‘अफगानिस्तान में पाकिस्तान को अपने हाथ आजमाने दें’

punjabkesari.in Sunday, Mar 14, 2021 - 04:56 AM (IST)

अफगानिस्तान में 1979 के दिसम्बर में जन्मा एक बच्चा आज 41 वर्ष का ,हो गया है। 4 दशक के उस मध्यम आयु वर्ग के व्यक्ति ने अब केवल संघर्ष, हिंसा और रक्तपात को ही सामान्य माना है। उस वर्ष 24 दिसम्बर को सोवियत टैंकों ने आमू दरिया को पार करते हुए 9 वर्षों का क्र्रूर कब्जा कर लिया। 

यह 2016 का वर्ष था। अफगानिस्तान 15 वर्षों के तालिबान के पुरुषवादी प्रभाव से मुक्त हो गया था। एक ट्रैक-2 समारोह में मैं अफगान नैशनल आर्मी के पूर्व प्रमुख से एक सुबह मिला। मैंने उनसे पूछा कि वर्तमान में अफगानिस्तान की स्थिति कैसी है? उन्होंने कहा कि हमारे पास लोकतांत्रिक सरकार है, एक स्वतंत्र और जीवंत प्रैस और प्रिंट मीडिया है, टी.वी., रेडियो सब डिजिटल हैं। स्कूल और कालेज में लड़कियां और महिलाएं जाती हैं। 

कोई भी अफगान राष्ट्रपति को यह बता सकता है कि वह कहां गलत हैं? यह देखना एक सीख लेने जैसा था कि एक पूर्व सैन्य व्यक्ति पिछले डेढ़ दशक की उपलब्धियों की गणना कर रहा था और तालिबान को नुक्सान पहुंचाने या लाभ पहुंचाने की बजाय डेढ़ दशक की उपलब्धि को बता रहा था। 

अमरीकी राष्ट्रपति जो बाइडेन लगातार तीसरे राष्ट्रपति हैं जो अमरीका के सबसे लम्बे युद्ध को समाप्त करना चाहते हैं। 2 दशक पहले अमरीकी 9/11 के बाद ओसामा बिन लादेन तथा अलकायदा को खोजने के लिए अफगानिस्तान में प्रवेश कर गए थे। तालिबान नेता मुल्ला उमर ने अमरीकी वर्चस्व को मानने से इंकार कर दिया था। जबकि ओसामा बिन लादेन और मुल्ला उमर दोनों अब मृत हैं, वहीं तालिबान तथा अलकायदा अभी भी जीवित हैं। 

29 फरवरी 2020 को दोहा में अमरीका तथा तालिबानी नेतृत्व में डील हुई। इस डील का सबसे महत्वपूर्ण पहलू अफगानिस्तान से 1 मई 2021 तक अमरीकी बलों की वापसी तय थी। अमरीका के नए विदेश मंत्री एंटनी ब्लिंकिन ने अफगानिस्तान के राष्ट्रपति अशरफ गनी को हाल ही में एक पत्र लिखा। जिसमें उन्होंने अफगानिस्तान के लिए अमरीकी दृष्टिकोण के बारे में बताया। इसे न तो अमरीका ने और न ही अफगान सरकार ने नकारा है। 

अफगानिस्तान में शांति का समर्थन करने के लिए एक एकीकृत दृष्टिकोण पर विचार-विमर्श करने के लिए रूस, चीन, पाकिस्तान, ईरान और भारत तथा अमरीका के बीच मंत्रिस्तरीय परिकल्पना की गई है। अमरीका तथा अफगानिस्तान दोनों के बीच शांति समझौते को अंतिम रूप देने के लिए जल्द ही तालिबान और अफगान सरकार ने तुर्की की मेजबानी की। 90 दिनों के हिंसा कार्यक्रम में कमी लाने की एक संशोधित योजना का संचालन किया गया। एक नई और समावेशी अफगान सरकार को लेकर अफगानिस्तान के राष्ट्रपति अशरफ गनी को अमरीकी प्रस्तावों के बारे में सोचना होगा। पत्र में लिखा गया है कि हम 1 मई तक अपनी सेना की पूर्ण वापसी पर विचार कर रहे हैं। अमरीकी सेना की वापसी के बाद अमरीका आपकी सेनाओं को वित्तीय सहायता जारी रखेगा। मैं चिंतित हूं कि सुरक्षा की स्थिति खराब हो जाएगी और तालिबान तेजी से क्षेत्रीय लाभ कमा सकते हैं। 

चूंकि भारत अब अफगानिस्तान के भविष्य का फैसला करने के लिए उच्च पटल पर बैठने जा रहा है। इसलिए उस पर गंभीरता से विचार करना चाहिए कि अफगानिस्तान में उसके पास वास्तविक रणनीतिक हित क्या हैं? इसी सवाल पर एक दशक पहले लिखने वाले दिग्गज पत्रकार शेखर गुप्ता ने कहा था कि ‘‘अफगानिस्तान अभी भी महान रणनीतिक महत्व का देश होगा लेकिन किसके लिए, यह एक सवाल है। यह हमारे लिए कोई रणनीतिक महत्व नहीं होगा। हमारी कोई भी आपूर्ति या व्यापार अफगानिस्तान में नहीं आता है। हमारा कोई भी आतंकवादी वहां नहीं छिपा हुआ है। 

भारत पर हुए किसी भी आतंकी हमले में कोई भी अफगानी शामिल नहीं हुआ है। वास्तव में लगभग कभी भी हम पर आतंकी हमला नहीं किया गया है। किसी भी भारत विरोधी योजना को अफगानिस्तान में बनाया नहीं गया। यह सब योजनाएं मुजफ्फराबाद, मुरीदके, कराची और मुलतान में बनाई गईं। अफगान, पख्तून, बलूच, ताजिक और अन्य किसी भी जनजाति ने भारत में हुए आतंकी हमले में भाग नहीं लिया, न ही उनकी संलिप्तता पाई गई। यह हमेशा से ही पाकिस्तानी पंजाबी रहे हैं।

भारतीय सेना में किसी भी जिसने कश्मीर में अपनी सेवाएं दी हैं, से अगर पूछें तो वह बताएगा कि उसने जिन घुसपैठियों से लड़ाई की या उसे लडऩा पड़ा वह पंजाबी मुसलमान थे। अफगानिस्तान को पाकिस्तान पर छोड़ दो। यदि पाकिस्तानी सेना सोचती है कि ब्रिटिश, सोवियत तथा अमरीकियों के असफल होने के बाद वह अफगानिस्तान को ठीक कर सकती है, नियंत्रित कर सकती है तो इसे ऐसा करने दिया जाए।’’ पाकिस्तान को अपने हाथ आजमाने दिए जाएं। यदि अफगानिस्तान में अब पाकिस्तान 10 डिवीजनों या आधे आई.एस.आई. को डाल दे तो यह हमारी पश्चिमी सरहदों के लिए एक राहत देने वाली बात होगी। अफगानिस्तान में एक उपस्थिति क्या भारत के लिए मध्य एशिया में एक नए आयाम पैदा करेगी?-मनीष तिवारी


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