जनसंख्या से जुड़े कई मिथक गलत साबित

punjabkesari.in Thursday, Jan 20, 2022 - 05:42 AM (IST)

भारत सरकार द्वारा आयोजित राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण (एन.एफ.एच.एस.) के नवीनतम तथ्य कुछ दिलचस्प आंकड़ों के साथ सामने आए हैं और उन्होंने जनसंख्या तथा जनसांख्यिकी के बारे में कई मिथकों को गलत साबित किया है।

एक सामान्य मान्यता यह है कि देश एक जनसंख्या बम के ऊपर बैठा है तथा तेजी से बढ़ रही जनसंख्या देश के स्रोतों तथा अर्थव्यवस्था को नीचे गिराने के लिए जिम्मेदार हैं। एक अन्य झूठी मान्यता यह भी है कि मुसलमानों की जनसंख्या बड़ी तेजी से बढ़ रही है और संभवत: निकट भविष्य में यह हिंदू जनसं या से आगे निकल सकती है। 

कुछ राज्य सरकारों ने पहले ही यह लागू कर दिया है अथवा यह नियम लागू करने की योजना बना रही है कि जिनके दो से अधिक बच्चे होंगे उन्हें नगर निगम के चुनाव लडऩे से प्रतिबंधित कर दिया जाएगा। यह भी मांग है कि ऐसे ही कानून उन लोगों के लिए भी बनाए जाने चाहिएं जो संसद तथा राज्य विधानसभाओं के चुनाव लडऩा चाहते हैं। 

नवीनतम सर्वेक्षण की सर्वाधिक महत्वपूर्ण खोजों में से एक यह है कि कुल उर्वरता दर अथवा प्रति महिला द्वारा जन्म दिए जाने वाले बच्चों की संख्या अब 2.0 है। इसका अर्थ यह हुआ कि अब हमारी जनसं या वृद्धि बदलाव स्तर के मुकाबले जरा-सी कम है। विश्व भर में मानक उर्वरता दर, सिवाय उन देशों के जहां नवजात मृत्युदर बहुत ऊंची है, जनसं या को स्थिर रखने के लिए 2.1 है। 

भारतीय दर के 2.1 से जरा कम होने का अर्थ यह है कि हमारी जनसंख्या वृद्धि अब नकारात्मक है। यदि यही रुझान जारी रहता है तो हमारी जनसंख्या वास्तव में कम होनी शुरू हो जाएगी। निश्चित तौर पर एक पड़ाव पर जनसंख्या विस्फोट एक प्रमुख मुद्दा था तथा ये खोजें उन लोगों के लिए आश्चर्य के तौर पर आई हैं जो अभी भी उसी प्रभाव में रह रहे हैं। तथ्य ये हैं कि देश ने गत कई दशकों से एक सफल परिवार नियोजन अभियान देखा है। कुल सुधार प्राथमिक स्वास्थ्य सेवाएं तथा नवजात मृत्युदर में कमी है जिन्होंने परिवार नियोजन कार्यक्रम की सफलता में महत्वपूर्ण योगदान दिया है। 

जनसंख्या के आंकड़ों में कमी का एक अन्य महत्वपूर्ण कारण साक्षरता का फैलाव तथा जागरूकता के स्तर में वृद्धि है। देर से विवाह करवाने का रुझान तथा शहरी जनसं या के मामले में परिवार को महज एक बच्चे तक अथवा यहां तक कि किसी भी बच्चे के बिना सीमित रखना भी एक लाभकारी कारण है। 

आंकड़े दिखाते हैं कि कुल उर्वरता दर कई राज्यों में राष्ट्रीय औसत से कम है जैसे कि पंजाब, हरियाणा, असम, गुजरात तथा कर्नाटक लेकिन उत्तर प्रदेश तथा बिहार में यह ऊंची बनी रही है जहां इसकी दर क्रमश: 2.4 तथा 3.0 है। महत्वपूर्ण यह है कि इन दो राज्यों में भी दर में पूर्ववर्ती सर्वेक्षण के मुकाबले में कमी आई है जब यह क्रमश: 2.7 तथा 3.4 पर थी। यह आंकड़ा उन लोगों के लिए भी आंख खोलने वाला होना चाहिए जो यह डर पाले हुए है कि मुसलमानों की जनसंख्या को ‘जानबूझ कर’ बढ़ाया जा रहा है ताकि वे हिंदू जनसं या से आगे निकल सकें। 

इस सिद्धांत का प्रचार करने वालों में कुछ ‘शिक्षित’ लोग भी हैं जो जमीनी हकीकत से वाकिफ नहीं। नवीनतम सर्वेक्षण संकेत करता है कि मुसलमानों सहित सभी धर्मों की टी.एफ.आर. या कुल उर्वरता दर में गिरावट आई है। दरअसल मुसलमानों के मामले में इसमें 1992-93 में 4.41 से तीव्र गिरावट आई है जो अब 2.62 हो गई है। नि:संदेह यह अब भी राष्ट्रीय औसत से ऊपर है लेकिन बहुसं यकों के लिए खतरा नहीं है जैसा कि डर फैलाने वालों ने हमें विश्वास दिलाया है। 2011 की जनगणना, जो देश में करवाई गई अंतिम या नवीनतम जनगणना थी, के अनुसार मुस्लिम जनसं या की हिस्सेदारी 14.2 प्रतिशत है। 

तुलनात्मक रूप से मुसलमानों के बीच उच्च जन्मदर का एक प्रमुख कारण समुदाय में तुलनात्मक रूप से पिछड़ेपन, साक्षरता की निम्र दर तथा कमजोर आर्थिक स्थितियों का होना है। यहां तक कि चीन ने भी प्रति परिवार एक बच्चे से अधिक को हतोत्साहित करने की अपनी नीति को पलट दिया है। अब इसने प्रति परिवार एक बच्चे से अधिक होने पर प्रोत्साहन देने शुरू कर दिए हैं। 

अपने नागरिकों की मध्यम आयु के आधार पर विश्व में भारत वर्तमान में सर्वाधिक युवा देश है। यह वर्तमान में 28.4 वर्षों पर खड़ा है। इसका अर्थ यह हुआ कि हमारी आधी जनसंख्या 28.4 वर्षों से कम आयु की है। चीन में मध्यम आयु 38.4 वर्ष जबकि जापान में 48.4 वर्ष है! हमें इस लाभ का फायदा उठाने के लिए अपनी तरफ से सर्वश्रेष्ठ प्रयास करने चाहिएं। यदि हम अब ऐसा नहीं करते तो संभवत: बहुत देर हो जाएगी क्योंकि यदि वर्तमान रुझान जारी रहता है तो आने वाले दशकों में हम शायद सबसे बूढ़े देश बन जाएंगे।-विपिन पब्बी


सबसे ज्यादा पढ़े गए

Recommended News

Related News