैं उसमें कुछ खोजता हूं। अपने पेशे से बाहर मैंने किसी को भी नहीं पाया जिसने ऐसी प्रैस वार्ताओं को सुना। कइयों को तो पता ही नहीं होता कि इनका आयोजन हुआ है। इसलिए उनका मंतव्य हल हो रहा है इसके प्रति मुझे शंका है। 

हालांकि एक बात जो मुझे हैरान कर देती है वह प्रधानमंत्री की चुप्पी है। बिना शंका के वह सबसे बढिय़ा वक्ता हैं। उनमें बोलने की क्षमता है और देश का मूड भांपने के लिए उन्हें यह उपहार कुदरत से मिला है। आज जब हम कांप रहे हैं, निराश हैं और यहां तक कि हम में से कुछ लोग नाउ मीद हैं, हमें प्रधानमंत्री की जरूरत है कि वे हमें ताकत, हि मत, दृष्टि और दृढ़ संकल्प दें। मगर उन्हें कुछ नहीं कहना। वह केवल चुप ही नहीं लगभग अदृश्य भी हैं।

मुझे एक बात और कहनी है। आज ऐसा क्षण है जब हमें एक नेता की जरूरत है जिसे हम पहचान सकें। उनकी उपस्थिति सुझाती है कि वह एक अलग व्यक्ति बन चुके हैं। उन्हें यह अधिकार है कि वह अपनी दाढ़ी बढ़ाएं मगर क्या वह जागरूक हैं कि यह बात सुझाती है कि यह पीछे हटने और वापसी के समान है। जब हमें एक योद्धा की जरूरत है तो हम इसके स्थान पर एक हिमालयी संत पाते हैं। 

मैं जानता हूं कि मैं केवल अपने निजी विचारों को प्रस्तुत कर रहा हूं। मैं दूसरों के लिए बोल नहीं सकता इसलिए मेरा मानना है कि मैं एक अकेली आवाज हूं। हम जानते हैं कि सभी चीजें गलत हो चुकी हैं। हम इसे अब सही ढंग से स्थापित करने में लगे हुए हैं। वास्तव में यह कपटपूर्ण है। हमारा मानना है कि हम तभी कुछ कर पाएंगे जब हमारी सरकार हमारे साथ ईमानदारी से बात करेगी। इसी कारण मेरा मानना है कि बातचीत बेहद महत्वपूर्ण होती है। इसके साथ-साथ हमें जरूरत है कि प्रधानमंत्री उ मीद को फिर से जागृत करें।-करण थापर


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