जब तक ‘नेतृत्व’ भ्रष्टाचार से मुक्त नहीं हो जाता, पुलिस ‘भ्रष्ट’ होती रहेगी

punjabkesari.in Monday, Mar 29, 2021 - 04:16 AM (IST)

70 के दशक के प्रारंभ में राजधानी दिल्ली के प्रमुख समाचार पत्र हिंदुस्तान टाइम्स ने अपने क्राइम रिपोर्टर दिवंगत चांद जोशी की एक रिपोर्ट प्रकाशित की जिसमें दिल्ली में ‘थानों’ की बोली के तहत शीर्षक लिखा गया। इसमें कई उच्च मूल्य वाले पुलिस स्टेशनों के नाम सूचीबद्ध किए गए। जोशी ने उल्लेख किया कि किस तरह से पुराने शहर में लाहौरी गेट पुलिस स्टेशन की सबसे ऊंची कीमत वाली बोली लगी जिसे भावी स्टेशन हाऊस अधिकारियों ने लगाया। इसके बाद सदर बाजार तथा चांदनी चौक का स्थान आया। जबकि दक्षिण दिल्ली के लाजपत नगर की अधिकतम बोली लगाई गई। 

अपेक्षित रूप से राजनीतिक हलकों में बहुत अधिक हस्त-लेखन था। दिल्ली पुलिस की ओर से एक प्रपत्र जारी कर ऐसे आरोपों को नकार दिया गया और रिपोर्ट को ‘गलत’ और ‘मनगढ़ंत’ बताया। यह मामला संसद में भी गूंजा जहां पर अनुमानित रूप से सरकार ने रिपोर्ट को बकवास बताया मगर नुक्सान हो चुका था। साधारण लोगों को रिपोर्ट पर विश्वास करना आसान लगा क्योंकि दैनिक अनुभव ने स्थापित किया कि पुलिस अधिकारियों की मुट्ठी गर्म किए बिना पुलिस स्टेशनों से कुछ भी हासिल नहीं हो सकता। आधी शताब्दी से ज्यादा समय के बाद चीजें खराब से बदतर होती चली गईं। 

सत्तारुढ़ महाराष्ट्र विकास आघाड़ी संकट से गुजर रहा है। मुम्बई के पूर्व पुलिस कमिश्रर परमबीर सिंह द्वारा 100 करोड़ रुपए का लैटर बम उड़ाया गया। यदि मुम्बई पुलिस को गृहमंत्री अनिल देशमुख को उस बड़ी फिरौती का भुगतान करना होता तो उसे एस.एच.ओ. पर निर्भर रहना पड़ता। 

थाना इंचार्ज तथा बीट कांस्टेबलों की जानकारी के बिना इतनी बड़ी राशि डांस बारों, पबों, डिस्को तथा अन्य ऐसे प्रतिष्ठानों से एकत्रित करना मुश्किल होता। ट्रांसफर के लिए नकदी या पोस्टिंग के लिए 70 के दशक के बाद यह प्रणाली वस्तुत: संस्थागत रूप में बदल गई है। राज्यों में धन बहुत ऊंचे स्तर पर पहुंच रहा है। हमारे पास वास्तव में अमरीकी लूट या संरक्षण प्रणाली नहीं हो सकती है। मगर आभासी तौर पर हम इसकी प्रैक्टिस करने के लिए आए हैं। प्रत्येक नया प्रशासन अपने अधिकारियों, पुलिस या फिर सिविल में महत्वपूर्ण पदों पर नियुक्ति करता है। जब नई सरकार कार्यभार संभालती है तो पुलिस अधिकारियों का थोक के भाव में ट्रांसफर होता है। 

16 महीने पूर्व जब महाराष्ट्र विकास आघाड़ी  सत्ता में आई तब तत्कालीन स्टेट इंटैलीजैंस विभाग की प्रमुख रश्मि शुक्ला ने मुम्बई के वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों के साथ शिवसेना तथा एन.सी.पी. की ओर से कार्य कर रहे बिचौलियों के साथ अनुकूल पोस्टिंग के बारे में हुई बातचीत को रिकार्ड किया। शुक्ला ने गैर-कानूनी तरीके से बातचीत को टेप किया। यह मुद्दा नहीं है मगर तथ्य यह है कि टेप की सत्यता को चुनौती नहीं दी गई थी कि पैसों का मुम्बई पुलिस में पोस्टिंग को लेकर आदान-प्रदान हुआ। लेकिन याद रखने वाली बात यह है कि एक एस.एच.ओ. लुभावनी पोस्टिंग के लिए फिरौती का भुगतान अपनी जेब से नहीं करता। अपने अधिकार क्षेत्र के तहत वह आपराधिक गतिविधि का संरक्षण करके उस राशि को कई बार वसूलता है। स्वाभाविक रूप से यह सामान्य कानून का पालन करने वाले नागरिक ही होते हैं जो अपने पड़ोस में अवैध गतिविधि बढऩे की कीमत चुकाते हैं। 

परमबीर सिंह ने गृहमंत्री अनिल देशमुख पर आरोप लगाने के लिए मुम्बई पुलिस आयुक्त के रूप में अपनी बर्खास्तगी की प्रतीक्षा क्यों की? यदि वह खुद ईमानदार होते तो वह देशमुख से उसी पल सामना करते जब एक इंस्पैक्टर लैवल तथा एक सब-इंस्पैक्टर लैवल के पुलिस अधिकारी ने उन्हें बताया होता कि केवल मुम्बई से ही एक माह के लिए 100 करोड़ रुपए की मांग की गई है। सचिन वाजे राज्य के मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे द्वारा चुने गए अधिकारी हैं या फिर किसी के कहे अनुसार वाजे पुलिस यूनीफार्म में एक सैनिक हैं जो अब एन.आई.ए. की हिरासत में हैं। मुम्बई पुलिस में सबसे शक्तिशाली अधिकारी वाजे थे जिस पर यहां तक कि परमबीर सिंह ने भी सत्ताधारी गठबंधन से एहसान लेने के लिए उस पर भरोसा किया। 

मुम्बई बम कांड मामले में नैशनल इन्वैस्टीगेटिंग एजैंसी (एन.आई.ए.) के हस्तक्षेप की बदौलत अब वाजे की अवैध गतिविधियां मुम्बई के सभी समाचार पत्रों में हैं। अगर एन.आई.ए. नहीं आती तो अंबानी बम कांड मामले  के रहस्य से पर्दा उठने की संभावना शून्य थी क्योंकि हम सब जानते हैं कि वह व्यक्ति जिसने एक एस.यू.वी. में विस्फोटक लगाया था, उसी आदमी को इसकी जांच का जिम्मा सौंपा गया था। इस बीच एन.सी.पी. प्रमुख शरद पवार के 100 करोड़ रुपए के लैटर बम को संभालने को लेकर कई सवाल उठाए जा रहे हैं क्योंकि पवार ने भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ने की अपनी प्रतिबद्धता जताई थी। 

देशमुख को बाहर का रास्ता दिखाने की बजाय पवार उनके साथ खड़े दिखाई दिए। इससे यह अनुमान लगाया जा सकता है कि देशमुख ने एन.सी.पी. के लिए मासिक पैसे की मांग की होगी। हालांकि वह इसके लिए खुद का एक अच्छा हिस्सा रखने के लिए स्वतंत्र थे। परमबीर सिंह ने अपने लैटर में कहा है कि उन्होंने शरद पवार को देशमुख की मांग के बारे में बताया जब इसके बारे में उन्हें पहली बार पता चला। ठाकरे ने अभी भी मुम्बई सी.पी. का बचाव किया और उन्हें हटाने का विरोध किया। जब तक शासन की पूरी व्यवस्था भ्रष्टाचार और आपराधिकता से मुक्त नहीं हो जाती, पुलिस भ्रष्ट और अपराधी को संरक्षण देती रहेगी।-सीधी बात वरिन्द्र कपूर


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