दोषी को खुद सजा देने का रास्ता समाज के बड़े हिस्से को स्वीकार नहीं

punjabkesari.in Thursday, Oct 28, 2021 - 03:59 AM (IST)

जब सारे देश पर कई तरह के संकट के बादल मंडरा रहे हों तो पंजाब खतरों से खाली कैसे रह सकता है?  पंजाब देश की खड्ग भुजा, अन्नदाता है, आंतरिक तथा बाहरी दुश्मनों से लोहा लेते हुए जीवन कुर्बान करने वालों की जन्मभूमि किसी जरूरतमंद व्यक्ति या समूह को जब कभी भी किसी तरह की सहायता की जरूरत पड़ी, पंजाबी जरूरतमंदों के दरवाजे खुद पहुंच जाते हैं। इस क्षेत्र के लोगों को ऐसी विरासत लम्बे तथा कठिन अनुभवों से प्राप्त हुई है जिसकी पनीरी  लगाने के लिए जोगियों, नाथों, सूफी-संतों, भक्ति लहर के सृजकों, गुरुओं, कूकों, गदरी बाबाओं तथा शहीद-ए-आजम स. भगत सिंह की महान शिक्षाओं तथा कुर्बानियों ने लगाई है। 

इस गौरवशाली खजाने को अनेकों बार विदेशी तथा देशी दुश्मनों, धार्मिक कट्टरपंथियों, साम्प्रदायिक जुनूनियों तथा दक्षिण पंथी तत्वों ने चोट पहुंचाने की कोशिश की परन्तु पंजाबियों की सहनशीलता, दरियादिली, यातनाएं सह कर भी ईश्वर की मर्जी मानने की फितरत तथा भ्रातृभाव की भावना ने ऐसी सभी कुचालों को असफल बना दिया। 

यह सेहरा पंजाबियों की शानदार विरासत के सिर ही बंधता है कि इतिहास के जानलेवा हमलों के दौर को सहते हुए अपने गहरे जख्मों को भर कर यह दोबारा पैरों पर खड़े हो जाते हैं। इन सब गुणों को सामने रखते हुए हमें उन कमजोरियों पर भी ध्यान देने की जरूरत है जिनसे पंजाबियों की जुझारू, खुद को कुर्बान कर देने वाले तथा मानवीय छवि को चोट पहुंचती हो। अब एक बार फिर पंजाबियों की गौरवशाली विरासत की रक्षा करने का अवसर आ गया है। 

15 अक्तूबर को दशहरे वाले दिन किसान मोर्चे के एक केंद्र, सिंघु बार्डर के नजदीक निहंग सिहों के एक समूह ने उनकी सेवा कर रहे एक व्यक्ति लखबीर सिंह को बेरहमी से कत्ल कर दिया। जिस तरह मृतक का एक हाथ तथा टांग काट कर उसके खून से लथपथ शरीर को सड़क पर लगे बैरीकेड पर टांग कर दुनिया को दिखाया गया उससे संसार भर में जिसने भी इस खौफनाक दृश्य को देखा त्राहि-त्राहि कर उठा। निहंगों द्वारा इस कत्ल की जिम्मेदारी लेते हुए यह दावा किया गया कि यह व्यक्ति निहंग सिंहों के एक धर्मग्रंथ ‘सर्व लौह’ (पहले प्रचार श्री गुरु ग्रंथ साहिब जी की बेअदबी बारे किया गया था) की बेअदबी कर रहा था और उसे ऐसी सजा देना ‘हमारे गुरु की शिक्षा भी है और हमारा कत्र्तव्य भी बनता है।’ 

दोषियों ने गिरफ्तार होने के बाद पुलिस तथा अदालत के सामने भी किसी धर्म ग्रंथ की बेअदबी करने वाले व्यक्ति को आगे भी ‘सोधने’ (अर्थात मारने) की घोषणा की है। संयुक्त किसान मोर्चे, जो एक वर्ष से चल रहे शांतमयी किसान आंदोलन की अगुवाई कर रहा है, ने इस घटना को अंजाम देने वाले तत्वों से खुद को स्पष्ट तौर पर अलग कर लिया तथा कत्ल की निंदा करते हुए दोषियों को सजाएं देने के लिए प्रशासन को सहयोग देने का भी ऐलान किया। 

किसान नेताओं ने इस सारी घटना की निष्पक्ष जांच करने की भी मांग की है जो इसलिए जरूरी बन जाती है जब इस घटना को अंजाम देने वाले एक निहंग प्रमुख अमन सिंह को मोदी सरकार के केंद्रीय कृषि मंत्री नरेन्द्र सिंह तोमर द्वारा सिरोपा देकर सम्मानित करने के चित्र सामने आए हैं। इस घटना ने लोगों के मनों में मोदी सरकार द्वारा चल रहे किसान आंदोलन को असफल करने के लिए की जा रही साजिशों का खुलासा कर दिया है। किसान नेताओं ने वहां बैठे अन्य निहंग सिंहों को उस जगह से चले जाने की प्रार्थना भी की है क्योंकि संयुक्त मोर्चा किसानों का विशुद्ध गैर-राजनीतिक तथा गैर-धार्मिक मोर्चा है जो शांतिपूर्वक चलाया जा रहा है। 

किसी भी धर्म ग्रंथ की बेअदबी करना घोर अपराध है और दोषी को कानून अनुसार इसकी सजा मिलनी चाहिए। यह भी हकीकत है कि अधिकतर कानूनी प्रक्रिया इतनी लम्बी तथा महंगी होती है कि आम व्यक्ति को इंसाफ की प्रतीक्षा करते लम्बा समय बीत जाता है। देर से मिला न्याय न मिलने के बराबर होता है। मगर वर्तमान स्थितियों में कानून पर अविश्वास जताकर यदि दोषी को खुद सजा दें (जैसे सिंघु बार्डर पर निहंग सिंहों द्वारा दी गई) का रास्ता चुन लिया जाता है तो ऐसा वहशी कार्य समाज के बहुत बड़े हिस्से को स्वीकार नहीं है। 

हालांकि सामान्य सिख समूहों ने इस घटना को पसंद नहीं किया मगर जिस तरह आर.एस.एस. या संघ परिवार के हाथों किसी अल्पसंख्यक धार्मिक सम्प्रदाय से संबंधित व्यक्ति, दलित, महिला या प्रगतिशील विचारों वाले किसी व्यक्ति के कत्ल या कोई अन्य धक्के वाली घटना होने पर विरोध की लहर उठती है, उसी तरह की लहर पंजाबियों, विशेषकर सिख जनसमूहों में नहीं देखी जा रही है।

बेशक वे इस दुर्भाग्यपूर्ण घटना से दूर-नजदीक से किसी तरह से भी संबंधित नहीं है मगर जब कातिल निहंगों का बाना और सज-धज सिखी वाली है और वे यह घिनौना जुर्म सिखों के धार्मिक ग्रंथ की बेअदबी के पर्दे के नीचे कर रहे हैं तो सिख धर्म से जुड़े विशाल संख्या के लोगों का यह कत्र्तव्य बनता है कि वे अपने धर्म, इसकी मानववादी परम्पराओं तथा किसी के साथ भी इस तरह का घिनौना व्यवहार न करने की शिक्षाओं की पवित्रता कायम रखने के लिए अपनी आवाज जरूर बुलंद करें। 

संभव है यह एक खतरों भरा कार्य हो क्योंकि देश के शासक, सरकारी एजैंसियां तथा साम्प्रदायिक तत्व किसान आंदोलन की रोशनी में इस तरह की गैर-मानवीय गतिविधियों का सिलसिला निरंतर जारी रखने के समर्थक हैं और इसकी निंदा करने वालों के विरुद्ध कोई भी हिंसक या नुक्सानदायक कार्रवाई कर सकते हैं। यदि हम सच तथा धर्म की मानववादी कद्रो-कीमतों के लिए कोई खतरा लेने के भय से चुप रहते हैं तो ‘सच्चे सिख’, जो समाज के भले के लिए अपने परिवारों को भी न्यौछावर करते रहे हैं को एक अच्छा इंसान कहलाने का हक भी नहीं है। 

आज के समय में ‘हिंसा’ शासक वर्गों का हथियार है जो वे पीड़ित लोगों तथा संघर्षशील जनसमूहों के विरुद्ध इस्तेमाल करते हैं। यह तथ्य विश्व भर में साम्राज्यवादी शक्तियों तथा भारत के शासकों द्वारा गत समय दौरान बेगुनाह लोगों के विरुद्ध की गई हिंसक कार्रवाइयों में सिद्ध हो चुका है। मगर यह कार्य कोई एक धार्मिक अल्पसंख्यक समूह अकेले नहीं कर सकता। इसके लिए समस्त पीड़ित लोगों तथा लोकतांत्रिक लहर के साथ मिलकर संघर्ष करना होगा। देश-विदेशों में बैठे साम्प्रदायिक तथा विभाजनकारी तत्व अभी भी पंजाब तथा देश के लोगों को 80 के दशक की त्रासदी में धकेलने के लिए प्रयत्नशील हैं। ऐसे लोगों से पूरी तरह सावधान रहने की जरूरत है। 

मौजूदा हालातों में धार्मिक अल्पसंख्यकों के लिए किसी हिंसक कार्रवाई के सहारे अपने मान-सम्मान तथा धर्म की रक्षा करने का पैंतरा बड़े खतरों का सूचक बन सकता है। इसके साथ ही धार्मिक अल्पसंख्यक पूरे समाज, दलितों तथा महिलाओं के उज्ज्वल भविष्य के लिए सामाजिक परिवर्तन में है, जिसके लिए शासक पक्षों तथा हर रंग के साम्प्रदायिक तत्वों की सभी चालों तथा हिंसक कार्रवाइयों का मुकाबला शांतिपूर्ण तरीके से इकट्ठे होकर करना होगा।-मंगत राम पासला


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