तीसरे मोर्चे की राह में कई अगर और मगर

punjabkesari.in Tuesday, Jan 24, 2023 - 05:51 AM (IST)

प्रत्येक लोकसभा चुनाव से पहले तीसरे मोर्चे का विचार राजनीतिक मंच पर तैरने लगता है और 2024 के चुनाव अब कोई अपवाद नहीं हैं। राजनीतिक पंडितों का अनुमान है कि भाजपा के खिलाफ पूरे विपक्ष के लिए जगह है लेकिन तीसरे मोर्चे के लिए नहीं क्योंकि यह भाजपा विरोधी वोटों को विभाजित करेगा। 

यह भी मानना है कि तीसरा मोर्चा सत्तारूढ़ दल की मदद करेगा। इस अवधारणा को 1977, 1989  और 1998 में आजमाया गया और इसे परखा गया। उस दौरान इसे या तो कांग्रेस का या भाजपा का समर्थन प्राप्त था लेकिन ये सभी अल्पकालिक थे। 

तेलंगाना के मुख्यमंत्री के. चंद्रशेखर राव (के.सी.आर.) के नेतृत्व में कुछ क्षेत्रीय दल 2024 के लोकसभा चुनावों से पहले तीसरा मोर्चा बनाने की कोशिश कर रहे हैं। इस मोर्चे में कुछ प्रभावशाली क्षेत्रीय नेता और पाॢटयां शामिल हैं। ऐसे नेता बी.आर.एस., आप, माकपा, टी.एम.सी. और समाजवादी पार्टी का नेतृत्व कर रहे हैं। वे भाजपा से लडऩे के लिए बिना कांग्रेस के गठबंधन चाहते हैं। 

तीसरा मोर्चा बनाने के लिए कई अगर और मगर हैं। 1980 के दशक के बाद से सपा, बसपा, राजद और जद (यू) जैसी क्षेत्रीय ताकतें उभरीं और अपने-अपने राज्य में उनका गढ़ बन गया। क्या यह सभी नेता प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को चुनौती देने के लिए एक साथ आगे आएंगे? ये एक लाख टके का सवाल है। इसके अलावा ऐतिहासिक रूप से अंक गणित ने दिखाया है कि तीसरा मोर्चा केवल कांग्रेस या भाजपा के समर्थन से ही संभव है। 

अपने गौरवशाली अतीत के साथ एक कमजोर कांग्रेस अपना अस्तित्व को बचाने का प्रयास कर रही है। इसी के मद्देनजर कांग्रेसी नेता राहुल गांधी को 2024 के चुनाव से पहले रीब्रांड किया जा रहा है। उन्होंने धर्म निरपेक्ष ताकतों को एकजुट करने के लिए ‘भारत जोड़ो यात्रा’ निकाली। ग्रैंड ओल्ड पार्टी कांग्रेस ने कश्मीर में ‘भारत जोड़ो यात्रा’ के समापन समारोह के लिए समाजवादी पार्टी और सी.पी.एम. सहित 21 विपक्षी दलों को आमंत्रित किया है। राव ने 2018 की शुरूआत में अपने तीसरे मोर्चे के विचार को यह कहते हुए पेश किया कि कांग्रेस और भाजपा देश पर शासन करने के लिए विपक्ष रही हैं। उनके दिमाग में यह बात है कि कांग्रेस और मोदी देश को सही दिशा में नहीं ले जा सकते। राव ने 2019 के आम चुनाव से पहले एक गैर कांग्रेसी, गैर भाजपा मोर्चा बनाने की कोशिश की। लेकिन यह प्रयास विफल हो गया था। अधिकांश क्षेत्रीय नेताओं ने केवल नैतिक समर्थन देना बंद कर दिया था। 

अपनी राजनीतिक महत्वाकांक्षाओं को बढ़ावा देने के लिए के.सी.आर. ने इस साल 18 जनवरी को खम्मम में एक बड़ी सार्वजनिक रैली की। पिछले साल 5 अक्तूबर को के.सी.आर. द्वारा अपनी क्षेत्रीय पार्टी तेलंगाना राष्ट्र समिति को भारत राष्ट्र समिति (बी.आर.एस.) में बदलने के बाद ये पहली रैली थी। के.सी.आर. की खुशी के लिए चुनाव आयोग ने बी.आर.एस. को एक राष्ट्रीय पार्टी के रूप में मान्यता दी है। ‘कांग्रेस यात्रा’ को छोडऩे वालों में से अधिकांश ने खम्मम रैली में भाग लिया। इसमें दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल, उनके पंजाब के समकक्ष भगवंत मान,

\\केरल के मुख्यमंत्री पिनाराई विजयन, सपा नेता अखिलेश यादव और सी.पी.आई. के डी. राजा शामिल थे। के.सी.आर. ने ओडिशा के मुख्यमंत्री नवीन पटनायक को गठबंधन में शामिल करने के लिए पिछले दरवाजे से संपर्क भी साधा है।  के.सी.आर. कांग्रेस के विरोध में है क्योंकि दोनों दल तेलंगाना में राजनीतिक प्रतिद्वंद्वी हैं। यही कारण है कि वह एक गैर कांग्रेसी, गैर भाजपा मोर्चा का नेतृत्व करने की इच्छा रखते हैं। दिलचस्प बात यह है कि उन्होंने इस महीने के अंत में कश्मीर में भारत जोड़ो यात्रा के समापन से कुछ दिन पहले खम्मम बैठक का आयोजन किया था। 

के.सी.आर. ने इस वर्ष के अंत में होने वाले विधानसभा चुनावों में हैट्रिक लगाने का इंतजार करते हुए राष्ट्रीय भूमिका के लिए अपनी महत्वाकांक्षा को कभी नहीं छिपाया। उनका मानना है कि मोदी के खिलाफ एक राष्ट्रीय विकल्प बनना तय है। हालांकि 2014 से लगातार दो कार्यकाल के बाद के.सी.आर. को सत्ता विरोधी लहर का सामना करना पड़ रहा है। हालांकि उन्होंने कांग्रेस और तेदेपा को खत्म कर दिया है लेकिन भाजपा राज्य में मुख्य विपक्षी दल के रूप में उभरी है। 

एक बड़ा सवाल यह पैदा होता है कि क्या तीसरे मोर्चे की महत्वाकांक्षा में के.सी.आर. राष्ट्रीय राजनीति में किसी स्थान पर कब्जा करने में कामयाब होंगे या मोदी की लोकप्रियता के सामने अपने आपको रख पाएंगे? बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार जोकि यथार्थवादी नेता हैं, मानते हैं कि तीसरे मोर्चे का कोई सवाल ही पैदा नहीं होता। एक ऐसा मोर्चा होना चाहिए जिसमें कांग्रेस शामिल हो तभी हम 2024 में भाजपा को हरा सकते हैं।-कल्याणी शंकर 
 


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