ब्रिटेन में नौकरियों की भरमार, काम करने वाले नहीं मिल रहे

punjabkesari.in Tuesday, Sep 28, 2021 - 04:46 AM (IST)

आशंकाएं थीं कि यूरोपियन यूनियन से निकलने के बाद और कोरोना के दुष्परिणामों से ब्रिटेन की आर्थिक स्थिति बहुत बिगड़ जाएगी लेकिन इसके विपरीत देश इस वक्त माली तौर पर प्राय: हर क्षेत्र में सुदृढ़ है। अंतर्राष्ट्रीय व्यापार बढ़ा है, बेकारी कम हुई है, रोजगार के अवसर बढ़े हैं, उत्पादन बढ़ रहा है, मकानों की कीमतें चढ़ती जा रही हैं, सामान्य जीवन-सामग्री महंगी हो रही है, खर्च करने की शक्ति पहले से ज्यादा है। मोटे तौर पर यही मापदंड होते हैं जिनके आधार पर किसी अर्थव्यवस्था की शक्ति को जांचा-परखा जाता है, ये सभी तत्व इस वक्त ब्रिटेन में विद्यमान हैं। परन्तु, बेकारी कम होने और रोजगार के अवसर बढऩे के बावजूद स्थिति बड़ी विचित्र है। कारोबार बंद हो रहे हैं, धंधे उतनी गति से आगे नहीं बढ़ रहे जितनी उनकी क्षमता है। कारण? काम करने वाले नहीं मिल रहे। 

10 लाख खाली स्थान : नौकरियों की भरमार है। सरकारी आंकड़े बताते हैं कि जुलाई माह में जब लॉकडाऊन खत्म हुआ, तब से कोई 10 लाख नौकरियां खाली पड़ी हैं। उन खाली स्थानों को भरने वाले, नौकरियों के लिए आगे आने वाले नहीं मिल रहे। कभी ऐसा नहीं हुआ कि नौकरियों की जगह (वेकैंसीज) इतनी भारी संख्या में खाली रही हों। इस पर आश्चर्य की बात यह है कि पिछले 3 महीनों में बेरोजगार लोगों की संख्या में कमी हुई है, कोई 17 लाख लोग बेरोजगार हैं (बाकी सब जातियों के मुकाबले में भारतीय सब से कम संख्या में बेरोजगार हैं)। 

यह स्थिति उन संस्थानों, व्यवसायों, इम्प्लायर्र्ज के लिए परेशानी और चिंता का कारण बनी हुई है, जिन्होंने अपने धंधे, कारोबार चलाने हैं। कर्मचारी न मिलने की वजह से व्यापार बंद हो रहे हैं। कई क्षेत्र बुरी तरह प्रभावित हैं, विशेषकर खाद्य पदार्थ उत्पादक और रैस्टोरैंट्स, जिन्हें कोरोना से उत्पन्न कर्मचारियों की कमी के कारण किसी भी अन्य सूत्रों से सहायता और समाधान न मिलने पर जेलों से कैदियों को काम के लिए भर्ती करना पड़ रहा है। कैदी औरतों की मांग और भी ज्यादा है। 

बड़ी लारियों-ट्रकों के ड्राइवरों की भारी मांग : सब से ज्यादा किल्लत बड़ी-बड़ी लारियां, ट्रक, टैंकर चलाने वाले ड्राइवरों की है। इसने जीवन के कई क्षेत्रों को प्रभावित किया है। चूंकि बड़े-बड़े स्टोरों, मार्कीटों, बाजारों इत्यादि स्थानों पर सामग्री लारियों द्वारा आती है, ड्राइवर न मिलने के कारण सामान नहीं पहुंच रहा, जिसके परिणामस्वरूप उनमें खाद्य पदार्थों तथा वस्तुओं की भारी कमी है। शैल्फें खाली पड़ी हैं, वस्तुओं के दाम बढ़ते चले जा रहे हैं। 

यहां ऑनलाइन शॉपिंग बड़ी लोकप्रिय हो चुकी है। जिस भी वस्तु की आवश्यकता है, फोन उठाओ आर्डर दो, निश्चित समय के अन्दर सुपर स्टोर, दुकान का ड्राइवर सामान आपके घर पहुंचा जाएगा, लेकिन अब स्थिति बदल रही है। स्टोर यह सुविधा सीमित कर रहे हैं। एक प्रसिद्ध स्टोर ने तो अपने कई केन्द्रों से घर-घर डिलीवरी की यह सर्विस बंद कर दी है। ब्रिटेन के सबसे बड़े सुपर स्टोर ‘टेस्को’ की ब्रांचें देश के कोने-कोने में फैली हुई हैं। लारी ड्राइवरों की कमी की वजह से सामान ब्रांचों तक पहुंच नहीं पा रहा। ड्राइवरों की कमी को पूरा करने के लिए ‘टेस्को’ तथा एक अन्य देशव्यापी बड़े खाद्य स्टोर ‘वैटरोज’ ने एक विशेष अभियान चलाया। भर्ती होने वाले हर नए ड्राइवर को 1-1 लाख रुपए बोनस देने का लालच दिया गया फिर भी यह कमी पूरी नहीं हो रही। मांस, चिकन इत्यादि न पहुंच पाने के कारण रैस्टोरैंट बंद हो गए हैं।

आपातकाल जैसी स्थिति : समाचारपत्र देखो तो यूं लगता है कि आपातकाल जैसी स्थिति पैदा हो रही है। ड्राइवरों की कमी की वजह से पैट्रोल स्टेशन तक पैट्रोल-डीजल नहीं पहुंच रहा। लोगों की लम्बी कतारें लगी हुई हैं। सीमित मात्रा में ही पैट्रोल दिया जा रहा है। ब्रिटिश पैट्रोलियम जैसी कई बड़ी पैट्रोल कंपनियों ने अपने कितने ही पैट्रोल स्टेशन बंद कर दिए हैं। ड्राइवरों की कमी से कैसे निपटा जाए, इसके लिए अनेक उपायों पर विचार हो रहा है। सुझाव दिया गया है कि सेना के ड्राइवरों को बुलाया जाए। यह कमी ज्यादा तो इस वजह से पैदा हुई है कि  ब्रिटेन के यूरोपियन यूनियन से निकल जाने के बाद इस देश में काम करने वाले यूरोपियन देशों के 14,000 ड्राइवर अपने-अपने देश वापस चले गए क्योंकि उन्हें अब यहां काम करने की इजाजत नहीं है। कैबिनेट मंत्रियों की मीटिंग में विचार किया गया है कि यूरोपियन तथा अन्य देशों से ड्राइवरों को कुछ सीमित अवधि के लिए बुला लिया जाए। ड्राइवरी पास करने के टैस्टों में नरमी की जाए इत्यादि कई सुझावों पर विचार हो रहा है। 

क्रिसमस से आशाएं : आशंका है कि हालत अभी और बिगड़ेगी क्योंकि कोरोना शुरू होने पर लोगों के नौकरियों से वंचित हो जाने से बचाने के लिए सरकार ने कर्मचारियों को उनके वेतन का 80 प्रतिशत घर बैठे देने की जो ‘फरलो’ स्कीम शुरू की थी वह 30 सितम्बर को खत्म हो रही है। लगभग 2 वर्ष पूर्व कोरोना बीमारी शुरू होने पर अधिकांश लोगों को घर से ही काम करने की छूट दे दी गई थी। अब हालात बदलने के बावजूद लोग वापस अपने कार्यस्थलों पर जा कर काम करने के लिए तैयार नहीं हैं क्योंकि घर से ही काम करने में वे कई फायदे देखते हैं, जैसे कि आने-जाने में लगने वाला वक्त, शारीरिक असुविधा, किराए और लंच इत्यादि पर खर्च की बचत। इस सबके बावजूद सरकार प्रयत्नशील है कि अर्थव्यवस्था को पुन: गतिशील किया जाए क्योंकि क्रिसमस दूर नहीं। ये दिन होते हैं अच्छे व्यापार के। व्यापारी वर्ग उत्साहित और आशावादी है कि स्थिति सुधरेगी और कारोबार पुन: अपने पहले जैसे स्तर पर वापस लौटेगा।-कृष्ण भाटिया


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