इंदिरा गांधी की तरह मोदी भी निर्णय लेने में साहसी

punjabkesari.in Saturday, Jan 01, 2022 - 05:28 AM (IST)

शायद जनता भूल गई है कि इंदिरा गांधी के लोगों ने दो रूप देखे हैं पहला जब वह अखिल भारतीय कांग्रेस की फरवरी, 1959 में प्रधान बनीं और दूसरा 24 जनवरी, 1966 को देश की प्रधानमंत्री बनीं। इसी तरह नरेन्द्र मोदी ने 90 के दशक में भारतीय जनता पार्टी के प्रभारी और महामंत्री का पद संभाला, फिर 16 मई, 2014 को बतौर प्रधानमंत्री के पद और गोपनीयता की शपथ ली। 

इंदिरा गांधी ने बतौर कांग्रेस प्रधान केरल में ‘प्राइवेट स्कूलों’ को सरकारी नियंत्रण में लेने के मुद्दे पर नम्बूदरीपाद की सरकार को गिरा दिया। महाराष्ट्र और गुजरात  को दो सूबों में बांट दिया। दूसरी ओर नरेन्द्र भाई मोदी ने भी बतौर प्रभारी और बतौर पार्टी महामंत्री पार्टी हित में जो अच्छा लगा किया, संगठन में भी मूलभूत परिवर्तन किए। कई मेरे जैसे बिगड़ैल नेताओं को उनकी औकात बता दी। 

इंदिरा गांधी ने प्रधानमंत्री बनते ही सिंडिकेट के पुराने दिग्गज नेताओं निजलिगप्पा, कामराज, मोरारजी भाई देसाई, एस.के. पाटिल और अपने ही मुख्य सचिव पी.एन. हकसर को राजनीतिक धरातल से हाशिए पर धकेल दिया। वहीं नरेन्द्र भाई के प्रधानमंत्री बनते ही पुराने नेता या तो रब्ब को प्यारे हो गए या स्वयं जाने कहां खो गए। न अब अडवानी दिखाई देते हैं न मुरली मनोहर जोशी। वाजपेयी जी और केशु भाई पटेल अपनी छाप छोड़ ईश्वर को प्यारे हो गए। परिवर्तन तो स्वीकार करना ही पड़ेगा परन्तु दोनों, इंदिरा गांधी और नरेन्द्र भाई मोदी निर्णय लेने में सिद्धहस्त कहे जाएंगे। 

स्व. प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी कांग्रेस की सशक्त और दृढ़ हृदय वाली नेता थीं वहीं प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी एक कर्मनिष्ठ, मजबूत इरादे वाले और लोकप्रिय प्रधानमंत्री हैं। इंदिरा गांधी ने प्रधानमंत्री बनते ही राजे-महाराजाओं के ‘प्रिवीपर्स’ बंद कर दिए। राजशाही खत्म कर दी। दूसरा सबसे बड़ा निर्णय श्रीमती इंदिरा गांधी ने 14 बैंकों का राष्ट्रीयकरण कर लिया। प्रधानमंत्री बनते ही जनसंघ का आंदोलन कि ‘गोहत्या बंद हो’ जोरों पर था। 

जनसंघ के माननीय सांसद स्वामी रामेश्वरानंद जी के नेतृत्व में साधु-महात्माओं के जलूस पर फायरिंग से आठ साधुओं की मृत्यु हो गई। इंदिरा गांधी ने तुरन्त अपने ही गृहमंत्री गुलजारी लाल नंदा को गद्दी से उतार दिया। श्रीमती इंदिरा गांधी के प्रधानमंत्री बनते ही कहीं मिजो जनजातियों का विद्रोह, कहीं पंजाब में ‘भाषाई आंदोलन’ देश को विचलित किए हुए थे। इंदिरा गांधी ने अपनी ही तरह के निर्णय लिए। इंदिरा गांधी के समय में भी जाट, रेड्डी, पटेल, मराठा जैसी पिछड़ी जातियों का कांग्रेस से मोह भंग हो चुका था। 

इंदिरा गांधी भी उत्तर प्रदेश की राय बरेली सीट से लोकसभा चुनाव लड़ती आई थीं और मोदी ने भी यू.पी. के बनारस को अपना क्षेत्र बना लिया है। उनके ‘गरीबी हटाओ’ नारे से आमजन उत्साहित था। 1971 में पाकिस्तान के दो टुकड़े कर वह ‘आयरन लेडी’ और ‘दुर्गा’ कहलाईं। 1974 में उन्होंने पोखरण परमाणु परीक्षण कर एक महान लेडी का खिताब अपने नाम कर लिया। इंदिरा गांधी ने अपने ही कई प्रमुख मुख्यमंत्री हटा दिए। राजस्थान से मोहन लाल सुखाडिय़ा हटा दिए, मध्यप्रदेश से श्यामा चरण शुक्ला इत्यादि-इत्यादि। 1969 में अपने 23 साल के पुत्र जो अभी-अभी इंगलैंड से लौटा था उसे छोटी और सस्ती मारुति कार का कारखाना खोलने के लिए सरकारी ऋण लिया। 

हरियाणा के तत्कालीन मुख्यमंत्री बंसी लाल ने गुरुग्राम में उसे 300 एकड़ जमीन अलाट कर दी। संजय गांधी वह कार कारखाना न चला सके तो उस कारखाने को सरकारी नियंत्रण में ले लिया। 1975 के मई मास में ‘एमरजैंसी’ लगा कर सभी विपक्षी नेताओं को जेल भेज दिया। फिर 1977 में इसी ‘एमरजैंसी’ को वापस ले लिया। चुनाव हुए तो कांग्रेस गई। 1980 में पुन: इंदिरा गांधी सत्ता में आ गई। पर इंदिरा का दुर्भाग्यपूर्ण निर्णय आप्रेशन ‘ब्ल्यू स्टार’ था जिससे वह मृत्यु को प्राप्त हुईं। निर्णय लेने में इंदिरा गांधी का कोई सानी नहीं। 

अब आई निर्णय लेने की नरेन्द्र मोदी की बारी। निर्णय लेते वह न डरते हैं न घबराते हैं। अपना कुछ है नहीं, सिर्फ भारत के 135 करोड़ लोगों की उन्हें सोच है। 16 मई 2014 को पहली बार और 30 मई, 2019 को दूसरी बार पुन: प्रधानमंत्री बने। मोदी ने बता दिया कि राजनीतिक इच्छाशक्ति क्या होती है और इस इच्छाशक्ति से देश की दशा और दिशा कैसे बदलनी है। 2018 में ‘हज यात्रा’ पर जाने वाले मुसलमानों की ‘सबसिडी’ बंद कर देश के खाते में 700 करोड़ जमा किए। मुस्लिम महिलाओं की दशा सुधारने के लिए ‘तीन तलाक’ को 2019 में अपराध ठहराया। 10 जनवरी, 2020 के ‘नागरिकता संशोधन’ एक्ट पास कर पाकिस्तान, अफगानिस्तान या अन्य मुस्लिम देशों से प्रताडि़त होकर आए हिंदू सिख, बौद्ध, जैन, पारसी और यहूदियों को नागरिकता देने का एक्ट पास किया। 

देश में अमन लाने के लिए ‘अनलॉफुल एक्टिविटीज एक्ट’ में संशोधन किया। स्व. श्यामा प्रसाद मुखर्जी को सच्ची श्रद्धांजलि अर्पित करने के लिए जम्मू-कश्मीर राज्य का विशेष दर्जा खत्म करने के लिए अनुच्छेद 370 और धारा 35-ए को समाप्त किया। जनसंघ के संस्थापक श्यामा प्रसाद मुखर्जी का ध्येय एक देश, एक विधान, एक निशान को सच कर दिखाया। 

2020 में ‘आत्म निर्भर’ भारत का नारा दिया कि देश का सम्मान बढ़े, जुलाई 2017 मे ‘एक देश एक टैक्स’ पॉलिसी के अधीन जी.एस.टी. एक्ट पास करवाया। अत: कह रहा हूं निर्णय लेने में मोदी और इंदिरा का कोई सानी नहीं। ठीक उसी तरह सौम्यता, स्वीकारिता और लोकप्रियता में अटल बिहारी वाजपेयी का कोई सानी नहीं। मोदी और इंदिरा साहसिक व्यक्ति हैं।-मा. मोहन लाल(पूर्व परिवहन मंत्री, पंजाब)


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