‘घोषणा पत्र वोटों के बदले एक राजनीतिक सौदा है’

punjabkesari.in Tuesday, Mar 16, 2021 - 04:07 AM (IST)

प्रसिद्ध लेखिका एम्मा गोल्डमैन ने एक बार कहा था, ‘‘राजनेता आपको चुनावों से पहले स्वर्ग दिखाने का वायदा करते हैं मगर उसके बाद आपको नरक देते हैं।’’ यह सत्य है कि किसी भी पार्टी ने कभी भी 100 प्रतिशत घोषणा पत्रों को लागू नहीं किया है। सत्ता में आने के बाद अनुपालन की दर अधिकांश दलों के लिए अनिश्चित है। तो चुनाव पूर्व घोषणाओं को देने का क्या तात्पर्य है? 

राजनीतिक घोषणा पत्र का एक लम्बा इतिहास रहा है। घोषणा पत्र विशेष रूप से एक राजनीतिक पार्टी की मान्यताओं या उद्देश्यों का एक लिखित बयान है। 1848 में कम्युनिस्टों ने तो  1850 में अराजकताओं ने अपना घोषणा पत्र जारी किया। फिर 1919 में फासीवादी घोषणा पत्र आए जिसमें महिलाओं को वोट डालने, समानुपातिक प्रतिनिधित्व और न्यूनतम मजदूरी आदि का अधिकार दिया गया। 

राजनीतिक घोषणा पत्र दिलचस्प है क्योंकि मतदाताओं को इस बात की झलक मिलती है कि उनके लिए वह पार्टी अपने चुनावी पिटारे में क्या लाई जिसे वे सत्ता में लाने के लिए वोट दे चुके हैं। भारत में यह अधिक प्रासंगिक है क्योंकि राजनीतिक दल तेजी से बढ़ रहे हैं। चुनाव आयोग के अनुसार पंजीकृत पार्टियों की कुल संख्या 2698 थी जिसमें 8 राष्ट्रीय पाॢटयां, 52 राज्य पार्टियां तथा 2638 गैर-मान्यता प्राप्त पार्टियां थीं। क्योंकि पांच राज्य विधानसभाओं के चुनाव सिर पर हैं, ऐसे में घोषणा पत्रों की बौछार होना लाजिमी है। राजनीतिक पार्टियां, विशेषकर क्षेत्रीय पार्टियां लैपटॉप, साइकिल, मिक्सर ग्राइंडर, टैलीविजन और यहां तक कि वाशिंग मशीनें बांटने का वायदा करती हैं। क्षेत्रीय पार्टियां और यहां तक कि राजनीतिक दल मतदाताओं को लुभाने के लिए ज्यादातर मुफ्त बिजली देने, किसानों का कर्ज माफ करने, नि:शुल्क पीने का पानी इत्यादि देने का वायदा करते हैं। 

मिसाल के तौर पर तमिलनाडु में द्रमुक ने इस सप्ताह अपना घोषणा पत्र जारी किया जिसमें 500 चुनावी वायदों का प्रस्ताव रखा गया है। इन वायदों में शिक्षा ऋण की छूट (30 वर्ष से कम आयु वालों के लिए) और ईंधन में कटौती शामिल है। इसके अलावा पार्टी ने हिन्दू मंदिरों के नवीकरण और परिवर्तन के लिए 1000 करोड़ रुपए के आबंटन का वायदा भी किया। पार्टी प्रमुख एम.के. स्टालिन ने घोषणा की कि पार्टी चर्चों तथा मस्जिदों के लिए भी 200 करोड़ रुपए का आबंटन करेगी। यह सब प्रलोभन ऐसी पार्टी से जिसे नास्तिक पार्टी माना जाता है। 

1989 में एक बार मैंने वित्त मंत्री मधु दंडवते से पूछा था कि वे किसानों के 10 हजार रुपए माफ करने का जनता दल का चुनावी वायदा किस तरह हासिल करेंगे। उन्होंने मुस्कुराते हुए कहा, ‘‘हमने वायदा किया था क्योंकि हमने नहीं सोचा था कि इतनी जल्दी सत्ता में आ जाएंगे।’’ मुफ्त की पेशकश करते समय पाॢटयां उन्हें लागू करने की लागत की गणना नहीं करतीं कि कहां से उन्हें पैसा मिलेगा। 

भाजपा तथा कांग्रेस देश की प्रमुख राजनीतिक पाॢटयों ने संसद तथा विधानसभाओं में महिलाओं के लिए 33 प्रतिशत आरक्षण देने का वायदा किया है। वर्तमान सरकार राम मंदिर, धारा 370 को निरस्त करने के पूर्व चुनावी वायदों को पूरा करने की तरफ तेजी से आगे बढ़ रही है। 2019 लोकसभा चुनावों से पूर्व भाजपा ने अपने ‘संकल्प पत्र’ में यह आश्वासन दिया कि भारत को 2030 तक दुनिया की  तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बनाया जाएगा। इसके अलावा किसानों की आय दोगुनी करने का वायदा भी किया गया है। ‘संकल्प पत्र’ में ऐसे 75 संकल्प थे। 

सत्ता में चुने गए किसी भी दल ने कभी भी अपना घोषणा पत्र 100 प्रतिशत पूरा नहीं किया। आंध्र प्रदेश के दिवंगत मुख्यमंत्री एन.टी. रामाराव  सिर्फ एक पृष्ठ के घोषणा पत्र के साथ आए थे जिसमें भोजन, कपड़े और आश्रय से संबंधित वायदे किए गए थे। उन्होंने एक विशाल जनादेश जीता था। इसलिए पार्टी द्वारा किए गए वायदों की संख्या मायने नहीं रखती बल्कि उन्हें पूरा करने का इरादा मायने रखता है। कांग्रेस, भाजपा तथा वामदलों जैसे राष्ट्रीय दलों ने घोषणा पत्र में आमतौर पर राजनीतिक, आर्थिक और अन्तर्राष्ट्रीय संकल्पों का उल्लेख किया है। 

अमरीका में घोषणा पत्र  ज्यादातर आर्थिक नीति, विदेश नीति, स्वास्थ्य देखभाल, प्रशासनिक सुधार, पर्यावरण मुद्दे, आव्रजन इत्यादि नीतियों पर आधारित होते हैं। अमरीकी राष्ट्रपति जो बाइडेन ने अपने चुनावी अभियान के दौरान भारतीय अमरीकियों के लिए एक अलग एजैंडा भी जारी किया था। राजनीतिक दलों को अपने वायदों के प्रति जवाबदेह बनाना आवश्यक है क्योंकि घोषणा पत्र वोटों के बदले एक राजनीतिक सौदा है अन्यथा यह दर्पण में चन्द्रमा दिखाने जैसे हो जाता है। घोषणा पत्र कानूनी रूप से बाध्यकारी होना चाहिए अन्यथा उसका मकसद कुछ नहीं रह जाता।-कल्याणी शंकर


 


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