पश्चिम बंगाल पर अब ममता का ही राज

punjabkesari.in Friday, May 07, 2021 - 05:15 AM (IST)

ममता बनर्जी फिर से अपने पांवों पर खड़ी हैं। हम उन्हें व्हीलचेयर पर बैठे देखने के आदी हो चुके थे। लेकिन जैसे ही यह स्पष्ट हुआ कि बंगाल के विधानसभा चुनावों में उनकी पार्टी की जीत ‘जबरदस्त’ है, वह अपने पांवों पर खड़ी हो गईं जिससे राज्य में उनके समर्थकों तथा मु बई में इस लेखक को बहुत हर्ष हुआ। 

मेरे जैसे लोगों के लिए जो चीज  सर्वाधिक मान्य रखती है वह यह कि हिंदू मतदाताओं ने भाजपा अध्यक्ष के साम्प्रदायिक आधार पर मतदाताओं के ध्रुवीकरण के प्रयासों को नकार दिया। ‘अंतर वाली पार्टी’ ने अपनी प्रत्येक बैठक तथा रैली में ‘जय श्रीराम’ के नारों से आकाश गुंजा दिया। धार्मिक भावनाएं भड़काने के प्रयास असफल हो गए। 

चुनाव आयोग, जिसका कत्र्तव्य यह सुनिश्चित करना है कि वोट प्राप्त करने के लिए धर्म का इस्तेमाल न किया जाए, ने ममता को सजा दी जब उन्होंने मुसलमानों से अपनी वोटें नहीं बंटने देने की अपील की। लेकिन इससे पहले कि मैं आगे बढ़ं कुछ पल रुक कर मैं हाल ही में सेवानिवृत्त मु य चुनाव आयुक्त सुनील अरोड़ा से इस बात के लिए माफी मांगना चाहता हूं कि हाल ही में मेरे लेख में जो कहा गया था कि उन्हें गोवा के राज्यपाल के तौर पर नामांकित किया गया है, वह सच था। यह पहले मु बई के फ्री प्रैस जर्नल में प्रकाशित किया गया था और फिर सोशल मीडिया पर छा गया। गोवा में फेसबुक तथा ट्विटर का इस्तेमाल करने वाले बहुत से लोगों को विश्वास हो गया कि समाचार सच था। हालांकि समाचार एक सप्ताह से अधिक समय तक चलता रहा लेकिन इसका किसी ने खंडन नहीं किया। 

जब चंडीगढ़ के एक समाचार पत्र के संपादक ने सूचित किया कि सुनील अरोड़ा ने स्पष्टीकरण तथा खंडन जारी किया है, मैंने श्री अरोड़ा को फोन किया और माफी मांगी। यह गलती करने पर की जाने वाली एक अच्छी चीज है। हालांकि गलती वास्तविक थी और उसके पीछे कोई अपराध अथवा दुर्भावना नहीं थी। मैंने चुनावी रणनीतिज्ञ प्रशांत किशोर को टैलीविजन पर सुना। उन्होंने भविष्यवाणी की थी कि भाजपा 100 से अधिक सीटें नहीं ले पाएगी। इसने  केवल 77 सीटें जीतीं और ऐसा कई महीनों तक किए गए जोरदार प्रयासों तथा आज्ञाकारी चुनाव आयोग से पार्टी द्वारा मांगे गए 8 चुनावी चरणों के बावजूद था। 

प्रशांत किशोर का मानना है कि यदि चुनाव आयोग सही काम करता तो भाजपा की सीटों की संख्या इससे कहीं कम होती। उनका मानना है कि चुनाव आयोग ने मीडिया के कुछ वर्गों, जांच एजैंसियों, प्रवर्तन एजैंसियों तथा दुर्भाग्य से कई बार न्यायपालिका की तरह भाजपा के सहायक की तरह काम किया। इन सभी ताकतों के उनके खिलाफ  इकट्ठे होने तथा अमित शाह के सारा ध्यान बंगाल पर केंद्रित करने, प्रत्येक जिले में जाने, यहां तक कि कई बार जाने के बावजूद दीदी ने अकेले ही हमले का सामना किया और जीतीं। 

शुभेंदु अधिकारी, जो तृणमूल कांग्रेस ने कभी उनका दायां हाथ थे, ने अपने गृह निर्वाचन क्षेत्र नंदीग्राम में उनको बहुत कम अंतर से हरा दिया। हार के अंतर को देखते हुए लगता है कि वह लगभग जीत ही गई थीं। यह अपने आप में एक उपलब्धि है क्योंकि नंदीग्राम में अधिकारी अविवादित व्यक्तित्व हैं।

निजी तौर पर मैं ममता के इस नुक्सान को अधिक महत्वपूर्ण नहीं मानता। इसके विपरीत तथ्य यह है कि उन्होंने एक शेर को उसी की मांद में घेरा और लगभग गिरा ही दिया था। मेरा विचार यह है कि उन्हें अब राज्य को महुआ मोइत्रा जैसे किसी सक्षम सेनापति के हवाले कर देना चाहिए और खुद राष्ट्रीय मंच पर सामने आना चाहिए ताकि सभी क्षेत्रीय क्षत्रपों को इक_ा करके मोदी जी के अपने नए सैंट्रल विस्टा में उनके सामने एक दुर्जेय विपक्ष खड़ा किया जा सके। यदि मोदी जी तथा अमित भाई को लोगों को हल्के में न लेने की इजाजत न दी जाए तो भारतीय लोकतंत्र वास्तव में जीवंत बन जाएगा।

कुछ वर्ष पूर्व, शायद 2014 में, संघ के विचारक दत्तात्रेय होसबोले, जिन्होंने हाल ही में संघ के महासचिव के तौर पर भैया जोशी का स्थान लिया है, ने भारत के सभी राज्यों में भाजपा द्वारा विजय प्राप्त करने की बात की थी, ताकि ङ्क्षहदू राष्ट्र में सांस्कृतिक एकरूपता  के सपने को वास्तविकता में बदला जा सके। ममता दीदी ने इस वैभवशाली योजना पर अंकुश लगा दिया।

वही हैं, जिनका पश्चिम बंगाल पर राज है, जैसे कि तमिलनाडु में एम.के. स्टालिन तथा पिनाराई विजयन देवताओं के अपने देश में। इन क्षेत्रीय क्षत्रपों में से प्रत्येक का अपना अहम है। प्रत्येक अपने व्यक्तिगत तरीके से उस अहम को पालता-पोसता है। राष्ट्रीय मंच पर जाने के लिए ऐसा करने हेतु उसका तभी स्वागत किया जाएगा यदि वह अपने समकक्षों से स मान तथा स्वीकृति प्राप्त करता या करती है जैसे कि ममता दीदी ने बंगाल को जीत कर किया है।-जूलियो रिबैरी(पूर्व डी.जी.पी. पंजाब व पूर्व आई.पी.एस.)
 


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