कई देश परमाणु हथियारों को लेकर अपनी राष्ट्रीय नीति का पुनर्मूल्यांकन करने को मजबूर

punjabkesari.in Sunday, Jun 19, 2022 - 06:10 AM (IST)

सोवियत संघ के 1991 में दुनिया के नक्शे से गायब होने के समय यूक्रेन के पास दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा परमाणु शस्त्रागार था। इसने अमरीका, ब्रिटेन और रूस से सुरक्षा गारंटी के बदले में अपने परमाणु हथियार त्याग दिए। यह देखते हुए कि 1994 के बुडापेस्ट ज्ञापन के गारंटर अपनी प्रतिबद्धताएं पूरी करने में विफल रहे और उनमें से एक रूस ने वास्तव में यूक्रेन पर पहले 2014 में और फिर 2022 में आक्रमण किया, कई छोटी और मध्यम शक्तियों को परमाणु हथियारों को लेकर अपनी राष्ट्रीय स्थिति का पुनर्मूल्यांकन करने को मजबूर किया है। 

भारत और चीन दोनों ही लंबे समय से परमाणु हथियारों का पहले इस्तेमाल न करने की नीति के समर्थक रहे हैं। हालांकि, दोनों देशों के बीच एक संरचित संवाद के अभाव में, विशेष रूप से पूर्वी लद्दाख और अरुणाचल प्रदेश में तनावपूर्ण गतिरोध को देखते हुए, क्या रणनीतिक स्थिरता की गारंटी ली जा सकती है? यह नो फस्र्ट यूज बैंचमार्क चीनी रणनीतिक सोच के लिए अद्वितीय माना जाता था। पश्चिमी शोधकत्र्ताओं का मानना है कि चीनी कम्युनिस्ट पार्टी (सी.सी.पी.) का नेतृत्व पहले हमले की स्थिति को विश्वसनीय या नैतिक रूप से रक्षात्मक नहीं मानता। उनका विचार है कि चीन को एक बहुत ही स्पष्ट उद्देश्य के लिए परमाणु शस्त्रागार की आवश्यकता है, अर्थात चीन के खिलाफ परमाणु हमलों को रोकना। 

हालांकि, यह हर समय हाई अलर्ट की स्थिति में अपने-अपने परमाणु शस्त्रागार के एक हिस्से को तैयार रखने के अमरीकी और रूसी कवायद से बहुत अलग है। इस बात से आशंकित कि कोई विरोधी अचानक परमाणु हमला शुरू कर सकता है, दोनों संप्रभु शक्तियां अपनी परमाणु मिसाइलों को दागने के लिए तैयार हैं। इस रक्षात्मक मुद्रा को लॉन्च ऑन वाॄनग (एल.ओ.डब्ल्यू.) या लॉन्च अंडर अटैक (एल.यू.ए.) कहा जाता है। 

परमाणु मुद्दों पर यह दृष्टिकोण चीनी सोच में भी छाने लगा है। 2015 और 2019 के दोनों रक्षा श्वेत पत्र एक रणनीतिक प्रारंभिक चेतावनी प्रतिमान बनाने की इच्छा को दर्शाते हैं। माना जाता है कि पी.एल.ए. के वरिष्ठ सैन्य अधिकारियों का भी इस कवायद की ओर झुकाव है। इसका विशेष रूप से दक्षिण एशिया में सामरिक स्थिरता पर एक अस्थिरतावादी प्रभाव पड़ेगा। 

पाकिस्तान की निस्संदेह अलग कहानी है। इसकी परमाणु कवायद मूल रूप से ‘भारत’ से खतरे की इसकी धारणा से तय होती है। 1998 के अपने परमाणु परीक्षणों के बाद से पाकिस्तान ने अपना आधिकारिक परमाणु सिद्धांत घोषित नहीं किया है। परमाणु हथियारों के पहले इस्तेमाल पर इसकी स्थिति और परमाणु परीक्षण के खिलाफ एकतरफा रोक को अकर्मण्यता के रूप में देखा जाता है। हालांकि शांति के समय के दौरान यह न्यूनतम विश्वसनीय बचाव है या नहीं, यह हथियारों की गैर-तैनाती और डी-मेटिंग दोनों पर आधारित है, यह एक अपारदर्शी पहलू है और इसलिए चिंता का एक क्षेत्र है। 

भारत के मामले में भी, जहां 4 जनवरी, 2003 को अपनाए गए परमाणु सिद्धांत ने 2 दशकों से अधिक समय से विभिन्न राजनीतिक व्यवस्थाओं में घर कर लिया है, लेकिन कुछ परेशान करने वाली आवाजें हैं, जिन्होंने इन अनुमानों के लिए जगह दी है कि परमाणु धर्मशास्त्र की दुनिया तेजी से अस्थिर हो सकती है। जब भाजपा ने 2014 के आम चुनावों के लिए अपना घोषणापत्र तैयार किया, तो उसमें परमाणु हथियारों के संबंध में एक अनाकार सूत्रीकरण शामिल किया। अपने घोषणापत्र के पृष्ठ 39 पर एक उप-अनुच्छेद में कहा गया है- भाजपा भारत के परमाणु सिद्धांत का विस्तार से अध्ययन और संशोधित करेगी तथा वर्तमान चुनौतियों के लिए प्रासंगिक बनाने के लिए इसे अद्यतन करेगी। 

नवंबर 2016 में पूर्व रक्षा मंत्री मनोहर पाॢरकर ने यह कह कर एक विवाद खड़ा कर दिया था कि ‘क्यों बहुत सारे लोग कहते हैं कि भारत की पहले इस्तेमाल न करने की नीति है। मैं खुद को एक से क्यों बांधूं... मुझे कहना चाहिए कि मैं एक जिम्मेदार परमाणु शक्ति हूं और मैं इसे गैर-जिम्मेदाराना तरीके से इस्तेमाल नहीं करूंगा।’ 

अपनी 2016 की पुस्तक, ‘च्वॉइसिज : इनसाइड द मेकिंग ऑफ इंडियाज फॉरेन पॉलिसी’ में प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के एन.एस.ए. और पूर्व विदेश सचिव शिवशंकर मेनन ने कहा, ‘एक संभावित ग्रे क्षेत्र है, जब भारत दूसरे परमाणु हथियार सम्पन्न देश के खिलाफ परमाणु हथियारों का पहले इस्तेमाल करेगा। ऐसी परिस्थितियां बोधगम्य हैं, जिनमें भारत के लिए पहले हमला करना उपयोगी हो सकता है, उदाहरण के लिए, एक परमाणु हथियार वाले राज्य (एन.डब्ल्यू.एस.) के खिलाफ, जिसने घोषणा कर रखी है कि वह निश्चित रूप से अपने हथियारों का इस्तेमाल करेगा। लेकिन भारत का वर्तमान परमाणु सिद्धांत इस परिदृश्य पर खामोश है।’ 

16 अगस्त, 2019 को, भाजपा नेतृत्व वाली राजग सरकार द्वारा अनुच्छेद 370 में संशोधन करने और संविधान से अनुच्छेद 35-ए को निरस्त करने के 2 सप्ताह से भी कम समय में, रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने परमाणु कड़ाहे को फिर से हिलाया। उन्होंने ट्वीट किया कि ‘पोखरण वह क्षेत्र है जिसने अटल जी (ए.बी. वाजपेयी) के भारत को एक परमाणु शक्ति बनाने के दृढ़ संकल्प को देखा और फिर भी ‘नो फस्र्ट यूज’ के सिद्धांत के लिए दृढ़ता से प्रतिबद्ध रहा। भारत ने इस सिद्धांत का कड़ाई से पालन किया है। भविष्य में क्या होता है यह परिस्थितियों पर निर्भर करता है।’

यह देखते हुए कि तीनों देशों में परमाणु सीमा के संबंध में सैद्धांतिक सोच गलतफहमी के लिए जगह विकसित कर रही है, दक्षिण एशिया में रणनीतिक स्थिरता के लिए यह अनिवार्य है कि भारत द्वारा परमाणु मुद्दों पर चीन और पाकिस्तान दोनों के साथ समानांतर और समवर्ती द्विपक्षीय वार्ताओं के लिए अवसरों का पता लगाया जाए।-मनीष तिवारी
 


सबसे ज्यादा पढ़े गए

Recommended News

Related News