नेता-पुलिस : दोनों साथ-साथ हैं

punjabkesari.in Wednesday, Sep 01, 2021 - 03:59 AM (IST)

पिछला सप्ताह उथल-पुथल भरा रहा। तीन बातें इसका प्रमाण हैं। पहली, हमारे राजनेता ओरवेलियन के इस सिंड्रोम से ग्रस्त हैं कि मैं आप लोगों से ‘अधिक समान’ हूं। केन्द्रीय मंत्री नारायण राणे को इस बात के लिए गिरफ्तार किया गया कि उन्होंने ठाकरे को स्वतंत्रता के वर्ष का ज्ञान न होने पर कहा कि मैं उद्धव ठाकरे को एक चांटा कस दूंगा। किंतु उन्हें 12 घंटे के अंदर जमानत पर रिहा कर दिया गया। किंतु दिल्ली में मुस्लिम विरोधी नारे लगाने के लिए 6 लोगों को जमानत देने से इंकार किया गया। यह इस कटु सच्चाई को दर्शाता है कि यहां नागरिकों के लिए कोई आशा नहीं है। हालांकि उच्चतम न्यायालय ने सजग किया है कि केवल नारे लगाने पर किसी व्यक्ति की गिरफ्तारी को उचित नहीं ठहराया जा सकता। 

हरियाणा में एक अति उत्साही पुलिस अधिकारी को करनाल में यह कहते हुए सुना गया कि यदि किसान बैरिकेड को ताडऩे का प्रयास करें तो उनका सिर फोड़ दो। इस बयान से हुए नुक्सान की भरपाई के लिए उपमुख्यमंत्री चौटाला ने कहा कि यह आई.ए.एस. की संस्कृति नहीं है। मुख्यमंत्री खट्टर ने कहा कि आधिकारिक कार्य में बाधा पहुंचाना लोकतंत्र के विरुद्ध है। क्या वास्तव में ऐसा है? राजनीतिक प्रतिद्वंद्वियों के बीच हिसाब चुकता करने के लिए गलियों-सड़कों पर हिंसा करना एक नया नियम बन गया है। दूसरा, अपने हितों की रक्षा तथा पैसा बनाने के लिए नेता और पुलिस गुनगुनाते रहते हैं-‘हम साथ साथ हैं’। जब कोई पार्टी सत्ता में होती है तो पुलिस सत्तारूढ़ पार्टी का पक्ष लेती है। जब नई पार्टी सत्ता में आती है तो यह उन अधिकारियों के विरुद्घ कार्रवाई करती है। न्यायालय ने यह टिप्पणी छत्तीसगढ़ के आई.पी.एस.

अधिकारी सिंह के विरुद्ध देशद्रोह और आय के ज्ञात स्रोतों से अधिक संपत्ति के मामले में मुख्यमंत्री बघेल द्वारा अपने पूर्ववर्ती रमन सिंह के विरुद्ध धन शोधन का मामला दर्ज करने का आदेश न मानने के संदर्भ में की। इससे पूर्व उत्तर प्रदेश के एक व्यक्ति को चेन्नई से इसलिए गिरफ्तार किया गया कि उसने केन्द्र के कोविड प्रबंधन के विरुद्ध टिप्पणी की। मंत्रियों के बदलने पर पुलिस विभाग में भारी पैमाने पर तबादले होते हैं। तीसरा, ‘पुलिस आपके साथ और आपके लिए’ कभी भी देखने को नहीं मिलता। दिल्ली में एक 9 वर्षीय बालिका के साथ शवदाह गृह में बलात्कार किया गया और उसे जलाया गया। पुलिस ने प्रथम सूचना रिपोर्ट दर्ज करने से इंकार कर दिया। 

यही स्थिति उत्तर प्रदेश में भी है जब पुलिस वाले के दो बेटों ने एक व्यक्ति की हत्या की। बिहार की जेलें इस बात को लेकर कुख्यात हैं कि वहां पर अपराधी अपराध करने के बाद समर्पण करने के लिए पहुंच जाते हैं क्योंकि उनकी पुलिस के साथ सांठ-गांठ होती है जो उन्हें जेल में संरक्षण देते हैं।  चाहे छोटा अपराध हो या बड़ा, पुलिस के साथ जघन्यता जुड़ी हुई है। यदि आप किसी से छुटकारा पाना चाहते हैं तो पुलिस वाले गुंडे को बुलाइए। बहू को जलाने से लेकर सड़क पर मारपीट की घटना, न्यायालय के बाहर मामलों का निपटान, फर्जी मुठभेड़, थानों में उत्पीडऩ से मौतें, ये सारे कार्य बड़ी बाखूबी से किए जाते हैं। फिर भी हम अपने समाज को सभ्य कहते हैं। 

उदाहरण के लिए एक शिकायतकत्र्ता प्रथम सूचना रिपोर्ट दर्ज करवाने जाता है और यदि यह शिकायत किसी नेता, धनी या शक्तिशाली व्यक्ति के विरुद्ध होती है तो थानाध्यक्ष शिकायत दर्ज करने से इंकार कर देता है या पैसे मांगता है, उसे धमकाता है और भगा देता है। महिला शिकायतकत्र्ता के साथ छेडख़ानी की जाती है और बलात्कार किया जाता है तथा विभिन्न राज्यों जैसे उत्तर प्रदेश और बिहार एेसे मामलों के लिए कुख्यात हैं। यदि प्रथम सूचना रिपोर्ट भ्रष्ट पुलिस वाले के विरुद्ध है तो फिर आपको भगवान ही बचा सकता है। 

हमारे नेताओं का क्या कहना। पुलिस आयोगों ने अब तक 8 रिपोर्टें प्रस्तुत की हैं किंतु ये सारी रद्दी की टोकरी में डालकर भुला दी गई हैं। महत्वपूर्ण प्रश्न यह है कि पुलिस पर किसका नियंत्रण होना  चाहिए, सरकार या किसी स्वतंत्र निकाय का? हमारे सत्तालोलुप राजनेताओं से उत्तर की अपेक्षा करना हमारी मूर्खता है। पुलिस आयोग की एक रिपोर्ट में कहा गया है कि 60 प्रतिशत गिरफ्तारियां अनावश्यक और अनुचित हैं तथा पुलिस की अवांछित कार्रवाई के कारण जेलों में 43$2 प्रतिशत खर्च होता है। पुलिस अधिक शक्तिशाली और कम जवाबदेह बन गई है। 

पुलिस तथा राजनेता दोनों अपने-अपने हितों को आगे बढ़ाने के लिए मिलकर कार्य करते हैं, जिसका परिणाम राजनीति के अपराधीकरण, अपराध के राजनीतिकरण और राजनीतिक अपराधियों के रूप में देखने को मिला है। समय आ गया है कि पुलिस के कार्यों में राजनीतिक हस्तक्षेप समाप्त किया जाए, उसका जनता के साथ संवाद बनाया जाए। कानून की सर्वोच्चता स्पष्ट रूप से परिभाषित और कानून द्वारा निर्देशित होनी चाहिए और उनके पास कानून के विरुद्ध दिए गए निर्देशों को नजरअंदाज करने का विकल्प होना चाहिए। पुलिस बल के आधुनिकीकरण की आवश्यकता है जो पेशेवर, कार्य करने के लिए प्रेरित, सुसज्जित और सुप्रशिक्षित हो। पुलिस नेतृत्व में संख्या की बजाय गुणवत्ता पर बल दिया जाना चाहिए। पुलिस की संचालनात्मक कमान में क्रांतिकारी बदलाव की आवश्यकता है।-पूनम आई. कौशिश


सबसे ज्यादा पढ़े गए

Recommended News

Related News